एस सुभाष शिरढोनकर |
‘प्यार का पंचनामा’ (2011) से बॉलीवुड में एंट्री करने वाले एक्टर कार्तिक आर्यन की इमेज एक रोमांटिक हीरो की है। वे इस मामले में बेहद खुशनसीब कहे जा सकते हैं कि कैरियर के शुरुआती दौर में ही उन्हें सुभाष घई जैसे जूनियर शो मैन की ‘कांची:द अनब्रेकेबल’ जैसी फिल्म में काम करने का अवसर मिला। लेकिन बदकिस्मती से बॉक्स आॅफिस पर कार्तिक अभिनीत इस फिल्म का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ (2011) में पहली बार कार्तिक आर्यन को कामयाबी मिली। यह 100 करोड़ के क्लब में शामिल होने वाली उनकी पहली फिल्म बनी। जिस तरह से करण जौहर ने अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘दोस्ताना 2’ के लिए कार्तिक को साइन करने के बाद बाहर कर दिया, उसके बाद यदि कार्तिक की जगह कोई और होता तो टूट कर बिखर चुका होता लेकिन वह पहले की तरह पूरे परिश्रम और जोश के साथ अपने काम में जुटे रहे। कार्तिक आर्यन हाल ही में ‘भूल भुलैया 2’ में नजर आए और उनकी यह फिल्म अब तक 231 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस कर चुकी है। इसके बाद कार्तिक आर्यन अब ‘फ्रेडी’, ‘शहजादा’ और ‘कैप्टन इंडिया’ जैसी फिल्मों में नजर आएंगे। प्रस्तुत हैं कार्तिक आर्यन के साथ की गई बातचीत के मुख्य अंश:
एक लंबे संघर्ष के बाद आखिर आप इस इंडस्ट्री में अपने लिए एक सुरक्षित मुकाम बना चुके हैं। कैसा महसूस हो रहा है?
-मैं खुद को बेहद खुशकिस्मत मानता हूं कि लोग मुझसे इतना प्यार करते हैं वर्ना इसके पहले ऐसा बहुत बार हुआ जब मुझे लगता था कि यहां कुछ भी नहीं हो रहा, इसलिए मैं अपना सामान पैक कर मम्मी पापा के पास ग्वालियर लौट जाऊं लेकिन हर बार यही सोच कर रुक जाता था कि आखिर मेरे दोस्त यार क्या कहेंगे।
करण जौहर के बैनर की ‘दोस्ताना 2’ हाथ से निकल जाने के बाद लोग आपसे उसकी वजह जानना चाहते थे, लेकिन उस वक्त आपने खामोशी की चादर ओढ़े रखी?
-कई बार जब चीजों को काफी बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है, हमारा इस तरह प्रभावित होना स्वाभाविक है। उस वक्त हमारे जहन में सिर्फ यही ख्याल आता है कि आखिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है, लेकिन उस चीज को हम जितनी जल्दी भूल जाएंगे, उतने ही फायदे में रहेंगे। उस वक्त मुझे बस अपने परिवार को लेकर थोड़ी चिंता अवश्य थी, क्योंकि वे इस इंडस्ट्री से संबंधित नहीं हैं लेकिन मुझे पता था कि मैं कुछ बोलूं या न बोलूं, लेकिन मेरा काम ही है जो हमेशा बोलता रहेगा।
आपकी स्क्रीन इमेज एक लवर बॉय की रही है। ऐसे में ‘धमाका’ में पहली बार अर्जुन पाठक वाला ग्रे केरेक्टर करते हुए मन में किसी तरह का डर महसूस हो रहा था?
-एक के बाद एक लगातार दो लॉक डाउन ने मुझे रिस्क लेने के लिए निडर बना दिया था, इसलिए मैंने उस किरदार को स्वीकार करते हुए रिस्क लिया। मैं जैसे जैसे फिल्म की शूटिंग करता गया, मेरा रोमांच बढ़ता गया। उस केरेक्टर की तरह मैं भी अपनी रियल लाइफ में कितनी बार सर्वाइवल सिचुएशन में फंस चुका हूं, इसलिए मुझे वह एक रियल लाइफ केरेक्ट लगा।
क्या अब आप एक एक्टर के तौर पर सिर्फ वही सब कुछ कर रहे हैं जो करना चाहते थे?
-जी बिलकुल। पहले मेरे पास विकल्प नहीं थे। आज मैं उस स्टेज पर हूं जहां लोग मुझ पर भरोसा करने लगे हैं। मेरा विश्वास भी खुद के प्रति काफी बढा है लेकिन इसके साथ जो जिम्मेदारी का भाव मेरे अंदर आया है, उसने मेरी चिंता को थोड़ा बढ़ा दिया है। मैं ऐसा काम करना चाहता हूं, जिसे करने के बाद मुझे लगे कि, यार मैंने कुछ अलग किया है।
ऐसा कौनसा किरदार है जिसे करने की इच्छा है लेकिन उसका आॅफर अब तक नहीं मिल सका है?
-चाहे किसी तरह का किरदार हो या कैसी भी फिल्म हो, बस मेरी इच्छा यही है कि मैं लोगों को एंटरटेन करता रहूं। अगर इसमें मैं कहीं पिछड़ भी जाता हूं तो उसमें सुधार करने की कोशिश अवश्य करता हूं। यदि अवसर मिला तो मैं मशहूर उद्योगपति रतन टाटा और मेरे आयडल क्रिकेटर विराट कोहली की बायोपिक में उनके किरदार निभाना चाहूंगा।