हथकरघा उद्योग भारत में रोजगार का स्वदेशी और प्राचीन जरिया है। कृषि के बाद हथकरघा ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें मजदूरों की बहुत बड़ी संख्या है। हथकरघा सर्वाधिक रोजगार देने वाला कुटीर उद्योग है। महात्मा गांधी ने हथकरघा को उद्योग बनाकर युवाओं को स्वावलंबी बनाने का सपना देखा था। महिलाएं हथकरघा उद्योग की रीढ़ हैं। देश की 50 फीसदी से ज्यादा बुनकरों की आबादी देश के उत्तर-पूर्व राज्यों में जिसमें से ज्यादातर महिलाएं हैं। इस क्षेत्र में लगातार संकट मंडराता ही जा रहा है। बुनकरों को 14 से 16 घंटे काम करना पड़ता है और मजदूरी बहुत कम मिलती है। कई बुनकर कर्ज में डूबे हुए हैं। बहुत सारे हथकरघा बुनकर मजबूर होकर रोजगार छोड़ रहे हैं और कुछ बुनकरों ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली है। स्वास्थ्य बीमा योजनाएं इन तक पहुंची नहीं हैं।
बुनकरों को सांस से संबंधित बीमारियां हो रही हैं, लेकिन उन्हें उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
दुनिया भर में हाथ से बने उत्पादों की मांग बढ़ रही है। बुनकरों द्वारा हथकरघों पर बनाई साड़ियां हजारों रुपये में बिकती हैं, लेकिन बुनकरों की मजदूरी नहीं बढ़ रही है। बुनकर मजदूरों को 20 साल पहले की दर से ही मजदूरी मिल रही है। इस व्यवसाय में बड़े कारोबारी और बिचौलिएं पैसा बना रहे हैं। ये बुनकरों की आवाज को दबा देते हैं। बुनकर सिर्फ मजदूर ही रह गए हैं, वे कारोबारी नहीं बन पाए हैं। बुनकर अपने परिवार की रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह कहा जाता है कि भारतीय बुनकरों कि स्थिति जो अंग्रेजों के शासन के समय थी उससे बेहतर नहीं है। बुनकरों का दर्द किसी को भी नहीं दिखाई दे रहा है।
सरकार का ध्यान पॉवरलूम क्षेत्र पर अधिक है। बुनकरों के हाथों से बने कपड़ों की मांग हमारे देश में तो है ही लेकिन विदेशों में भी काफी मांग है। इस व्यवसाय से विदेशी मुद्रा मिलती है लेकिन वह विदेशी मुुद्रा बड़े कारोबारियों और बिचौलियों के जेब में जाती है। सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि बुनकर, कारीगर सीधे बाजार में अपना माल बेच सके। हथकरघा उद्योग में अधिक संकट वर्ष 1995 के बाद शुरू हुआ। वर्ष 1996 में सरकार ने चीन के लिए बाजार खोल दिया था। हमारे यहां बुनकर हथकरघा में कपड़ा तैयार करते हैं, यदि तैयार करने की लागत एक सौ रुपए है वही कपड़ा चीन हमारे यहां 80 रुपए में बेच रहा है।
बुनकरों के कल्याण के लिए सरकार ने कई कदम उठाए। सरकार ने हथकरघा उद्योग के विकास के लिए दर्जनों कल्याणकारी योजनाएं जैसे क्लस्टर योजना, बुनकर स्वास्थ्य बीमा योजना, बुनकर सब्सिडी योजना, पॉवरलूम सब्सिडी योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, हथकरघा संवर्धन सहायता योजना प्रारंभ की लेकिन बुनकरों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। समस्त बुनकर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और ये सारी कल्याणकारी योजनाएं दम तोड़ चुकी हैं।
हथकरघा संवर्धन सहायता योजना तो पिछले वर्ष ही शुरू हुई थी जिसमें बुनकरों को नए करघों की लागत का 90 फीसदी सरकार मूल्य सरकार को वहन करना था और मात्र 10 फीसदी मूल्य बुनकर को वहन करना था। यह स्कीम बहुत अच्छी है लेकिन इस उद्योग में बजट की कमी और कार्यपालिका द्वारा योजना का उचित क्रियान्वयन नहीं होने से यह योजना भी अपना दम तोड़ चुकी है। वर्ष प्रतिवर्ष सरकार इस क्षेत्र के बजट आवंटन में अनुचित तरह से काफी कमी करती जा रही है, जिससे इस क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग निरूत्साहित होते जा रहे हैं।
कम बजट आवंटित होने से महिलाओं की एक बहुत बड़ी संख्या और उनके परिवार को रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। यह बहुत बड़ी विडम्बना है कि सरकार हथकरघा उद्योग के उत्पादन के आंकड़ों की तुलना पावर लूम सेक्टर से करती है। मुद्रा स्कीम के तहत 50 हजार रुपए से लेकर दस लाख रुपए तक के ऋण की सुविधा बुनकरों के लिए उपलब्ध है। इस प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में भी बिचौलियों और दलालों के कारण कुछ बुनकरों को कर्ज तो मिला लेकिन ऋण की राशि इतनी कम थी कि बुनकर इस उद्योग से संबंधित सारी मशीनरी नहीं खरीद पाए और वे अपना उत्पादन प्रारंभ नहीं कर पाए और इन पर कर्ज का बोझ और हो गया।
नाबार्ड भी इस क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से प्रतिवर्ष वित्त पोषण कम करता जा रहा है। सरकार के अनुसार बुनकरों के बच्चे जो इग्नू और एनआईओएस में स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं और उनकी फीस का 75 फीसदी भुगतान सरकार करेगी। यह योजना भी कागज पर अच्छी है। लेकिन क्या हकीकत में इन हथकरघा मजदूरों के बच्चें स्कूलों में पढ़ रहे हैं? इनके बच्चें स्कूलों में प्रवेश ले लेते हैं लेकिन बीच में पढ़ाई छोड़कर मजदूर बनने को मजबूर हो रहे हैं।
कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से बुनकर भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। हथकरघा उद्योग राष्ट्र की गौरवशाली धरोहर है। इस उद्योग का संरक्षण करना और बुनकर मजदूरों की मदद करना अब आवश्यक हो गया है, नहीं तो यह खूबसूरत कला विलुप्त हो जाएगी। इस हथकरघा उद्योग के बहुत सारे लोग मालिक से मजदूर बन गए हैं। कई बुनकरों ने सरकारी सहायता और प्रोत्साहन नहीं मिलने से दूसरे व्यवसाय की तरफ अपना रूख कर लिया हैं।
इस उद्योग के लिए मशीनरी और संयंत्र के आधुनिकरण की शीघ्र आवश्यकता है। जब तक इस क्षेत्र को सरकारी सहायता नहीं मिलेगी और सरकारी प्रोत्साहन प्राप्त नहीं होगा तब तक इस क्षेत्र के उद्योग पनप नहीं पाएंगे। इस उद्योग को आवंटित बजट की अधिकांश राशि विपणन केंद्रों के निर्माण में खर्च हुई है। हथकरघा उद्योग में दीर्घकालीन ढांचागत सुधार किए जाने की जरूरत है।