Wednesday, July 9, 2025
- Advertisement -

मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर

Samvad 52


RAJESH MAHESHWARI 2पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव जारी हैं। पूर्वाेत्तर के राज्य मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में मतदान हो चुका है। राज्स्थान में 25 नवंबर और दक्षिण भारत के राज्य तेलगांना में 30 नवबंर को वोटिंग हैं। अगले साल देश में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में इन पांच राज्यों के नतीजे देश की राजनीति पर असर डालेंगे। खासकार हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजे का असर भविष्य की राजनीति पर ज्यादा देखने को मिलेगा। इन तीन राज्यों से लोकसभा के 65 सांसद चुनकर संसद में पहुंचते हैं। तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा में अगर भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं थीं तो वो इसी इलाके से मिलीं थीं।
तीन दिसंबर को पांचों राज्यों के परिणाम एक साथ घोषित होंगे। ऐसे में हिंदी पट्टी के विधानसभा के चुनावों के नतीजों पर पूरे देश की नजर रहेगी क्योंकि इनके परिणाम आते ही आने वाले लोकसभा के चुनावों में क्या कुछ होगा इसके कुछ तो संकेत मिलने लगेंगे। तो क्या ये मान लिया जाए कि इन राज्यों के परिणामों से समझा जा सकेगा कि आम चुनावों में ऊंट किस करवट बैठ सकता है? लेकिन यह तय है कि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष बदले हालातों के हिसाब से लोकसभा के लिए रणनीति बनाएगा। इतिहास के पन्ने पलटे तो साल 2003 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय हासिल हुई थी। इससे अति आत्मविश्वास में भरकर अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार ने लोकसभा भंग कर जल्दी चुनाव करवा दिए किंतु निराशा हाथ लगी और दस साल तक भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल हो गई। लेकिन इसका उल्टा देखने को मिला साल 2018 में जब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार बनाई किंतु कुछ महीनों बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन राज्यों में जबरदस्त सफलता मिली। इन दो उदाहरणों से ये साबित हुआ कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाता एक ही पार्टी या गठबंधन को समर्थन दें ये जरूरी नहीं है। अनेक राज्यों के मतदाताओं ने राज्य और केंद्र की सरकार लिए अलग-अलग दलों को वोट देकर ये संदेश दिया कि उन्हें अपने वोट का समुचित उपयोग करने की भरपूर समझ है।

ये देखते हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मौजूदा विधानसभा चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव की रिहर्सल मान लेने पर भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। इन तीनों में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। यद्यपि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और आम आदमी पार्टी भी मैदान में कुछ सीटों पर लड़ रही हैं लेकिन उनकी अहमियत तभी रहेगी जब उनके कुछ विधायक जीतें और त्रिशंकु विधानसभा बने। 2018 में म.प्र में ऐसा हुआ भी। लेकिन जो संकेत आए हैं उनके अनुसार तीनों राज्यों में जो भी सरकार बने उसके पास स्पष्ट बहुमत होगा।
वहीं ये चुनाव नतीजे भाजपा और कांग्रेस की राजनीति की दशा और दिशा तो तय करेंगे ही वहीं कई अन्य दलों का भविष्य भी ये चुनाव तय करने वाले हैं। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के बाद आम आदमी पार्टी ने मध्य प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है। आप ने 66 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, इस बार बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बीच गठबंधन से दोनों दलों को लाभ-हानि इनकी आगे की दिशा तय करेगी। पहली बार भीम आर्मी यानी आजाद समाज पार्टी, कांशीराम ने भी 86 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। आजाद समाज पार्टी की पैठ भी अनुसूचित जाति वोटरों के बीच है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में बसपा को पांच प्रतिशत से अधिक मत मिलते रहे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली थी। बसपा और जीजीपी के गठबंधन के बाद दोनों में किसे-कहां लाभ होता है, इसी आधार पर दोनों की आगे की दिशा तय होगी।

कांग्रेस को उम्मीद है कि मध्य प्रदेश की सत्ता भाजपा से छीन लेने के साथ ही वह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बचाए रखने में कामयाब हो जाएगी। दूसरी तरफ भाजपा मध्य प्रदेश में स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी का भरोसा पालने के साथ ही राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने तथा छत्तीसगढ़ में 2018 से बेहतर प्रदर्शन करने के प्रति आश्वस्त है। दोनों का आशावाद उनके अपने आकलन पर आधारित है लेकिन जो बात जनता के बीच से निकलकर आ रही है उस पर यकीन करें तो इस विधानसभा चुनाव के परिणामों का आगामी लोकसभा चुनाव पर असर पड़ने की संभावना बहुत ज्यादा नहीं हैं। हालांकि जो लोक लुभावन घोषणाएं विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों की तरफ से की गईं उनसे मतदाता प्रभावित हो सकते हैं।

अगर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहता है या वो जीत हासिल करती है तो जो विभिन्न विपक्षी दलों का नया गठबंधन, जो राष्ट्रीय स्तर पर बना है, उसमें कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी और इससे भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लेकिन अगर कांग्रेस इन तीन राज्यों में कामयाब नहीं होती है तो आम चुनावों में भाजपा को एक तरह से ‘वाक ओवर’ मिल जाएगा यानी दिल्ली की सत्ता में फिर वापसी का उनका रास्ता आसान हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा तो तब इंडिया गठबंधन में शामिल छोटी—छोटी पार्टियां भी उसे आंखें दिखाने से बाज नहीं आएंगी। इस आधार पर कह सकते हैं कि संदर्भित तीनों राज्यों के चुनाव परिणाम भाजपा विरोधी गठबंधन का भविष्य निश्चित करेंगे।

इन चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी कसौटी पर है। अगर तीन राज्यों में भाजपा का खराब प्रदर्शन होता है तो फिर उसके पास सिर्फ उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्य ही रह जाएंगे। इन तीन राज्यों में दो ही राजनीतिक दलों का दबदबा रहा है, इसलिए लोकसभा चुनावों में विपक्ष की एकता पर यहां के नतीजों का असर जरूर पड़ेगा। हालांकि कांग्रेस बाकी विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करती तब उसे 2024 का पूर्वाभ्यास कहा जा सकता था। लेकिन उक्त तीनों राज्यों में गैर भाजपा पार्टियां एकजुट नहीं हो सकीं जिसके लिए सपा, आम आदमी पार्टी और जनता दल यूनाईटेड ने कांग्रेस की आलोचना भी की।

ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधी विपक्षी पार्टियों की मोर्चेबंदी पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। भाजपा ने प्रधानमंत्री के नाम पर उक्त तीनों राज्यों में चुनाव लड़कर बड़ा जोखिम उठाया है। यदि परिणाम प्रतिकूल आए तब कांग्रेस को ये कहने का अवसर मिल जायेगा कि मोदी की गारंटी पर मतदाताओं का भरोसा नहीं रहा। हिमाचल और कर्नाटक के बाद यदि उक्त तीन में से भाजपा दो राज्यों में नहीं जीती तब वह दबाव में आ जाएगी।


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

उम्र बढ़ने के साथ खानपान में बदलवा जरूरी

सुनीता गाबावृद्धावस्था जीवन का एक ऐसा मोड़ है जिसका...

मसालों से भी होता है उपचारं

अनूप मिश्राप्रकृति ने हमें अनेक अमूल्य जड़ी-बूटियां एवं मसाले...

शिक्षित भी स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह

आधुनिक युग में चिकित्सा सेवा जरूर आधुनिक हो गई...

राष्ट्र सेवा

लीबिया के लिबलिस शहर के एक प्रमुख अस्पताल में...
spot_imgspot_img