शादाब सलीम |
क्रिमिनल लॉ का नया बिल घर बैठे की परेशानी है। सिर्फ अंकों में परिवर्तन कर दिया गया है, जो चीज़ 302 में थी वह अब 101 में आ जाएगी और जो 376 में थी वह 63 में आ जाएगी। चीज़ वही है लेकिन पैकिंग नई है। इस ही के साथ कुछ थोड़ी बहुत छोटी बड़ी चीज़ों को हटा दिया है और कुछ में अपने ध्येय की पूर्ति कर ली गई है।
सीआरपीसी का नया नाम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता है। इसका नाम तो नागरिक सुरक्षा संहिता है किंतु पुलिस की शक्तियों में कोई कमी नहीं है बल्कि कहीं न कहीं थोड़ा बहुत इज़ाफा ही है। नागरिकों को सुरक्षा बदमाशों से ज़्यादा पुलिस से चाहिए, एक व्यक्ति का थाने जाना कितना खतरनाक है यह कोई बताने वाली बात नहीं है। इसे शॉर्ट में बीएनएस कहेंगे।
असल में ऐसे किसी भी संशोधन की कोई बहुत ज़्यादा ज़रूरत नहीं थी। इंडियन कह देने में क्या बुराई है, केवल इंडियन को भारतीय करना था और धाराओं को ऊपर नीचे तो जबरदस्ती किया गया है, इससे अदालतों, बार, पुलिस, पत्रकारों और छात्रों की फ़ज़ीहत होना है। फिर से हज़ार बारह सौ धाराओं को याद करिए। मर्डर पर 302 भूलिए और 101 को याद कीजिए। वोलेंट्री असॉल्ट पर 324 को भूलकर 113 याद कीजिए।
ज़रूरत तो इस बात की है कि शीघ्र न्याय हो अदालत के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारा जाए। सब कुछ डिजिटल किया जाए, लोगों को कंप्यूटर सेवी बनाया जाए। हैरत की बात है अनेक अदालत से जुड़े काम करने वाले लोगों को एमएस वर्ड नहीं याद है जिसे आजतक गांव देहातों में भी पांच सौ रुपये में सिखा दिया जाता है। मेल भेजना नहीं याद है। आज भी पुराने टाइपराइटर को लेकर लोग बैठे हैं। हर अदालत की बिल्डिंग हर शहर के पुराने राजाओं के किलों में या अंग्रेजों के बनाए ऑफिस में चल रही है।
वकील टीन के नीचे बैठे हुए, अब तक उन्हें बैठने के लिए हॉल भी मुहैय्या नहीं हुए हैं। व्यक्ति को अदालत के समक्ष बुलाने के तरीके वही पुराने और घिसे पिटे हुए हैं। स्टाफ की कमी से महीनों महीनों की तारीखें लगती है। अनेक प्रतिभाशाली बच्चें बैठे हैं लेकिन जज की भर्ती मुट्ठीभर निकाली जाती है। जज ही नहीं है तो अदालत कैसे चलेगी। पूरी क्रिमिनल प्रोसिडिंग इतनी जर्जर स्थिति में है जिसका तत्काल शल्यक्रिया की ज़रूरत है।
लेकिन वह कुछ भी नहीं करते हैं, इस तरह के बिल लाना वह भी सिर्फ नाम परिवर्तन के लिए और अंकों को बदलने के लिए क्या अजीब बात है। जो छोटे बड़े संशोधन हुए हैं वह तो आम तरीके से भी हो सकते हैं जो आज तक होते आए हैं।
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