प्याज का सेवन भारत के हर घर में किया जाता है ,इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। प्याज एक नगदी फसल है जो सर्दियों में उगाई जाती है। इसमें विटामिन सी, फॉस्फोरस आदि पोषक तत्व पाए जाते है, प्याज का उपयोग सलाद सब्जी और मसाले के रूप में किया जाता है। इसकी खेती से किसानों को अच्छी आमदनी मिलती है। प्याज की खेती में किसानों को कई कारकों के कारण नुकसान भी झेलना पड़ता हैं, जिनमें इसके रोग प्रमुख होते हैं।
प्याज की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय
सफेद गलन रोग
इस रोग के लक्षण जमीन के समीप प्याज के ऊपरी भाग पर गलन के रूप में दिखाई देते हैं। संक्रमित भाग पर सफेद फफूंद और जमीन के ऊपर हलके भूरे रंग के सरसों के दाने की तरह सख्त संरचनाये बन जाती है जिनको स्क्लेरोटिअ कहते है। संक्रमित पौधे मुरझा जाते है और बाद में सुख जाते है। जिसमें कंद चारों तरफ से सफेद फफूंद से ढक जाते है। आखिर में पौधा पूर्ण रूप से सुख जाता है।
सफेद गलन रोग के नियंत्रण उपाय
-खेत को मई-जून में हल्की इरीगेशन करके बाद जुताई करना चाहिए, जिससे फफूंद के स्क्लेरोटिअ अंकुरित होकर नष्ट हो जाएं।
-खेत में 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हार्ज़िनम विरिडी जैविक नियंत्रक फफूंद प्रति एकड़ गोबर के खाद में मिलाएं।
-रोपाई से पहले, बीज कंदों और प्याज की पौध को 0:1 कार्बनडाजिÞयम घोल में डाल दें।
प्याज का बेसल रोट रोग
इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं संक्रमित पत्तियां पीली हो जाती हैं और फिर सूख जाती हैं। संबंधित पौधे की पत्ती ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है। अधिक प्रकोप से पूरा पौधा सुख जाता है। प्रभावित पौधे का कंद और जड़ें नरम होकर सड़ जाती हैं और पूरे पौधे पर एक सफेद फफूंदी बन जाती है। यह रोग भंडारण में भी फैल सकता है और खेत में शुरू हो सकता है।
बेसल रोट रोग के नियंत्रण उपाय
-प्याज की खुदाई के बाद कंदों को पूरी तरह से सुरक्षित रखना चाहिए और फसल चक्र का पालन करना चाहिए।
-जिस मिट्टी में कॉपर की कमी होती है, वह इन रोगों से अधिक संवेदनशील होती है। इसके लिए कॉपर उर्वरकों का प्रयोग करें, जो मिटटी में उर्वरता बढ़ाता है।
-खासकर रेतीली मिट्टी में कॉपर की जरूरत अधिक होती है। -अगर खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण दिखाई दें, तो कॉपर आॅक्सीक्लोराइड 0.25 प्रतिशत को सीधे मिट्टी में डाल दें।
डाउनी मिल्डू रोग
इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के कवक तंतु की वृद्धि, छोटे सफेद धब्बे जिनमें अधिक आदरता और नमी होती है। अधिक संक्रमण से प्रभावित पत्तिया भाग मुलायम होकर लटक जाता है और आखिर में फिर सारी पत्तियां सूख जाती हैं।
नियंत्रण के उपाय
-बुवाई के लिए प्रमाणित बीज का प्रयोग करें और मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत के तीन छिड़काव प्रभावी होता है इनको अपनाएं।
-छिड़काव 20 दिन से शुरू कर देना चाहिए, रोपाई के बाद और 10-12 दिनों के अंतराल पर दोहराएं।
-बुवाई से पहले कैप्टन/थीरम 0.25 प्रतिशत के साथ बल्ब उपचार करें; रोग नियंत्रण के लिए क्लोरोथालोनिल और मैंकोजेब का छिड़काव भी प्रभावी देखने को मिलता हैं।
पाइथियम रूट सड़ांध रोग
पाइथियम रूट सड़ांध (बोट्राइटिस) प्याज ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में सबसे आम रोग माना जाता है। पैदावार को हल्का संक्रमण प्रभावित नहीं करता है। इस रोग से प्रभावित कंद सड़ जाते हैं और अंकुरण से पहले मर जाते हैं। अधिक प्रकोप होने पर सभी प्रभावित पौधे मर जाते हैं। यदि बीज अंकुरण से पहले रोग का प्रकोप हो तो अंकुरण मिट्टी से बाहर आने से पहले ही मर जाते है। रोग फसल की बुवाई या रोपण के 15 से 30 दिनों के बाद भी प्याज को प्रभावित कर सकता हैं। यदि रोग देर से पौधे को संक्रमित करता है तो पौधे में बौनापन और जड़ों के सड़ने का कारण बनता है।
पाइथियम रूट सड़ांध रोग के नियंत्रण उपाय
-रोग से बचाव के लिए थीरम या कैप्टान @ 4 ग्राम/किलोग्राम से बीज उपचार करें।
-बल्बों को थिरम 0.25 प्रतिशत में डुबाया जा सकता है इससे रोग का अच्छा समाधान किया जा सकता है ।
-अंकुरण के बाद, कॉपर आॅक्सीक्लोराइड 0.25 प्रतिशत घोल बना कर पौधों की जड़ो में ड्रेंचिंग करें इससे रोग को खत्म किया जा सकता हैं।