अब बोलें, क्या कहेंगे, विरोध करने वाले। तब तो बहुत नारे लगाते थे–हम कागज नहीं दिखाएंगे, कागज नहीं दिखाएंगे! मोदी जी की सरकार ने एनआरसी कराने के लिए जरा से कागज दिखाने के लिए क्या कह दिया, भाई लोगों ने विरोध के नाम पर आसमान सिर पर उठा लिया। एक ही रट–हम कागज नहीं दिखाएंगे। कागज नहीं दिखाने के चक्कर में, बेचारी एनआरसी का भी विरोध करने लगे। मोदी जी की सरकार ने बार-बार क्रोनोलॉजी समझायी। पहले एनआरसी होगा। फिर कहीं जाकर नागरिक-अनागरिक का फैसला होगा, पर भाई लोगों ने एक नहीं सुनी। लगे सडकों पर उतर कर विरोध करने। यूपी में और दूसरी जगहों में भी डबल इंजन सरकारों ने गोलियां तक चलायीं, तब भी भाइयों ने एक नहीं सुनी। वह तो कोरोना बीच में आ गया और उसने सब कुछ लॉकडाउन करा दिया। न कागज दिखाने की मांग चलती रह पायी, न एनआरसी, न जनगणना; वर्ना शाह जी ने शाहीनबाग वालों के लिए वोटिंग मशीन से ही ऐसे झटके का इंतजाम किया था कि विरोध-फिरोध सब भूल जाते।
खैर! पांच साल बाद, कागज दिखाने का टैम लौट आया है। इस बार एनआरसी की नहीं, चुनाव आयोग की कागज दिखाने की डिमांड है। बिहार से शुरुआत हो गई है। देश भर में कागज मांगे जाएंगे। अब क्या करेंगे विरोध करने वाले? चुनाव आयोग से कैसे कहेंगे कि हम कागज नहीं दिखाएंगे? सिंपल गिनती का मामला थोड़े ही है। यहां तो जो कागज नहीं दिखाएंगे, सीधे वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे। पब्लिक के पास बाकी तो कुछ भी वैसे ही नहीं है, सरकार को बदलने की ताकत का सवाल ही कहां उठता है।
पर विरोधियों की भी जिद देखिए। पांच साल पहले भी कह रहे थे, हम कागज नहीं दिखाएंगे, अब पांच साल भी वही रट लगाए हुए हैं–साधारण लोग कागज कैसे दिखाएंगे? वही बहाना है, खाते-पीते लोगों का तो ठीक है, थोड़ी-बहुत असुविधा होगी, पर मैनेज कर लेंगे। लेकिन, गरीब-गुरबा कैसे मैनेज कर पाएंगे। जिनके पास रहने का पक्का ठिकाना नहीं है, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है, जिन्होंने कभी अस्पताल का मुंह नहीं देखा है, जिन्हें किसी ने कोई सार्टिफिकेट न दिया है, न उन्होंने किसी से कोई सार्टिफिकेट लिया है, वे कहां से कागज लाएंगे और कौन सा कागज दिखाएंगे, वगैरह।
पर ये सब बहाने हैं। अगर सरकार की आज्ञा का पालन करने की इच्छा हो, अगर कागज दिखाने की वाकई इच्छा हो, तो कागज तो खुद ब खुद निकल आएंगे। जिनके पास कहने लायक घर नहीं है, टिकाऊ छप्पर भी नहीं है, टीन-टप्पर भी नहीं है, वे भी जानते हैं कि कैसे फूस की तहों में छुपाकर, कागज सुरक्षित रखते हैं। जो कभी स्कूल नहीं गए, जो अस्पताल में पैदा नहीं हुए, वे भी खूब जानते हैं कि जन्म प्रमाण कैसे बनवाते हैं। मुश्किल हो सकता है, जरा महंगा हो सकता है, पर इच्छा हो तो जन्म प्रमाणपत्र कोई भी बनवा सकता है। जिन्होंने अब तक नहीं बनवाया है, अब बनवाएंगे; कागज को सुरक्षित रखने का कोई न कोई जुगाड़ भी बैठाएंगे; पर कागज जरूर दिखाएंगे।