- ईश्वर को जानने के लिए ईश्वर में लीन होना पड़ता है
जनवाणी संवाददाता |
झिंझाना: स्वामी स्वरूपानंद गिरी महाराज ने कहा कि ईश्वर को जब भी और जितना भी याद करें तो उसे पूरी तन्मयता से करें, क्योंकि एक मिनट का सत्संग भी आपकी दिशा और दशा बदल सकता है। यदि ईश्वर के बारे में जानना हो तो उसके लिए ईश्वर में लीन होना पड़ता है।
ब्रह्मलीन वीतराग परमहंस स्वामी दयानंद गिरी महाराज के परम शिष्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज ने मंगलवार की देर शाम कस्बे के मंदिर ठाकुरद्वारा में धार्मिक भक्त समाज के अनुयायियों को अपनी अमृतमयी वाणी से अभिभूत किया। उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए काम क्रोध लो मोह से विरक्त होकर और अपने अंत:करण को शुद्ध करने के बाद हमें भगवान की प्रेरणा सीधी तौर पर मिलने लगती है।
यदि हम ईश्वर को जानने और उसकी कृपा का पात्र बनने की इच्छा रखते हैं तो हमें पागलों की तरह ईश्वर में लीन होना पड़ेगा। पागल का अर्थ है पा+गल = ‘पा’ के मायने है पाना और ‘गल’ के मायने हैं विचार या बात। यानि के जिसके मन में ईश्वर को पाने का विचार आ जाए तो वह ईश्वर में लीन हो जाता है ।
एक मौके पर डा. राकेश शर्मा, नीरज मित्तल, भगवान मित्तल, गोपाल मित्तल, मोहन लाल, रामकुमार कश्यप, पवन, विनोद कुमार, प्रमोद कुमार, राहुल कश्यप, डा. मधुसूदन, तुषार मित्तल, डा. अशोक कुमार, विजय गुप्ता, नरेश चंद शर्मा, मुकुल मित्तल, शिवम चौहान, रामदयाल सैनी, नीलम, उषा संगल, विजय लक्ष्मी शर्मा, ममता, मंजू, उर्मिला चौहान, संगीता आदि काफी संख्या में श्रद्धालु महिला भी मौजूद रही।