Thursday, January 9, 2025
- Advertisement -

चने की फसल को नुकसान पहुंचा रहा नया रोग

 

 

khatibadi 1


जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर भी पड़ रहा है, वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में पता चला है कि भविष्य में चने की फसल में कई तरह की मिट्टी जनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है। देश के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है, भारत की ज्यादातर घरों की रसोई में चने का किसी न रूप में इस्तेमाल होता है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जलवायु परिवर्तन से भविष्य में चने के पौधों की जड़ सड़न जैसी मिट्टी जनित बीमारियों के होने की संभावना बढ़ सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले कुछ वर्षों में चने की फसल में शुष्क जड़ सड़न बीमारी का प्रकोप बढ़ा है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान वाले सूखे की स्थिति और मिट्टी में नमी की कमी से ये बीमारी तेजी से बढ़ती है। यह रोग चने की जड़ और धड़ को नुकसान पहुंचाता है। शुष्क जड़ सड़न रोग से चने के पौधे कमजोर हो जाते हैं, पत्तियों का हरा रंग फीका पड़ जाता है, ग्रोथ रुक जाती है और देखते-देखते तना मर जाता है। अगर ज्यादा मात्रा में जड़ को नुकसान होता है, तो पौधे की पत्तियां अचानक मुरझाने के बाद सूख जाती हैं।

मैक्रोफोमिना फेजोलिना नाम के रोगाणु के कारण चने में जड़ सड़न रोग होता है, यह एक एक मिट्टी जनित परपोषी है। फसल में फूल और फल लगते हैं तो उस समय अगर तापमान बढ़ता है और मिट्टी में नमी कम हो जाती है तो इस रोग से चने में काफी नुकसान होने लगता है, इससे पौधे हफ्ते 10 दिन में सूखने लग जाते हैं।

वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां पर चने की खेती ज्यादा होती है। ज्यादातर जगह पर यही बीमारी लग रही है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस बीमारी से इन राज्यों में फसल का कुल 5 से 35 प्रतिशत हिस्सा संक्रमित होता है। वैज्ञानिकों ने देखा कि जब तापमान 30 डिग्री से ज्यादा और नमी 60 प्रतिशत से कम है तो यह बीमारी ज्यादा बढ़ती है। चने में इस रोग का पता लगाने की शुरुआत वैज्ञानिकों ने साल 2016-17 में की थी, जब उन्हें पता चला कि चने में नई बीमारी लग रही है। विश्व में चने की खेती लगभग 14.56 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है, जिसका वार्षिक उत्पादन 14.78 मिलियन टन होता है, जबकि भारत में चने की खेती लगभग 9.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जोकि विश्व का कुल क्षेत्रफल का 61.23 प्रतिशत है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मैक्रोफोमिना पर्यावरण की परिस्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में जीवित रहता है। यहां तक कि तापमान, मिट्टी के पीएच और नमी की चरम स्थिति में भी यह जिंदा रह सकता है। भविष्य में इस रोगजनक की विनाशकारी क्षमता की संभावित स्थिति जानने के लिए यह शोध किया गया है।

वैज्ञानिक अब रोग का प्रतिरोध करने के क्षेत्र में विकास और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों के लिए इस अध्ययन का उपयोग करने के तरीके की तलाश कर रहे हैं। कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान अपनी फसल को बचा सकते हैं, जैसे कि खेत में ज्यादा खरपतवार न इकट्ठा होने पाए और अगर किसान के पास सिंचाई की सुविधा है तो अगर सिंचाई कर दें तो कुछ नुकसान से बच सकते हैं। वैज्ञानिकों की टीम अब चने की फसल को डीआरआर संक्रमण से बचाने पर काम कर रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के सहयोग से आईसीआरआईएसएटी की टीम ने पौधों से संबंधित इस तरह के घातक रोगों से लड़ने के लिए निरंतर निगरानी, बेहतर पहचान तकनीक, पूवार्नुमान मॉडल का विकास और परीक्षण आदि सहित कई बहु-आयामी दृष्टिकोण भी अपनाए हैं।


janwani address 17

What’s your Reaction?
+1
0
+1
4
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Rasha Thandani: क्या राशा थडानी कर रही है इस क्रिकेटर को डेट? क्यो जुड़ा अभिनेत्री का नाम

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Latest Job: मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल ने इन पदों पर निकाली भर्ती, यहां जाने कैसे करें आवेदन

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट में आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img