देश की राजधानी दिल्ली के मुंडका इलाके में निर्मित तीन मंजिला व्यवसायिक इमारत में लगी भीषण आग में 27 लोगों की मौत दिल दहला देने वाली मर्मांतक घटना है। इस घटना की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मरने वाले 27 लोगों में 19 शवों की शिनाख्त नहीं हो पाने के कारण उनके डीएनए सैंपल लिए गए। फिलहाल दिल्ली सरकार ने घटना की मजिस्टेज्टी जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। सवाल यह है कि अवैध तरीके से कई मंजिला इमारतों का निर्माण क्यों हो पा रहा है? इन इमारतों में आग से बचाव के उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं? जब ग्राम सभा की जमीन पर रिहायशी के अलावा अन्य किसी भी तरह के निर्माण कार्य की इजाजत नहीं है तो फिर यह तीन मंजिला इमारत कैसे खड़ा हो गया?
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सवाल यह भी कि इस इमारत में दस साल से फैक्ट्री चलती रही और नगर निगम अपनी आंख क्यों बंद किए रहा? बताया जा रहा है कि इस इमारत को न तो नो आॅब्जेक्शन सर्टिफिकेट हासिल था और न ही आग से बचाव का समुचित प्रबंध था। सवाल यह है कि इसके लिए कौन गुनाहगार है?
यह पहली बार नहीं है जब देश की राजधानी दिल्ली अग्निकांड का गवाह बनी है। याद होगा 2019 में रानी झांसी रोड पर अनाज मंडी में लगी भीषण आग में 43 लोगों की दर्दनाक मौत हुई। इसी तरह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भी आग लग चुकी है।
गत वर्ष पहले बाहरी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर पांच में एक इमारत में अवैध रुप से चल रही पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में तकरीबन 17 लोगों की जान गयी। तब सरकार ने जांच कराने की बात कही लेकिन उसका क्या हुआ किसी को पता नहीं। याद होगा गत वर्ष पहले दिल्ली में ही किन्नरों के महासम्मेलन के दौरान पंडाल में लगी आग से 16 किन्नरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। 31 मई 1999 को दिल्ली के ही लालकुंआ स्थित हमदर्द दवाखाना में केमिकल से लगी आग में 16 लोगों को जान गयी।
13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने से 59 लोगों की मौत हुई। इस घटना के बाद राज्य सरकारों ने अपने राज्य के सिनेमा हॉल प्रबंधकों को ताकीद किया कि वह सिनेमा हॉलों को अग्निशमन यंत्रों से लैस करें। प्रशिक्षित लोगों की नियुक्ति करें। लेकिन यह सच्चाई है कि आज भी सिनेमा हॉल और मॉल सुरक्षित नहीं हैं। यह पर्याप्त नहीं कि सरकारें मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवजा थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ले। यह एक किस्म से अपनी नाकामी छिपाने का तरीका भर है।
इसी ता नतीजा है कि आग की घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ रही हैं। उचित होता कि आग से बचाव के लिए ठोस नीति गढ़ने के साथ-साथ सुरक्षा मानकों का पालन कराना सुनिश्चित किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। आज उसी का नतीजा है कि देश भर में आग की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है और लोगों को अकारण मौत के मुंह में जाना पड़ रहा गौर करें तो दिल्ली ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी आग की घटनाओं ने अनगिनत लोगों की जान ली है।
गत वर्ष पहले गुजरात राज्य के सूरत की तक्षशिला कॉम्पलेक्स की चार मंजिला इमारत में लगी भीषण आग में 23 लोगों की मौत हुई। मध्य मुंबई के लोअर परेल इलाके में निर्मित दो रेस्टोरेंट कम पब में अचानक भड़की आग में 14 लोगों की जान गयी।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) के ट्रामा सेंटर में शार्ट सर्किट से लगी आग में छ: मरीजों की दर्दनाक मौत हुई। यूपी के कानपुर में लिकेज सिंलेंडर से आग लगने से पांच लोगों की जान गयी। गत वर्ष पहले केरल के कोल्लम में पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी से लगी आग में एक सैकड़ा से अधिक लोगों की जान गयी। गत वर्ष पहले उज्जैन जिले के बड़नगर में पटाखे की फैक्टरी में भीषण आग में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई। आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड यानी गेल की गैस पाइपलाइन में लगी आग से हुए विस्फोट में तकरीबन डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की जान गयी।
यही नहीं एशिया के सबसे बड़े आयुध भंडारों में शुमार महाराष्ट्र के पुलगांव स्थित आयुध भंडार में भी आग लगी थी जिसमें दो सैन्य अधिकारियों समेत 18 लोगों की दर्दनाक मौत हुई। करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। गौर करें तो 2000 से 2018 के बीच आधा दर्जन से अधिक आयुध भंडार आग की लपटों की भेंट चढ़ चुके हैं और हजारों करोड़ रुपए की सैन्य संपत्ति नष्ट हुई है। मुंबई में छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर एक इमारत धूं-धूं कर जल उठी। ऐसी अनगिनत आग लगने की मिसालें दी जा सकती हैं।
सरकारी या गैर सरकारी अथवा व्यवसायिक इमारतों में आग लगने के दो प्रमुख कारण हैं-एक, जिन संस्थानों में अग्निशमन यंत्रों की व्यवस्था की गयी है वहां उसका इस्तेमाल कैसे हो उसकी जानकारी कर्मियों को नहीं है। या यों कहें कि उन्हें समुचित टेज्निंग नहीं दी गयी है। दूसरा कारण सरकारी तंत्र के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा पैसे लेकर अवैध तरीके से निर्मित इमारतों को एनओसी जारी किया जाना है। नतीजा सामने है।
जब भी इस तरह के हादसे होते हैं ताना जाता है कि तंत्र और सरकारें सबक लेंगी। आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त किया जाएगा। भीषण अग्निकांड की घटनाएं तंत्र की पोल खोलती रहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शायद सरकारें एवं सार्वजनिक संस्थाएं अग्निजनित हादसों को आपदा मानने को तैयार ही नहीं है। अन्यथा कोई कारण नहीं कि भीषण अग्निकांड के बाद भी तंत्र हाथ पर हाथ धरा बैठकर नए-नए हादसों का इंतजार करता रहे।