Friday, March 29, 2024
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नमन है आपको !

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Ravivani 29


मंत्री ने अपने आदमियों से कहा कि जल्द से जल्द किसी बेहतरीन मालिश वाले को पेश करें। मगर बेहतरीन के चक्कर में अभी तक कोई संतोषजनक परिणाम नहीं निकला था। देर पर देर हो रही थी और मामला हाथ से निकलता जा रहा था। अब धीरे-धीरे राजा के अंदर सांडत्व बढ़ता जा रहा था। और राजा क्यों धीर धरे! नौबत यह थी कि राजा अपनी व्याकुलता के चलते किसी भी क्षण दरबारियों को रौंद सकता था! सारे दरबारी चिंता में डूबे हुए थे। तरह तरह की युक्ति सोच रहे थे।
राजा का बदन डिमांड कर रहा था। यह उसकी मालिश का समय था। मगर वह नंगे बदन सांड की तरह इधर-उधर टहल रहा था। राजा को किस बात की कमी! लेकिन कभी कोई ऐसी सिचुवेशन आ जाती है कि राजा हो या रंक उसे सबको फेस करना ही पड़ता है।

अब सिचुवेशन यह है कि मालिश करने वाला ठीकठाक बीमार पड़ा हुआ है। केवल बीमार होता था,तो राजा बुलवा ही लेता। दूसरे,राजा को उसके अलावा किसी और की मालिश में मजा न आता। मंत्री ने अपने आदमियों से कहा कि जल्द से जल्द किसी बेहतरीन मालिश वाले को पेश करें। मगर बेहतरीन के चक्कर में अभी तक कोई संतोषजनक परिणाम नहीं निकला था। देर पर देर हो रही थी और मामला हाथ से निकलता जा रहा था। अब धीरे-धीरे राजा के अंदर सांडत्व बढ़ता जा रहा था। और राजा क्यों धीर धरे! नौबत यह थी कि राजा अपनी व्याकुलता के चलते किसी भी क्षण दरबारियों को रौंद सकता था! सारे दरबारी चिंता में डूबे हुए थे। तरह-तरह की युक्ति सोच रहे थे।

ऐसे में दरबार में बैठा कवि चिंतित मंत्री से बोला,‘आप कहें तो मैं ट्राई करूं सर!‘
‘अरे यार!!! पता है न क्या करना है!’ मंत्री चिढ़ते हुए बोला।
‘सर आप मुझे हल्के में ले रहे हैं! मेरे और महाराजा के काम में ज्यादा अंतर नहीं है!’
मंत्री ने अनसुना कर दिया।
‘मैं मंच लूटता हूं और महाराज…’ इतना कहकर कवि चुप हो गया।
मंत्री ने उसे घूरा।
‘सर यह आपधर्म का मामला है! करना तो पड़ेगा!’ कवि ने सिचुवेशन को डिफाइन किया।
‘आपदा ही तो है!’ मंत्री बड़बड़ाया।
‘सर! इस सिचुवेशन पर मैंने कभी चार पंक्तियां लिखीं थीं! आपके चरणों में सादर निवेदित करता हूं कि…’ कवि ने अभी इतना कहा ही था कि उसे मंत्री से परमिशन मिल गई।
‘कविता में वाकई बहुत ताकत होती है। सुनने से पहले ही आदमी के हृदय के भाव बदल जाते हैं!’ कवि ने मन ही मन सोचा।
कवि जब जाने लगा तो मंत्री बोला,‘देख लेना भय्ये! नौकरी और जान दोनों का सवाल है!’
‘साधो! साधो!’ कहता हुआ कवि मिशन मालिश के लिए राजा के प्राइवेट कक्ष की ओर झूमते हुए चल दिया।
जब तक कवि राजा की मालिश करता रहा, मंत्री की जान सूखी रही। कवि जब वापस आया तो मंत्री के पूछने से पहले वह बोला,‘मामला फिट हो गया सर!’
मंत्री को अपने कानों पर विश्वास न हुआ! ‘मेरी मालिश से महाराज इतने खुश हुए…इतने खुश हुए…कि मुझे कवि स्निग्धराज की उपाधि दे दी।’
यह सुनकर मंत्री की जान में जान आई।
‘एक बात और है सर!’
‘क्या!’ मंत्री शंकित हुआ।
‘दुखद है और सुखद भी!’
‘यह क्या शब्दजाल फेंक रहे हो,स्पष्ट कहो!’ मंत्री बिगड़ा।
‘बेचारे मालिश करने वाले की छुट्टी हो गई!’
‘और सुखद बात क्या है!’ मंत्री ने पूछा।
‘उसकी जगह मुझे रख लिया!’
‘तुम राजी भी हो गए!’ मंत्री झोंक में बोल गया।
‘क्या करूं सर, महाराज ने ऐसी बात कही कि मैं चाहकर भी इंकार न कर सका!’
मंत्री ने अपनी गर्दन को सहलाया। कवि के लिए यह संकेत था कि राजा ने धड़ अलग करने की कहीं धमकी तो नहीं दी।
कवि मुस्कुराया। और बोला,‘नहीं सर! ऐसी कोई बात नहीं!’
‘फिर!’
‘जब मैंने महाराज से कहा कि मैं दो अलग-अलग नौकरी एक साथ कैसे कर सकता हूं तो महाराज ने कहा …’
‘क्या कहा!!!’ मंत्री एक्साइटेड होकर बीच में बोल दिया।
‘महाराज ने कहा कि तुम इसे दो नौकरी क्यों समझ रहे हो!’
‘तो!!!’ मंत्री वाकई बहुत एक्साइटेड था।
‘… इसे ऐसे समझो कि एक ही काम को तुम दो शिफ्ट में कर रहे हो!’ कवि ने पूरी बात बताई।
यह सुनते ही मंत्री तेजी से कवि के गालों को गुलूगुलू करते हुए बोला,‘मास्टर स्ट्रोक!’
‘सर हमारे उधर यह नहीं चलता!’
‘फिर क्या चलता है!’ मंत्री ने पूछा।
‘हम लोग…नमन है आपको…कहते हैं सर!’
मंत्री हंसा और बोला,‘नमन है आपको!’

                                                                                                            अनूप मणि त्रिपाठी


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