Saturday, July 27, 2024
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साहित्यिक पुरस्कार वितरण मेला

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Ravivani 29


अरविंद कुमार संभव |

एक खबर आयी है कि कुछ लोग कथित रूप से अब तक का सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार वितरण आयोजन करने जा रहे हैं। हरिद्वार के पंडों की बही की तरह दिखाई देने वाली एक लंबी लाभार्थी सूची भी प्रकाश में आयी है। अक्सर हम देखते हैं कि सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को उस मुफ़्त योजना की वस्तुओं यथा साड़ी, साईकिल, राशन किट आदि बांटने के लिये मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें कतारबद्ध बैठे आशार्थियों को एक या एक से अधिक शासकीय नेताओं, कलेक्टरों द्वारा मुफ़्त वस्तुएं वितरित की जाती हैं। कभी कभी लेने वालों की इतनी भीड़ हो जाती है कि भगदड़ हो जाती है, कुछ घायल हो जाते हैं। बाद में आरोप प्रत्यारोप लगते हैं कि केवल सत्तारूढ़ दल से जुड़े अपात्र लोगों को मुफ़्त वितरण मेले में बुलाया गया था। जो सही में पात्र थे किंतु आयोजकों के दल से नहीं थे उन्हें बाहर रखा गया।

अब देखने को आ रहा है कि साहित्य में भी विशाल पुरस्कार मेले आयोजित हो रहे हैं। खतरा वहीं है जो सरकारी मेले में ऊपर बताया गया है। इसे या कुछ ऐसे ही आयोजनों को प्राइवेट स्कूलों में होने वाले एन्युअल फंक्शन की तर्ज पर भी रखा जाता है जहां हर बच्चे को किसी ना किसी बात पर स्टेज पर बुला कर लकड़ी में प्लास्टिक चिपकी चार इंच की ईनाम दे दी जाती है ताकि उसके माता-पिता खुश रहें, स्कूल का गुणगान करें और फंक्शन में आकर भीड़ दिखायें। एक साथ लाइन में एक दर्जन बच्चों को खड़ा करके ईनाम पकड़ा दी जाती है और फिर अगली पंक्ति को बुला लिया जाता है। होशियार से लेकर ढपोल तक सब इस सिस्टम में ईनाम पा जाते हैं। ना देने वाले को पता कि क्यों दिया जा रहा है और ना लेने वाले को पता। वहां भी एक तथाकथित चयन समिति होती है जिसे प्रोग्राम कमेटी कहा जाता है।

तो 100-150 लोगों को विभिन्न नामों की स्मृति में ( जिन प्रतिष्ठित नामों को शायद जजेज भी (यदि वास्तव में जज किया हो, याद नहीं रख पायेंगे) दोनों हाथों से पुरस्कार बांटना तो गांवों/ जागरण / आश्रमों में होने वाले सामुहिक लंगरों की तरह हो गया। पहले हरिद्वार ऋषिकेश में काली कमली वाले ट्रस्ट की तरफ से सदावर्त बंटता था। यहां भी बंट रहा है। इसे पुण्यदान भी कह सकते हैं तो दूसरी तरफ साहित्यिक सर्कस भी । बहरहाल मनोरंजन दोनों में रहेगा। आखिर साहित्य में सदैव गंभीरता ही क्यों ? खिलवाड़ और मनोरंजन भी तो होना चाहिए । भागवत कथा के दौरान नन्दोत्सव में दोनों हाथों से खिलौने, पैसे,फल दर्शकों/ श्रोताओं पर उछाले जाते हैं और भीड़ उछल उछल कर उन्हें लपकने की कोशिश करती है। तो ये साहित्यिक महन्त भी तो नन्दोत्सव उछाल आयोजन कर रहे हैं। भक्त भी तैयार खड़े हैं लपकने को। वैसे एक लोटा,एक गमछा दक्षिणा में मिल जाये तो और भी कई महापात्र तैयार हो जायेंगे आने को। हां किस व्यक्ति को किस पुस्तक पर पुरस्कार मिल रहा है यह राष्ट्र हित में गोपनीय रखा जाता है। कहीं वो पुस्तक किसी चायना वाले के हाथ पड़ गयी और उसने उसकी डूप्लीकेट बना कर बेच दी तो?

100 लोगों को सम्मान हेतु चुनने के लिये उसके चार गुना लोगों की पुस्तकों को तो पढ़ा ही होगा। न्यूनतम 400 लेखकों की 400 पुस्तकें तो चयन कमेटी ने 10 दिनों में पढ़ कर और उन्हें मेरिट देकर गिनीज बुक में तो रिकॉर्ड दर्ज़ करा ही दिया होगा। लगता है कि जज करने वालों के अंदर जिन्न की आत्मा आगयी है जिसके चलते वो यह जादू वाला काम कर बैठे। इंसान के तो बस में नहीं था। अब साहित्य में कोई सूचना का अधिकार कानून तो लागू होता नहीं है कि जनता को बताया जाये कि किस किस की कौन कौन सी कृतियों को जजेज ने पढ़ा और उनमें से किन 100-150 कृतियों को पुरस्कार के लायक माना। चयन प्रक्रिया तो तंत्र साधना की तरह गोपनीय रखी ही जायेगी वरन् तो परमाणु टेक्नोलॉजी की तरह इसके पीछे भी जानने के लिए कितने ही जासूस पड़े रहते हैं।
धन्य हैं ये पुरस्कार सम्मान आश्रम के महान दानदाता
और भी धन्य हैं लाइन लगाकर इन्हें लेने वाले शारदासुत


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