- शिक्षा का बनाया जा रहा मजाक, दोपहर में भी समय से पहले बंद हो जाता है स्कूल
- बड़ा सवाल: छात्र-छात्राओं को मिलती है कैसी शिक्षा?
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सरकारी स्कूलों में शिक्षा राम भरोसे हैं, समय से स्कूल खुलते नहीं, जबकि शासन स्तर पर स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही है। जिस स्कूल में छात्रों को अच्छी शिक्षा देने का दावा किया जाता है, वहां की स्थिति इसके विपरीत है। यहां का स्टाफ तय समय पर स्कूल नहीं पहुंचता। जिस वजह से गेट पर अक्सर ताला लटका मिलता है। ऐसे में यहां छात्रो को मिलने वाली शिक्षा का स्तर कैसा होगा इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
बीआरसी रजपुरा के इंचौली क्षेत्र में पड़ने वाला उच्च प्राथामिक विद्यालय नंगली अजमाबाद अपनी बदहाली पर आंसू बहा है। स्कूल में कुल 31 छात्र है। जिनमें कक्षा छह में 13, कक्षा सातवीं में 11 व कक्षा आठवीं में सात छात्र है। इन छात्रों को शिक्षा देने के लिए शासन स्तर पर तीन शिक्षकों की नियुक्ति है। जिनमें से स्कूल की हेड कुसुम सिंह, सहायक अध्यापिका श्वेता सिंह व सहायक अध्यापक विशाल गुप्ता है।
जबकि एक रिटायर्ड शिक्षक महेश चंद भी विद्यालय में लगातार आते हैं। यहां तक तो ठीक है, लेकिन इस स्कूल में शिक्षा देने को लेकर स्टाफ लगातार लापरवाह बना हुआ है। बावजूद इसके कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। वहीं, इस संबंध में बीएसए योगेन्द्र कुमार का कहना है कि स्कूल में स्टाफ देर से कब से आ रहा है। इसकी जांच कराई जाएगी, अगर लापरवाही सामने आती है तो विभागीय कार्रवाई होगी।
कैसे सुधरेगी स्कूली शिक्षा?
सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा देने के लिए तमाम योजनाएं चलाई जाती है, इनमें मिड-डे-मील से लेकर डीबीटी योजना तक शामिल है। स्कूली बच्चों को पढ़ाई के लिए जागरूक किया जाता है, लेकिन नंगली आजमाबाद उच्च प्रथामिक विद्यालय का स्टाफ छात्रों को शिक्षा देने के बजाय मौज काट रहा है। स्टाफ के समय पर न आने की शिकायत कई बार विभाग व शासन से की जा चुकी है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा यह बड़ा सवाल है।
स्कूल गेट पर लापरवाही लटका रहा ताला
छात्रों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए सबसे पहले उन्हें समय का पाबंद होने का पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन नंगली आजमाबाद स्कूल का स्टाफ खुद कितना समय का पाबंद है, यह इस तरह पता चलता है कि स्कूल का समय सुबह नौ बजे से दोपहर तीन बजे तक है, लेकिन इस स्कूल का गेट रोज समय पर नहीं खुलता, बुधवार को तो गेट सुबह साढ़े नौ बजे तक भी बंद मिला।
जबकि इससे पहले भी मंगलवार को गेट समय पर नहीं खुला था। वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि दोपहर में भी स्टाफ छुट्टी से पहले ही गेट पर ताला जड़कर चला जाता है। यह हालात रोज ही बने रहते हैं। जब स्कूल का स्टाफ न तो समय पर स्कूल पहुंचता है और न ही छुट्टी के समय तक विद्यालय में उपस्थित रहता है।
बच्चों को शिक्षा देने यह शिक्षक कभी नहीं गए स्कूल
शिक्षा विभाग को अध्यापक के नाम पर चूना लगाने वाला शिक्षक क्या विभाग पर काला धब्बा है? यह बात काफी हद तक सही है क्योंकि जिस शिक्षक ने मृतक आश्रित में सहायक अध्यापक की नौकरी पाई, उसी शिक्षक ने नियुक्ति के बाद से कभी किसी छात्र को शिक्षा नहीं दी। इस शिक्षक की विभाग में अच्छी पैंठ है। जिस कारण यह शिक्षक के पद पर रहते हुए भी शिक्षण कार्य नहीं करता है।
अक्सर चर्चाओं में रहने वाले सहायक अध्यापक विशाल गुप्ता ने अपनी मां की जगह 1995-96 में सहायक अध्यापक के पद पर नौकरी पाई थी, लेकिन 25 सालों से अध्यापक बने इस इन शिक्षक महोदय ने कभी किसी छात्र कोे शिक्षा नहीं दी है। यह शिक्षक कभी बीआरसी रजपुरा के विद्यालयों से बाहर नहीं रहे, जब भी इनकी पोस्टिंग रही यहां के ही विद्यालयों में तैनात रहे हैं, लेकिन इन्होंने छात्रों पढ़ाने की जहमत कभी नहीं उठाई, जबकि यह गणित के शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए है।
बीएसए योगेन्द्र कुमार का कहना है कि विशाल गुप्ता को तीन साल पहले आधार कार्ड बनाने के लिए बीआरसी रजपुरा में अटैच किया गया था, लेकिन इससे पहले यह किन विद्यालयों में रहे और किन परिस्थितियों में बच्चों को पढ़ाने किसी स्कूल में क्यों नहीं गये यह जांच का विषय है।
कुल मिलाकर हर बार इन शिक्षक महोदय के खिलाफ विभाग जांच की बात तो करता है, लेकिन जांच कैसे होती है यह सबके सामने है। विशाल गुप्ता पर विभाग इतना मेहरबान क्यों है? इसका जवाब देनें के लिए कोई अधिकारी भी सामने आने को तैयार नहीं है। ऐसे में शिक्षण जैसे सम्मानित पेशे का मजाक बनाने का सिलसिला लगातार जारी है।
विभाग में करते रहे मनमानी
2016 में यह शिक्षक महोदय उस समय भी चर्चा में आए थे जब अपने आप को बीएसए कार्यालय में संबद्धता का तत्कालीन बीएसए इकबाल मोहम्मद का फर्जी आदेश इनके द्वारा तैयार किया गया था। इस आदेश में इन्होंने खुद को लिपिक के पद पर संबद्ध दिखाया था। इससे पहले भी यह शिक्षक विभाग के कई कार्यालयों के साथ एनआईसी में कंप्यूटर पर डाटा फीड करने के नाम पर नौकरी से नदारद रहे हैं, लेकिन इनके खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बीएसए कार्यालय द्वारा शिक्षक को दिया जाता संरक्षण
विशाल गुप्ता की शिकायत होने के बाद उनके खिलाफ जांच हुई, लेकिन वह ठंडे बस्ते में चली गई। कभी किसी अधिकारी ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटाई। यहां तक कि आज भी यह शिक्षक उच्च प्राथमिक विद्यालय नंगली आजमाबाद में नियुक्त है, लेकिन रजिस्टर में इनको बीएसए कार्यालय में संबद्ध दिखाया जाता है। यह शिक्षक कितने प्रभावशाली है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शिक्षा दिये बिना यह शिक्षक लगातार विभाग से तनख्वाह पा रहे हैं। शिक्षक के खिलाफ जब भी कोई आवाज उठाता है तो यह उसे भुगत लेने की धमकी देते हैं।
अटैचमेंट पर लगी रोक
शासन स्तर पर किसी भी शिक्षक के अटैचमेंट पर रोक लग चुकी है, अब शिक्षकों को केवल शिक्षण कार्य ही करना होगा। बावजूद इसके शिक्षकों को जहां पर अटैच किया गया था, उन्हें वापस नहीं बुलाया गया। यानी विभाग द्वारा शासनादेश की भी अनदेखी की जा रही है। ऐसे में अटैच किए गए शिक्षक कैसे अपने फर्ज को अंजाम देंगे यह बड़ा सवाल है।