- बदलती रही सरकार, सरधना को विकास की दरकार
- सरधना को आज तक नसीब नहीं हो सका बालक डिग्री कॉलेज
- रोडवेज बस अड्डे, फायर स्टेशन के लिए भी तरसे
- सरधना में काफी विकास हुए और भी काम की जरूरत
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। ऐसे में जहां नेता अपनी जीत की बिसात बिछा रहे हैं, वहीं क्षेत्र के बुनियादी मुद्दे भी मुंह फाड़े खड़े हैं। सरधना कस्बे की बात करें तो यहां खूब विकास हुए, लेकिन प्राचीन होने के बाद भी आज तक जरूरत के हिसाब से उसका हक नहीं मिल सका। सरधना में विकास के लिए एक नहीं अनेक मुद्दे दशकों से घूम रहे हैं। सरकारें बदलती रही, नेता बदलते रहे और उनके साथ मुद्दे भी बदलते गए।
इन सब के बीच मूलभूत मुद्दे पीछे छूट गए। मुख्य रूप से बात करें तो ऐतिहासिक नगरी सरधना को आज तक बालक डिग्री कॉलेज नसीब नहीं हो सका। इसके अलावा कस्बे को आसपास के जिलों से कनेक्ट करने के लिए रोडवेज बस अड्डा भी संगठनों के ज्ञापनों में ही घूम रहा है। फायर स्टेशन और मुख्य चौराहों के चौड़ीकरण जैसी तमाम जरूरत आज तक पूरी नहीं हो सकी है। उम्मीद है कि इस चुनाव में विकास कार्य मुद्दे बनने के साथ पूरे होंगे।
कहने को सरधना कस्बे में खूब काम हुए हैं। चाहे वह मुख्य रूप से सरधना-नानू मार्ग का चौड़ीकरण हुआ हो या फिर सरधना से मेरठ के लिए एसी बसों का संचालन हुआ हो। मगर इन सबके अलावा भी सरधना में अनेक मूलभूत सुविधाओं की जरूरत है। जितना ऐतिहासिक होने के साथ सरधना अपने हिस्से में विकास का अधिकार रखता है, उतना इस कस्बे को मिला नहीं है। तमाम जरूरतें चुनाव के दौरान उठती हैं और उसी के साथ दबकर रह जाती हैं।
बसपा से लेकर सपा और उसके बाद भाजपा की सरकार बनी। मगर इस कस्बे को कोई खास सौगात नहीं मिल सकी। अब फिर से विधानसभा चुनाव का बिगुल बजा है तो बुनियादी मुद्दे उठना भी लाजमी है। जहां एक ओर प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए बिसात बिछा रहे हैं। वहीं दशकों से चले आ रहे मुद्दे भी मुंह खोले खड़े हैं, जिनमें से कुछ मुद्दे मुख्य हैं।
सरधना ऐतिहासिक नगरी होने के बाद भी आज तक इस कस्बे को बालक डिग्री कॉलेज नहीं मिल सका है, जबकि सरधना से चंद किलो मीटर की दूरी पर स्थित सरूरपुर गांव में एसजीपीजी कॉलेज स्थापित है। इस कारण सरधना के युवाओं को खासकर बालकों को उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने के लिए मेरठ या अन्य जिलों का रुख करना पड़ता है। बालक डिग्री कॉलेज की मांग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन आज तक इस ओर किसी ने ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी है।
सरधना कस्बा आसपास के जिलों से एक तरह से कटा हुआ है। क्योंकि यहां कनेक्टिविटी के लिए यातायात के पर्याप्त साधन नहीं हैं। सरधना के लोग रोडवेज बस अड्डे की मांग भी लंबे समय से कर रहे हैं। मगर आज तक कस्बे को रोडवेज अड्डा नसीब नहीं हो सका है। हालांकि कुछ वर्ष पूर्व विधायक संगीत सोम ने रोडवेज बस अड्डे के लिए पालिका की भूमि चिह्नित कराके उसकी चार दीवारी करवाई थी। मगर यहां रोडवेज अड्डा आज तक नहीं बन सका। उसकी जगह यह भूमि डंपिंग ग्राउंड बनकर रह गई है। आसपास के जिलों से यातायात की पर्याप्त कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण व्यापारिक क्षेत्र में कस्बा उड़ान नहीं भर पाता है।
सरधना में खद्दर का व्यापार बड़े पैमाने पर किया जाता है। यहां का कपड़ा दूर-दराज तक जाता है। हर साल पावरलूम फैक्ट्री में आग लगने की घटना सामने आती है। यहां के व्यापारी दशकों से कस्बे में फायर स्टेशन की स्थापना की मांग कर रहे हैं। ताकि हादसा होने पर समय से फायर बिग्रेड की गाड़ी पहुंच सके और बड़े नुकसान से बचा जा सके। मगर दुर्भाग्य से कस्बे को आज तक फायर स्टेशन भी नहीं मिल सका है।
अगर हम आसपास के कस्बो पर नजर डालें फिर वह चाहे दौराला हो या बुढ़ाना, बड़ौत, शाहपुर, कंकरखेड़ा, अधिकांश जगह मुख्य चौराहे बड़े और सुंदर बने हुए हैं। मगर सरधना का मुख्य चौराहा आज भी तंग है। दौराला रोड से लेकर बिनौली रोड का चौड़ीकरण आज तक नहीं हो सका है। नतीजा यह है कि सरधना रोजाना जाम की समस्या से जूझता है। मुख्य चौराहे का चौड़ीकरण के साथ सौदर्यकरण की दरकरार भी इस कस्बे हो है।
सरधना को बेगम समरु की नगरी भी कहा जाता है। क्योंकि यहां बेगम समरु ने राजधानी बनाकर लंबे समय तक राज किया। सरधना में बेगम समरु कालीन उनके महल से लेकर विश्व विख्यात कैथोलिक चर्च भी बना हुआ है। जिसे दुनियाभर से लोग देखने आते हैं। इसके अलावा यहां पांडव कालीन प्राचीन महादेव मंदिर भी है। इस मंदिर का इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। सरधना को लगातार पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग की जाती रही है। मगर यह सौभाग्य भी कस्बे को नसीब नहीं हो सका। इसके अलावा भी छोटे-बड़े तमाम मुद्दे हैं जो चुनाव के समय उठते हैं और चुनाव के साथ ही दबकर रह जाते हैं। उम्मीद है कि जल्द सरधना के मुद्दे जरूरत बनकर धरातल पर उतरेंगे।