2014 या 2019 लोकसभा चुनाव, दिल्ली की सातों सीटों पर बीजेपी का जीतना, 2015 विधानसभा चुनाव या 2020 विधानसभा चुनाव, दोनों में आम आदमी पार्टी का प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आना, 2017 एमसीडी चुनाव में बीजेपी का जीतना और अब 2022 एमसीडी चुनाव में आप के सिर पर जीत का सेहरा बंधना। अब थोड़ा 2014 से पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन के विरोध प्रदर्शन के दिनों में चलते हैं। तब यूपीए-2 सरकार के खिलाफ कई मुद्दों को लेकर लोगों में आक्रोश था।
इस आक्रोश का सियासी फायदा बीजेपी को क्रेंद और दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 2013 के आखिर से मिलना शुरू हुआ। तब से अब तक यमुना में बहुत पानी बह चुका है, साथ ही अरविंद केजरीवाल और आप की कार्यशैली में भी बहुत बदलाव आ चुका है। कभी हर बात पर विरोध के लिए सड़क पर उतरने वाले केजरीवाल अब खांटी राजनेता बन चुके हैं। अब वो बिलकीस बानो के गुनहगारों को छोड़ने जैसे मुद्दों पर डिप्लोमेटिक चुप्पी से काम लेते हैं।
नोटों पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर छापने की वकालत करते हैं। केजरीवाल का फोकस दिल्ली से बाहर उन राज्यों में अपना बेस बढ़ाने पर है जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी सियासी फाइट होती रही है। पहले पंजाब और अब गुजरात के सेम्पल सामने हैं। पंजाब में बीजेपी का राजनीतिक तौर पर कुछ खास दांव पर नहीं था। लेकिन वहां आम आदमी पार्टी के पैर पसारने से कांग्रेस का कैसे बिस्तर गोल हुआ सबने देखा। अब आते हैं गुजरात पर। 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 99 और कांग्रेस को 77 सीट मिली थीं।
वहीं 2022 विधानसभा चुनाव में राज्य में नए राजनीतिक प्लेयर के तौर पर आम आदमी पार्टी मैदान में उतरी। नतीजा सामने हैं। गुजरात विधानसभा के इतिहास में किसी भी पार्टी के तौर पर बीजेपी को 156 सीट झटक कर सबसे बड़ी जीत मिली है। इससे पहले का रिकॉर्ड इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में कांग्रेस के नाम दर्ज़ था, तब माधव सिंह सोलंकी की अगुआई में राज्य में कांग्रेस को 149 सीटों पर जीत मिली थी। क्या बीजेपी की तथाकथित बी पार्टी के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी को केजरीवाल के रूप में नया जोड़ीदार मिल गया है?
इस सच को कबूले कांग्रेस !
भारत में किसी राज्य में पहली गैर कांग्रेस सरकार 1957 में केरल में बनी। केरल में ईएमएस नंबूदरीपाद पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने। केरल का गठन एक साल पहले 1956 में ही हुआ था। 1957 में विधानसभा चुनाव हुआ तो 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 43 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 60 सीट मिलीं, इस तरह सीपीआई 4 सीट से बहुमत से दूर रही लेकिन उसने 5 निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बना ली।
लेकिन भारत में कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी अपने बूते पर किसी राज्य में सबसे पहली बार बहुमत हासिल करने में सफल रही तो वो थी 1967 में तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानि डीएमके। तब 6 मार्च 1967 को सी एन अन्नादुरै तमिलनाडु के पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने। तब से 55 साल बीत गए, कांग्रेस फिर कभी अकेले बूते पर तमिलनाडु में सरकार नहीं बना सकी। तमिलनाडु में तीसरी शक्ति के तौर पर डीएमके में ही दोफाड़ कर एमजी रामचंद्रन ने अलग एआईडीएमके बना ली। यानि राज्य में तीसरा मजबूत क्षत्रप भी आ गया। इसके बाद तमिलनाडु में कभी डीएमके तो कभी एआईडीएमके ही सत्ता में आते रहे। कांग्रेस अगर सत्ता में आई भी तो किसी पार्टी की पिछलग्गू जूनियर पार्टनर के तौर पर।
कहने का तात्पर्य ये है कि जिस राज्य में भी तीसरी या उससे ज्यादा दमदार राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ, वहां कांग्रेस का अपने बूते सरकार बनाना नामुकिन होता चला गया। उत्तर प्रदेश में माया-मुलायम, बिहार में लालू-नीतीश, आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम-वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में टीआरएस, झारखंड में जेएमएम, ओडिशा में बीजू जनता दल के उदय के बाद भी यही हुआ। हाल के वर्षों में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के तौर पर लोगों को राजनीतिक विकल्प मिला तो कांग्रेस का राजधानी से डब्बा कैसे गोल हुआ सबने देखा। गुजरात चुनाव में आप के उतरने के बाद कांग्रेस पांच साल में कैसे 77 सीटों से सिकुड़ कर 17 पर आ गई, ये भी सब देख ही रहे हैं। केजरीवाल की ऐसे सभी राज्यों पर नजर है जहां कांग्रेस और बीजेपी, बस दो ही प्रमुख राजनीतिक शक्तियां हैं।
स्लॉग ओवर
मोबाइल पर बात करने का औसत समय
लड़का लड़के से 00:00:58
लड़का मां से 00:00:45
लड़का पिता से 00:00:20
लड़का लड़की से 01:13:59
लड़की लड़की से 02:35:20
एक मां विवाहित बेटी से 04:05:15
पति पत्नी से 00:00:03
पत्नी पति से 12 मिस्ड कॉल्स
खुशदीप सहगल