नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। हिन्दी सिनेमा के डिस्को डान्सर और राजनेता मिथुन चक्रवर्ती के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है। दरअसल, अभिनेता को दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया है। जिसपर मिथुन चक्रवर्ती ने प्रसन्ना जताते हुए कहा, कभी सोचा भी नहीं था कि फुटपाथ से निकला एक लड़का इतना बड़ा सम्मान प्राप्त कर सकता है। 90 के दशक में अपनी अदा से हर किसी को दीवाना कर देने वाले मिथुन दा कभी मुंबई में टैक्सियां धोया करते थे। उन्होंने न जाने कितनी रातें भूखे पेट सोकर गुजारीं। यही नहीं, फिल्म जगत में आने के बाद भी अपने रंग को लेकर कई बार अपमान झेला।
अभिनेता ने कहा, एक ऐसा व्यक्ति जो सचमुच कुछ नहीं था, जिसका कोई नाम नहीं था, उसने यह सब हासिल किया। मैं हमेशा अपने प्रशंसकों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों से यही कहता हूं, अगर मैं यह मुकाम बना सकता हूं तो आप भी कर सकते हैं। मैं इस सम्मान को अपने परिवार और पूरे विश्व में अपने प्रशंसकों को समर्पित करता हूं। मिथुन पूर्व में कई मौकों पर अपने संघर्षों की कहानी बयां करते हुए बता चुके हैं कि उन्हें 70 और 80 के दशक में कई बार अपनी त्वचा के रंग की वजह से अपमान सहना पड़ा। वह बताते हैं कि संघर्ष के दिनों में उन्हें कई रात सड़क पर गुजरानी पड़ीं और कई बार तो उन्हें समझ नहीं आता था कि अब उन्हें खाना कब और कैसे मिलेगा।
इतनी फिल्मों में किया काम
मिथुन ने अपने फिल्मी कॅरिअर में हिंदी, बांग्ला, तमिल, तेलुगु सहित कई भाषाओं की 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है, लेकिन उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का परिचय पहली ही फिल्म से करा दिया था। उन्होंने एक्टिंग की शुरुआत मृणाल सेन की फिल्म मृगया से की, जो आदिवासियों के शोषण पर केंद्रित थी।
अभिनेता के हाथ में हुआ फ्रैक्चर
वैसे मिथुन दा ने सोचा तो यह भी नहीं होगा कि जब उन्हें इतना बड़ा सम्मान मिलेगा तो वह ठीक से गुलदस्ता तक स्वीकार नहीं कर पाएंगे। दरअसल, उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया है और वह टूटे हाथ के साथ ही कोलकाता में एक बांग्ला फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं।
पहली फिल्म के लिए ही मिला था राष्ट्रीय पुरस्कार
बता दें कि, मिथुन अपनी पहली ही फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले एकमात्र अभिनेता हैं। उनकी पहली फिल्म 1976 में आई मृगया थी, जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। मिथुन एकमात्र ऐसे अभिनेता है, जिन्होंने अपनी पहली फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। उन्होंने 1993 की फिल्म तहादेर कथा के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और 1996 में स्वामी विवेकानंद में स्वामी रामकृष्ण की भूमिका के लिए सर्वेश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। इस वर्ष जनवरी में उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
एक दशक पहले शुरू हुई सियासी पारी
प्रशंसकों के बीच मिथुन दा के नाम से लोकप्रिय अभिनेता ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत राज्यसभा से की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल ने उन्हें फरवरी 2014 में राज्यसभा भेजा। हालांकि, 26 दिसंबर 2016 को उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव से पूर्व सात मार्च को उन्होंने पीएम मोदी की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ली।
फिल्म जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार है दादा साहब फाल्के अवार्ड
बता दें कि, दादा साहब फाल्के पुरस्कार सिनेमा जगत का सर्वोच्च पुरस्कार है। भारतीय सिनेमा के विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित हस्तियों को स्वर्ण कमल पदक, एक शॉल और एक लाख रुपये की नकद राशि प्रदान की जाती है। भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के के सम्मान में इस पुरस्कार की शुरुआत 1969 में हुई थी, जो हर साल प्रदान किया जाता है।