कोरोना महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई जिसके असर से दुनिया अभी भी पूरी तरह से उबर नहीं पाई है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के चलते भारत समेत अनेक देशों के सामने व्यापारिक लेन-देन का संकट खड़ा हो गया है। रूस से अखबारी कागज की भी आपूर्ति बाधित हुई है। साथ ही उत्पादन लागत बडे और समुचित आपूर्ति नहीं होने से प्रकाशकों के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं।
अखबारी कागज की कमी और कीमतों में भारी इजाफे के चलते श्रीलंका के दो बड़े समाचार पत्रों को प्रकाशन बंद करना पड़ा है। श्रीलंका अब तक के सबसे बड़े विदेशी मुद्रा भंडार के संकट के दौर से गुजर रहा है। श्रीलंकाई रूपए की हालत लगातार कमजोर हो रही है जिससे अखबारी कागज की आयात लागत में भारी वृद्धि हुई है। अक्टूबर, 1981 से निरंतर प्रकाशित हो रहा ह्यद आइलैंडह्य अब पूरी तरह से आॅनलाइन प्रकाशित हो रहा है। साथ ही इस समूह के दो अन्य अखबार सिन्हाला और दिवायिना का भी प्रकाशन बंद करना पड़ा है।
भारतीय कागज उद्योग बीते चार दशकों में सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है। इंडस्ट्री विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले साल 1974 में भारतीय कागज उद्योग के हालात गंभीर हुए थे लेकिन इस बार संकट उससे भी बड़ा है। कीमतों में अनियमित वृद्धि के चलते अखबारी कागज की कमी का संकट उत्पन्न हुआ है। आयात किए जाने वाले अखबारी कागज का 2019 में मूल्य 450 डॉलर प्रति टन था जो दोगुने से अधिक बढकर 950 डॉलर प्रति टन पहुंच गया है।
बीते वर्ष कोविड की दूसरी लहर के बाद जब विज्ञापन और प्रसार राजस्व में सुधार दर्ज हो रहा था और समाचार पत्र प्रकाशक आगामी तिमाहियों में मजबूत वृद्धि को लेकर आशान्वित थे, तभी अखबारी कागज के दाम में बढ़ोतरी ने उनकी चिंता बढ़ा दी। वर्ष 2020 में जिस अखबारी कागज का दाम प्रति टन 300डॉलर से कम था, वह दिसंबर 2020 से बढ़ने लगा और बीते वर्ष सितंबर तक 700 से 750 डॉलर प्रति टन हो गया। अखबारी कागज के दाम में हुई इस तेज वृद्धि ने प्रकाशकों के बैलेंस सीट को खासा प्रभावित किया है।
माल ढुलाई की लागत में बढ़ोतरी हुई है। रद्दी कागजों के आयातकों का कहना है कि प्रति 40 फीट कंटेनर के आयात के लिए पहले जहां 1600-1800 डॉलर की लागत आती थी, वह अब 3600 डॉलर तक पहुंच चुकी है। अधिक माल ढुलाई वहन करने को आयातक तैयार नहीं है हालांकि लुगदी आयातक अधिक कीमत अदा करने को तैयार हैं क्योंकि वह उच्च मूल्य वाला उत्पाद है। महामारी से पहले तक प्रति टन रद्दी कागज और कटाई के लिए मात्र 100 डॉलर की लागत आती थी, वह वर्तमान में 400 डॉलर प्रति टन पहुंच चुकी है।
रद्दी कागजों के लिए अमेरिका और यूरोप मुख्य स्रोत हैं चूंकि चीन ने रद्दी, जिसमें कागज भी शामिल है, को आयात करने पर जनवरी, 2021 से रोक लगा रखी है। कुछ चीनी कंपनियों ने कच्चे माल के लिए अमेरिका में पेपर मिलों की इकाईयां लगा ली हैं। पहले फरवरी से अमेरिकी रद्दी कागजों की कीमतें 300 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 400 डॉलर प्रति टन हो गई है हालांकि बढ़ी हुई कीमतों को देने के लिए तैयार होने पर भी आपूर्ति नहीं मिल रही है। रूस-यूक्र ेन संकट ने इस आग में घी की तरह काम किया है। वहीं भारत सरकार ने रद्दी कागजों के आयात पर 2.5 प्रतिशत का सीमा शुल्क भी लगा दिया है। इंडस्ट्री विशेषज्ञों का मानना है कि पेपर इंडस्ट्री के सामने कच्चे माल का संकट तो पहले से ही है। आयात 30 लाख टन बढ़ चुका है।
आमतौर पर कागज उद्योग घरेलू उपभोग की वस्तुओं जैसे खाद्य व पेय पदार्थ, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सीमेंट आदि की पैकेजिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं। इन दिनों पैकेजिंग उद्योग में भी कागज उत्पाद की मांग बहुत अधिक बढ़ी है। इतना ही नहीं रेप्रो पेपरर, पावडर्ड पेपर, टिश्यू पेपर, अखबारी कागज, कार्ड बोर्ड, पेपर बोर्ड और डेकोरेटिव आर्ट पेपर जैसे पेपर प्रोडक्ट भी इन दिनों काफी इस्तेमाल किए जा रहे हैं एवं इनकी लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही है। खाद्य और उपभोक्ता वस्तुओं समेत विभिन्न बाजारों में पैकेजिंग पेपर सामग्री की अधिक मांग होने से पेपर उद्योग का विकास भी तेज गति से हो रहा है।
देश में कुल उत्पादन करीब 2.0 लाख टन प्रति वर्ष है जबकि मांग 27 लाख टन है। यह उद्योग 5 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और 2025 तक 5.5 मिलियन टन प्रति वर्ष तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2020 में 49 बिलियन भारतीय रूपए से अधिक मूल्य के अखबारी कागज का आयात किया जो पिछले वर्ष की तुलना में कम है। हालांकि यह देश में वित्तीय वर्ष 2011 से आयात मूल्य में समग्र वृद्धि थी। फिलहाल भारत में 62 मिलें अखबारी कागज का उत्पादन करती हैं। इसमें 36 मिलें सक्रिय हैं और 23 मिलों ने अपना परिचालन बंद कर दिया है।
कोरोना महामारी के कारण विश्व में अखबारी कागज इंडस्ट्री भी बुरी तरह से प्रभावित हुई। दो वर्षों से अधिक समय तक सामानों की आवाजाही में व्यवधान रहा। आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने के कारण अनेक तरह के सामानों की कमी हो गई। साथ ही कार्गो कंटेनर की अनुपलब्धता, कर्मचारियों की कमी और लॉकडाउन के कारण व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित रहीं। कई कारखानों को आंशिक रूप से बंद करने की नौबत आ गई।
2017 में अखबारी कागज की कुल वैश्विक क्षमता 23.8 मिलियन टन थी। वह आंकड़ा 2022 में लगभग आधा होकर 13.6 मिलियन टन पर आ गया। इन व्यवधानों के चलते अखबारी कागज की समुद्री माल ढुलाई लागत बीते दो वर्षों में 4 गुना तक बढ़ गई है। चीन के दूसरे सबसे बड़े बंदरगाह शेनजेन में लॉकडाउन के चलते माल ढुलाई की लागत और भी बढ़ने की संभावना है। यूक्रेन के यूरेशियन क्षेत्र से निकलने वाले चीन-पश्चिमी यूरोप रेल लिंक में रूकावट आई है। जारी तनाव को देखते हुए आशंका है कि रूस और बेलारूस माल ढुलाई को बाधित कर सकते हैं। इससे एशिया से पश्चिम के बीच समुद्री मार्गों पर और दबाव बढ़ेगा।
पिछले साल बजट में अखबारी कागज पर 5 फीसदी का आयात शुल्क लगा दिया गया था। इससे पहले 10 साल तक ऐसे किसी शुल्क की व्यवस्था नहीं थी। जब यह शुल्क लगाया गया था, तब अखबारी कागज का भाव 450 डॉलर था जो आज 1000 डॉलर हो गया है। इससे सरकार को अधिक राजस्व मिल रहा है। सरकार अखबारों को राहत देने के लिए इस शुल्क को हटा या कम कर सकती थी।
ऐसी स्थिति में कई अखबारों ने अपने दाम बढ़ाए हैं और कई ऐसा करने की सोच रहे हैं। अखबारों में पन्ने घटाने की बातें भी चल रही हैं। भारत और कनाडा के बीच मुक्त व्यापार समझौते की बात चल रही है। अगर उसमें अखबारी कागज को भी शामिल कर लिया जाए तो शुल्क नहीं लगाने से अखबारों को राहत मिलेगी। इसी तरह रूस से चीजें लाने की स्थिति बन जाए, तो अच्छा होगा।
नरेन्द्र देवांगन