Tuesday, July 9, 2024
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मेडिकल के डाक्टर करते हैं निजी प्रैक्टिस

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  • कैंपस में भी देखते हैं मरीज, 200 से अधिक है एमबीबीएस के डाक्टरों की संख्या
  • 60 से 70 हजार है तनख्वाह, निजी प्रैक्टिस से होती है अधिक कमाई

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सरदार वल्लभ भाई पटेल मेडिकल कॉलेज में रोजाना बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं, लेकिन यहां पर इलाज के नाम पर उनके साथ खिलवाड़ होता है। बड़ी संख्या में मरीजों को डाक्टर निजी रूप से देखते हैं। जिसके बदले मोटी फीस वसूली जाती है। जबकि मरीजों को सरकारी इलाज मिलना चाहिए।

मेडिकल कॉलेज में एचओडी, एसआर यानी सीनियर रेजिडेंट डाक्टरों व जूनियर डाक्टर्स की संख्या 200 से अधिक है। जिनका काम मेडिकल की ओपीडी में आनें वाले मरीजो को अच्छा इलाज मुहैया कराना है, लेकिन यहां पर मरीजों को इलाज के नाम पर धोखा दिया जाता है। मिली जानकारी के अनुसार कई डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते हैं और मरीजो को अपने निजी संस्थान में इलाज के लिए बुलाते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।

शासन स्तर पर मेडिकल के डाक्टरों को अच्छी-खासी तनख्वाह मिलती है। बावजूद इसके यह डाक्टर गरीब मरीजों को सरकारी इलाज मुहैया कराने से परहेज करते हैं। कुल मिलाकर मेडिकल कॉलेज में इलाज के नाम पर मरीजों को धोखा दिया जाता है। यहां पर आने वाले मरीज अधिकतर गरीब परिवारों से होते हैं, जो यहां अच्छा व सस्ता इलाज होने की आस में पहुंचते हैं, लेकिन होता इसका उल्टा है।

यहां पर मरीजों को टेस्टिंग से लेकर दवाइयों के लिए बाहर भेजा जाता है। इसके बदले मरीजों के तीमारदारों अच्छी खासी रकम वसूली जाती है, कुल मिलाकर मेडिकल कॉलेज में मरीजों को अच्छा इलाज देने के बदले डाक्टर अपनी कमाई कैसे हो, इसमें लगे रहते हैं। जिससे गरीब जनता अपने आपको ठगा-सा महसूस करती है।

क्या होता है डाक्टरों का रैंक?

एमबीबीएस करने के बाद सबसे पहले डाक्टरों को जूनियर रेजिडेंट डाक्टर पहले का पद मिलता है, इसके बाद जूनियर रेजिडेंट डाक्टर दूसरे व जूनियर रेजिडेंट डाक्टर तीसरे का रैंक मिलता है। इसके बाद सीनियर रेजिडेंट डाक्टरों का पद होता है। अंत में एचओडी का रैंक होता है जो किसी भी विभाग में हेड का पद होता है।

नॉन जूनियर डाक्टर

यह वह डाक्टर होते हैं, जिन्होंने एमबीबीएस तोे कर लिया होता है, लेकिन वह मेडिकल कॉलेज की लिस्ट में शामिल नहीं हुए होते हैं। यह डाक्टर सबसे अधिक निजी प्रैक्टिस करते हैं।

पेड्रियोडिक विभाग

इस विभाग में बच्चों का इलाज होता है, लेकिन यहां पर तैनात एक डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते हुए बाहर इलाज करते हैं। डाक्टर इलाज के नाम पर गरीब जनता को निजी अस्पतालों में इलाज कराने को कहते हैं। जबकि मेडिकल कॉलेज में सरकार द्वारा हर तरह की चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के संसाधन दिए गए हैं।

ईएनटी विभाग

इस विभाग में नाक, कान व गले का इलाज होता है, लेकिन यहां के भी एक डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते हैं और मरीजों को बाहर इलाज कराने को कहते हैं। हालांकि मरीज इतनी आसानी से तैयार नहीं होता जिसके बाद डाक्टर इलाज में लापरवाही करने तक पर उतारू हो जाते हैं।

निजी प्रैक्टिस में वसूली जाती है मोटी फीस

मेडिकल कॉलेज के जो डाक्टर बाहर प्रैक्टिस करते हैं वह एक मरीज से 500 रुपये या उससे अधिक फीस वसूलते हैं। इससे उनको सरकार से मिलने वाली तनख्वाह से अधिक की कमाई होती है।

निजी नर्सिंग होम या प्राइवेट अस्पतालों में देखने जाते हैं मरीज

कई डाक्टर मेडिकल कॉलेज में तैनात होने के बाद भी निजी नर्सिंग होम या प्राइवेट अस्पतालों में मरीजो को देखने जाते हैं। यहां से उन्हें हर विजिट व मरीज के मुताबिक अच्छी फीस मिलती है। ऐसे में सरकार से मिलने वाली तनख्वाह से अलग भी मोटी कमाई होती है।

मेडिकल की इमरजेंसी में प्राइवेट लैब के कर्मचारी लेते हैं सैंपल

इमरजेसी में आनें वाले मरीजों का टेस्ट कराने के लिए निजी लैबों के कर्मचारी हर समय इमरजेंसी में मौजूद रहते हैं। यहां पर मौजूद डाक्टर इन निजी लैबों के कर्मचारियों से टेस्ट कराने का दबाव बनाते हैं। मेडिकल कॉलेज के पास ही स्थित एक निजी लैब में ही सबसे ज्यादा मरीजों के सैंपलों की जांच होती है।

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