हमारे देश में करीब तीस करोड़ लोग आॅनलाइन गेम खेलते हैं और जल्द ही यह आंकड़ा 55 करोड़ तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। इन आंकड़ों से सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में कितनी बड़ी आबादी आॅनलाइन गेम खेलने में अपना समय बर्बाद कर रही है। वर्तमान समय में गूगल प्लेस्टोर पर ही 30 लाख से अधिक मोबाइल फोन एप्लिकेशन हैं। इनमें 4 लाख 44 हजार आॅनलाइन गेमिंग ऐप हैं। 19 हजार 632 गेमिंग ऐप भारत में बने हुए हैं। फेडरेशन आॅफ इंडियन चैम्बर्स आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्टडी की मानें तो भारत में साल 2023 तक रियल मनी गेमिंग का बाजार 13 हजार 300 करोड़ होने की बात कही जा रही है।
वर्तमान दौर में सोशल मीडिया का चलन बढ़ता जा रहा है। कोरोना काल में जिस तरह दुनिया आॅनलाइन प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ी है, उसने बेशक हमारे जीवन को आसान बना दिया है और आज भले ही हम तकनीकी में मशगूल होकर इतरा रहे हैं, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। युवाओं में आॅनलाइन गेम का चलन बढ़ रहा है, जिससे युवाओं में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक 16 साल के युवक ने अपनी मां की हत्या सिर्फ इस बात पर कर दी कि उसने अपने बेटे को मोबाइल गेम खेलने से मना किया था। कुछ ऐसी घटना अमेरिका में भी देखने को मिली थी, जहां 18 साल के युवक ने 19 मासूम बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था। ऐसे में सहजता के साथ देखा जा सकता है कि दोनों घटनाओं में काफी समानता है। जहां एक तरफ दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि बंदूक तक बच्चों की आसान पहुंच सुनिश्चित हो रही है, तो दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर युवा हिंसा की तरफ अग्रसर हो रहें हैं। जो चिंता का कारण बनता जा रहा है। एक रिसर्च की मानें तो जो बच्चे आॅनलाइन गन वायलेंस वाले गेम देखते है या उन्हें खेलते है उनमें गन पकड़ने और उसका ट्रिगर दबाने की इच्छा कई गुना बढ़ जाती है।
वर्तमान दौर में आॅनलाइन गेमिंग का चलन जिस कदर युवाओं पर हावी हो रहा है, वो कहीं न कहीं बच्चों में हिंसा को बढ़ावा दे रहा है। कोरोना काल में जिस तरह से दुनिया आॅनलाइन प्लेटफार्म की ओर बढ़ी, उसमें बेशक हमारे जीवन को आसान और सुलभ बनाया, लेकिन इसी कोरोना काल ने बच्चों को भी स्मार्टफोन के काफी करीब ला दिया। जिसकी वजह से हुआ यह कि अब बच्चे मोबाइल-फोन से चिपकने के बाद सदाचार और सामाजिक मूल्यों से दूर जा रहे हैं, जिसके दुष्प्रभाव हम सभी के सामने हैं।
सोचिए मां का ममत्व एक बच्चे के लिए कितना मायने रखता है, लेकिन एक गेम की लत में उलझकर अगर कोई नवयुवक अपनी मां की ही हत्या कर दे, फिर आप समझ सकते हैं कि कैसे मानसिक और बौद्धिक स्तर पर ये आॅनलाइन गेम युवाओं में हीनता का भाव भर देते हैं। गौरतलब हो कि 16 वर्षीय युवक ने लखनऊ में अपनी मां को आॅनलाइन गेम की वजह से मौत के घाट ही नहीं उतारा, बल्कि परिजनों को भी धमकाकर रखा कि वो उसकी सच्चाई दुनिया के सामने न लाएं। यह वाकया हमें बताता है कि मोबाइल-फोन कहीं न कहीं बौद्धिक विकास का वाहक भी बन रहा है, लेकिन यह किस दिशा में उपयोग हो रहा, यह भी मायने रखता है। वैसे लखनऊ की यह घटना कोई पहली घटना नहीं है, जब आॅनलाइन गेमिंग के चलते किसी परिवार की खुशियां उजड़ी हों। जनवरी 2022 में राजस्थान के अलवर जिले के दो सगे भाई की मौत की वजह आॅनलाइन गेम बन गया था। आॅनलाइन गेम के चलते मौत की घटनाएं मीडिया की सुर्खियां बनती है। यह सिर्फ भारत की ही समस्या नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर आॅनलाइन गेम के कारण बच्चे मानसिक अवसाद के दलदल में फंसते जा रहे हैं।
एक समय था, जब बच्चे खेल के मैदान में पसीना बहाकर अपना मनोरंजन किया करते थे। लेकिन आज बच्चे इंटरनेट के आदी हो चले हैं और परिवार अब संयुक्त न होकर एकाकी हो गए हैं, जिसके कारण बच्चे अब चिड़चिड़े और जिद्दी भी हो रहे हैं। इंटरनेट पर मिलने वाले गेम बच्चों को भले रोमांचित कर रहे हैं, लेकिन हर सेकंड बदलती दुनिया, पल पल बढ़ते रोमांच ने बच्चों को मोबाइल फोन की लत लगा दी है। बच्चे घंटों मोबाइल फोन से चिपके रहते हैं। चीन की बात करें तो करीब ढाई करोड़ लोग आॅनलाइन प्लेटफार्म पर समय व्यतीत कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक करीब 17 घंटे इंटरनेट पर बिताते हैं। यही वजह है कि चीन ने आॅनलाइन गेम पर रोक लगा दी है। अब वहां बच्चे सप्ताह में तीन दिन मात्र तीन घंटे ही आॅनलाइन गेम खेल सकते हैं। निश्चित ही यह चीन की एक सराहनीय पहल है। वहीं हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे अधिक इंटरनेट का उपयोग करने वाला देश बन गया है। बच्चों के मोबाइल फोन इस्तेमाल की ही बात करें तो वर्तमान समय में छोटे-छोटे बच्चे भी मोबाइल फोन के मोह में उलझ रहे हैं।
हमारे देश में करीब तीस करोड़ लोग आॅनलाइन गेम खेलते हैं और जल्द ही यह आंकड़ा 55 करोड़ तक पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। इन आंकड़ों से सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में कितनी बड़ी आबादी आॅनलाइन गेम खेलने में अपना समय बर्बाद कर रही है। वर्तमान समय में गूगल प्लेस्टोर पर ही 30 लाख से अधिक मोबाइल फोन एप्लिकेशन हैं। इनमें 4 लाख 44 हजार आॅनलाइन गेमिंग ऐप हैं। 19 हजार 632 गेमिंग ऐप भारत में बने हुए हैं। फेडरेशन आॅफ इंडियन चैम्बर्स आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्टडी की मानें तो भारत में साल 2023 तक रियल मनी गेमिंग का बाजार 13 हजार 300 करोड़ होने की बात कही जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी आॅनलाइन गेमिंग को मानसिक अस्वस्थता की स्थिति मानता है। इसे कोकीन और जुए से भी खतरनाक लत माना गया है। कोरोना काल के बाद आॅनलाइन गेम खेलने की लत काफी हद तक बढ़ गई है। इसका सबसे बड़ा कारण एकल परिवार का बढ़ता चलन है। पहले के समय में संयुक्त परिवार की परम्परा थी। बच्चे अपने परिवार के सदस्य के साथ समय व्यतीत करते थे। दादा दादी के साथ कहानियां सुनते थे। लेकिन इस भागदौड़ भरी जिंदगी में परिवार में बिखराव आ गया है। बच्चे अकेले हो गए हैं और माता-पिता अपनी व्यस्तता के कारण खुद ही बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन थमा देते हैं, जिसकी परिणीति सभी के सामने है। ऐसे में अब वक्त की मांग है कि अपने बच्चे की इस लत को छुड़ाने के लिए आपको उसे डांटने-पीटने के बजाय प्यार से उसे समझाना चाहिए उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करना होगा। उसे आपकी एटेंशश्न की जरूरत होती है। अगर आप उसका ध्यान नहीं रख पा रहे हैं, उसके साथ समय नहीं बिता पा रहे हैं तो फिर अगला नंबर आपके परिवार का भी हो सकता है, क्योंकि डिजिटल दुनिया में आज कई गेम मौजूद हैं, जो बच्चो को हिंसक बना रहे हैं।