- कहीं अनावश्यक दबाव तो नहीं छात्रों की आत्महत्या का कारण
- बढ़ती स्पर्धा भी बन रही तनाव का मुख्य कारण
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: तेज रफ्तार दुनिया में जहां पैसे की खुशी का मानक बनती जा रही हैं, वहीं लोगों को डिप्रेशन की ओर भी धकेल रही है। एक छोटी सी नौकरी के लिए बढ़ती स्पर्धा कारण लोग सहनशक्ति खोते जा रहे हैं। वहीं देश के युवाओं में आत्महत्या का बढ़ता स्तर अंदर से हिला देने वाला है।
हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा भी किया गया है कि भारत में खुदखुशी करने वालों में सबसे अधिक संख्या युवाओं की है। हम सब जानते हैं कि हर साल लाखों बच्चे डॉक्टर व इंजीनियर बनने का सपना लेकर अपना शहर छोड़कर देश के प्रसिद्ध विवि व कॉलेजों में जाते है। मगर वहां सही माहौल या फिर अनावश्यक दवाब के चलते बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। ऐसा क्यों यह अपने आपमें एक बड़ा सवाल है।
आत्महत्या से बड़ी दुखद कोई घटना नहीं हो सकती है। हाल ही में राजस्थान के कोटा में छात्र-छात्राओं के सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। किसी भी छात्र की मौत उनके माता-पिता, समाज और देश के लिए बहुत बड़ा नुकसान हैं, जिसकी भरपाई संभव नहीं।
मेरठ में मंगलवार को एक ऐसा हादसा हुआ जिसने सभी को हिला कर रख दिया वो भी वेस्ट यूपी के जानेमाने चौधरी चरण सिंह विवि में जहां बीटेक के एक छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस संबंध में जब शहर के कुछ मनोवैज्ञानिकों से बातचीत की गई तो उन्होंने कुछ ऐसा कहा।
प्रतियोगिता के लिए बनाया जाता है दबाव
मेरठ कॉलेज मनोवैज्ञानिक डॉ. अनीता मोरल का कहना है कि कोचिंग संस्थानों में छात्रों पर प्रतियोगिता के लिए दबाव बनाया जाता है। आजकल के कोचिंग की जो भाषा है। उसमें हर सप्ताह टेस्ट लिए जाते हैं, जिनका मूल्यांकन कठिन होता है। बाहर से आने वाला बच्चा एकदम उनको पकड़ नहीं कर पाता है ऐसे में पढ़ने वाले बच्चों से अपने को आंकने लगता है। ऐसे में बच्चा मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव में होता है और कोचिंग के जाकर उसके ऊपर नंबर लाने का दबाव आ जाता है।
कोचिंग सेंटर लगातार बच्चों का मूल्यांकन करते रहते हैं, जिसमें वह तालमेल नहीं बना पाता है। इससे बचने के लिए संवाद जरूरी है। शिक्षक बच्चों को केवल सिलेबस न पढ़ाए बल्कि उनसे हर तरह की बात करे और माता-पिता बच्चों से समय-समय पर संवाद होते रहना चाहिए। बच्चों के लिए काउंसिलिंग सेंटर भी होने चाहिए कोचिंग संस्थानों में ताकि बच्चों को जागरूक किया जा सके कि उनके मन में अगर कोई गलत विचार आ रहे तो वह वहां जाकर अपनी काउंसिलिंग करा सकते हैं।
अभिभावक बच्चों की करें काउंसिलिंग
इस्माईल कॉलेज नेशनल पीजी कॉलेज मनोवैज्ञानिक डॉ. विनेता का कहना है कि छात्रों पर पढ़ाई और नौकरी का दबाव आ गया है। परिवार वालों को समझना होगा कि बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाए। समय-समय पर अभिभावक बच्चों की काउंसिलिंग करे और काउंसलर से भी राय लें।
बच्चों को समझाए कि वह अपने मन की बात किसी न किसी के साथ जरूर शेयर करे ताकि उनका मन हल्का हो और वह किसी तरह की हिंसात्मक घटना को अंजाम न दे सकें।
पापा का सपना था कि बेटा इंजीनियर बनकर घर आये, टूट गया सपना
वाराणसी बनारस से मात्र 30 किलोमीटर दूरी गांव बरकी के रहने वाले पिता नागेश पांडे के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। बेटे प्रिंसू को पढ़ाई कराने के लिए गुजरात जाकर एक प्राइवेट कंपनी में 20 हजार की नौकरी ज्वांइन की थी, लेकिन चंद दिनों पहले ही नौकरी छोड़कर गांव आ गये थे। घर में इकलौता बेटा होने की वजह से पापा का सपना था कि उनका इकलौता बेटा मेरठ से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके घर लौटेगा। बेटे को पिछले साल ही बीटेक में एडमिशन के लिए 800 किलोमीटर दूर मेरठ सीसीएसयू में भेज दिया था।
चार दिन पहले ही प्रिंसू को फीस के लिए 40 हजार रुपये भी दिये थे। सुबह ही प्रिंसू ने मां और पिता व बहन से बात की थी। बहन से बोला था कि पढ़ाई अच्छे से करना, लेकिन पिता का सारा सपना एक शीशे की तरह टूटकर बिखर गया। मां भी बेटे की मौत की खबर सुनकर सुधबुध खो बैठी। पिता को जैसे ही बेटे प्रिंसू की मौत की खबर मिली वह सन्न रह गये। नागेश वैसे ही शांत स्वभाव के एकदम सादगी का जीवन जीने वाले हैं। बड़े बेटे और एक छोटी बेटी की पढ़ाई के लिए दो चार बीघा खेती की जमीन के दम पर जैसे-तैसे बीटेक की ढाई लाख फीस का कैसे जुगाड़ हो।
इस बात की चिंता किये हर हाल में प्रिंसू को इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे प्रिंसू की मौत की खबर मिलते ही पिता दोपहर को ही अपने बेटे के शव को लेने निकल पड़े। प्रिंसू का शव बुधवार सुबह तक घर पहुंचेगा। बुधवार सुबह का सूरज परिवार पर गहरी काली छाया लेकर उदय होगा। सर्वेश शुक्ला मामा पढ़ाई के लिए खर्चा उठाते थे।
छात्रों का आरोप नहीं दी जाती सुविधा
छात्रों ने विवि प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। छात्रों के अनुसार हॉस्टल में एक-एक कमरे में तीन-तीन विद्यार्थी रखे गए हैं। छात्रों ने दावा किया कि प्रशांत पांडेय को खुद निजी कंपनी का वाई-फाई लगवाना पड़ा। छात्रों की बात नहीं सुनी जाती। कोई सीनियर बात करता है तो मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है। छात्रों के अनुसार कैंपस में ना तो कोई इंट्रेक्शन मीट हुई और ना ही कोई इवेंट। फेस्ट तक नहीं हुआ है। छात्र अकेले तनाव में रह रहे हैं। उन्हें डराया जाता है। छात्रों के अनुसार उन्हें जानबूझकर फेल किया जाता है।