Friday, March 28, 2025
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ऑनलाइन शॉपिंग में सावधानी की दरकार


– सतीश सिंह

भारत में अक्टूबर से दिसंबर तक त्योहारों का महीना होता है। इन 3 महीनों में हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता हैं। पहले दशहरा,फिर दीवाली व छठ,उसके बाद क्रिसमसऔर फिर न्यू ईयर। तीनों महीने लोग जमकर खरीददारी करते हैं। आजकल ऑनलाइन शॉपिंग का चलन है। इसमें लोगों को दुकान जाने की जरूरत नहीं होती है। शॉपिंग मोबाइल पर ही हो जाता है। ई-कारोबारी इन महीनों में अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं। इस साल सभी के जीवन में कोरोना वायरस का ग्रहण लगा हुआ है। फिर भी,अनलॉक का 5वां चरण शुरू होने के कारण आर्थिक गतिविधियां बढ़ी हैं।
दुर्गा पूजा के बाद सेल-महासेल का दौर चलता रहेगा, क्योंकि दीवाली में कारोबारी सबसे ज्यादा मुनाफा कमातेहैं। वैसे, ग्राहकों को ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान सावधान रहने की भी जरूरत है, क्योंकि इसमें धोखाधड़ी की बहुत ज्यादा गुंजाइश होती है। ऑनलाइन बाजार में सावधानी हटने पर, ठगे जाने की संभावना रहती है।

ई-कारोबारी और ग्राहकों की तैयारी

ई-कारोबारी खाद्य पदार्थ, एनर्जी ड्रिंक्स,फिल्टर कॉफी, बीन बैग्स, एलेक्सा, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, होम अपलायंस सहित आमजन की जरूरत की हर चीज सेल-महासेल में बेचने के लिये तैयार हैं। कोई भी ई-कारोबारी इस मौका को अपनी मुट्ठी से फिसलने नहीं देना चाहता है। पिछले साल ई-कारोबारियों ने इन 3 महीनों में करोड़ों-अरबों की कमाई की थी। वैसे, ग्राहक भी आॅनलाइन बाजार लगने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। छूट का अधिकतम लाभ लेने के लिए ग्राहक सेल-महासेल के दौरान स्टेट बैंक,आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंक का क्रेडिट कार्ड रखते हैं, क्योंकि ई-कारोबारी घोषित छूट से अतिरिक्त छूट इन क्रेडिट कार्डों के जरिये तुरंत देते हैं। यह छूट 5 से 10 प्रतिशत तक होता है। इसलिए, जिनके पास इन बैंकों के क्रेडिट कार्ड नहीं होते हैं, वे अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से क्रेडिट कार्ड्स मांगकर ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं।

सस्ता के चक्कर में ज्यादा खरीददारी 

आमतौर पर ऐसे सेल-महासेल की समय-सीमा होती है। ई-कारोबारी ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए फेस्टिव सीजन में हर रोज छूट का विज्ञापन प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में देते हैं। इन विज्ञापनों में यह लिखा हुआ होता है कि अमुक तिथि के बाद छूट का लाभ नहीं मिलेगा। कई बार तो ई-कारोबारी उत्पादों की कीमत को एमआरपी से ज्यादा दिखा कर उस पर छूट देते हैं, ताकि छूट का प्रतिशत ज्यादा दिखे। यह भी देखा जाता है कि सेल-महासेल के दौरान कुछ ही वस्तुओं पर छूट दी जाती है और यह दिखाया व बताया जाता है कि उन उत्पादों का स्टॉक सीमित है। कहीं स्टॉक खत्म न हो जाए, इस डर से ग्राहक जल्दबाजी में उक्त उत्पादों को अधिक कीमत पर खरीद लेते हैं।

 ई-कारोबारियों की रणनीति

ई-कारोबारी उत्पादों को ज्यादा-से-ज्यादा बेचने के लिए ग्राहकों को तरह-तरह के उपायों से लुभाने की कोशिश करते हैं, जिनमें कूपनकोड, रेफरलपॉइंट्स, जानबूझ कर स्टॉक को सीमित दिखाना आदि हैं। ग्राहकों को लुभाने के लिए उन्हें एसएमएस और मेल भेजा जाता है। कई बार उन्हें फोन भी किया जाता है। अक्सर देखा जाता है कि ई-वाणिज्यिक कंपनियों के पोर्टल पर मोबाइल कुछ सेकंड में बिक जाते हैं। मोबाइल खरीदने वाले अपने को भाग्यशाली समझते हैं, वहीं निर्धारित समयावधि में मोबाइल नहीं खरीद पाने वाले ग्राहक अपनी किस्मत को कोसते हैं। बहुत सारे दूसरे उत्पाद भी इसी तर्ज पर बेचे जाते हैं, लेकिन वास्तव में मोबाइल बिकने की जो संख्या बताई जाती है वह गलत होती है। इस तरह की रणनीति ग्राहकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए अपनाई जाती है। यह भी देखा गया है कि ऑनलाइन कारोबारी पुराने मोबाइल, टैब और लैपटॉप को मरम्मत कराकर बेचते हैं, जिनकी कीमत में अंतर नए उत्पादों से बहुत ज्यादा नहीं होता है। अनेक बार धोखे में ग्राहक ऐसे पुराने उत्पादों को भी खरीद लेते हैं, लेकिन ऐसे उत्पाद जल्द ही खराब हो जाते हैं।

एमआरपी के साथ छेड़छाड़ 

उत्पादों को बेचने के लिए ई-कारोबारी कई तरह के नुस्खे आजमाते हैं। जिन उत्पादों को उन्हें बेचना होता है, उन्हें वे लोकप्रिय बना देते हैं। कई बार उत्पादों को लोकप्रिय बनाने के लिये ई-वाणिज्यिक कंपनियां फर्जी सर्वे का सहारा लेती हैं। फिर तथाकथित लोकप्रिय उत्पादों पर वे भारी-भरकम छूट की पेशकश करती हैं, जबकि नहीं बेचने वाले उत्पादों की कीमत ज्यादा दिखाई जाती है, ताकि लोग तथाकथित लोकप्रिय उत्पादों को ही खरीदें। गौरतलब है कि छूट देने के बाद भी ई-कारोबारी उत्पादों को उनकी वास्तविक कीमत पर ही बेचते हैं। खरीदे हुए उत्पादों की कीमत मिटा देने के मामले भी देखे जाते हैं। ग्राहक मिटाई हुई कीमत वाले उत्पाद मिलने पर हैरान-परेशान रहता है, क्योंकि ऐसे उत्पाद को लौटाना संभव नहीं होता है।

मुफ्त या सस्ती डिलीवरी के नाम पर कमाई 

ई-कारोबारी मुफ्त या सस्ती डिलीवरी के भी पैसे लेते हैं। वे इसके लिए कूपन जैसे, प्राइम, गोल्ड, सिल्वर आदि बेचते हैं। जो ग्राहक ऐसे कूपन खरीदते हैं, उन्हें ई-कारोबारी ज्यादा छूट देने की पेशकश करते हैं। अगर कोई ग्राहक ऐसे कूपन नहीं खरीदता है तो उन्हें उत्पादों की डिलीवरी 7 से 15 दिनों में की जाती है। कभी-कभी डिलीवरी में एक महीना का भी समय लग जाता है। ऐसे उत्पाद ऑनलाइन भुगतान करने के बाद ही डिलीवर किए जाते हैं। पैसे अधिक समय तक फंसे रहने से ग्राहकों को ब्याज का नुकसान होता है।

एक्सचेंज करने या लौटाने के नियम अपारदर्शी 

ऑनलाइन बाजार से खरीदे गए बहुत सारे उत्पाद ऐसे होते हैं, जिन्हें ई-वाणिज्यिककंपनियां न तो बदलती हैं और न ही वापिस लेती हैं। उत्पाद के खराब निकलने पर ग्राहक को कस्टमर केयर अधिकारी उत्पाद के सर्विस सेंटर जाने के लिए कहते हैं। वहां उत्पाद की केवल मरम्मत की जाती है। ई-वाणिज्यिककंपनियों के बहुत सारे नियम-कानूनअपारदर्शी होते हैं, जिनकी जानकारी ग्राहकों को नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर बहुत सारे उत्पादों में एश्योर्ड लिखा होता है। ऐसे उत्पादों की डिलीवरी में परेशानी नहीं होती है। कुछ उत्पादों को ई-वाणिज्यिककंपनियों के जरिये खुदरा विक्रेता सीधे ग्राहकों को बेचते हैं। ऐसे उत्पादों के डिफेक्टिव रहने पर ग्राहक को स्वयं विक्रेता को उत्पाद वापिस करना पड़ता है और रिफंड के लिए महीनों फालो-अप करना पड़ता है, तब जाकर उनके पैसे वापिस मिल पाते हैं। अगर ग्राहक पढ़ा-लिखा नहीं है तो उनके पैसे डूब भी जाते हैं।

कस्टमर केयर सेवा प्रभावी नहीं

ई-वाणिज्यिक कंपनियों का कस्टमर केयर सिस्टम प्रभावी नहीं है। कस्टमर केयर अधिकारी को अपने कंपनी के दिशा-निर्देशों की जानकारी नहीं होती है। ई-वाणिज्यिक कंपनियों के आला अधिकारियों के नंबर भी बेवसाइट पर उपलब्ध नहीं होते हैं। अगर किसी ग्राहक को कोई समस्या होती है तो उन्हें हर बार नए सिरे से कस्टमर केयर अधिकारी को पूरी कहानी सुनानी पड़ती है। ऑनलाइन चैट या व्हाट्सएप पर चैट करने से भी समस्या का समाधान नहीं निकल पाता है। फालो-अप करने से ही समस्या का समाधान निकल जाता है, लेकिन इसमें समय बहुत लगता है। अनेक बार ग्राहकों के पैसे डूब भी जाते हैं।

प्रभावी कानून का अभाव

फिलवक्त, अपने दोयम दर्जे के उत्पाद बेचने के लिए ई-कारोबारी वैसे यूट्यूबर की मदद लेते हैं। जिनके करोड़ों सब्सक्राईबर होते हैं। यूट्यूबर खराब उत्पाद को भी अच्छा बताते हैं, जिससे उपभोक्ता झांसे में आ जाता है। ऐसे ई-कारोबारी आमतौर पर उत्पाद को बेचने के बाद वापिस नहीं करते हैं। ऐसे उत्पादों को एक्सचेंज करना भी आसान नहीं होता है। अमूमन, ग्राहक बिना टर्म्स एंड कंडीशन देखे ऐसे ई-कारोबारियों से ऑनलाइन खरीददारी कर लेते हैं, लेकिन उत्पाद को देखने के बाद वे अपना सिर पीट लेते हैं, क्योंकि फोटो से कपड़े या दूसरे उत्पादों की गुणवत्ता को पहचानना संभव नहीं होता है। एथेनिक प्लस ऐसा ही कपड़ों का एक ऑनलाइन विक्रेता है, जो दोयम दर्जे के वस्त्रों को अधिक कीमत में बेच रहा है। जब ग्राहक पुलिस की शरण में जाते हैं तो वे ई-कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में अपनी असमर्थता जताते हैं, क्योंकि हमारे देश में अभी भी मामले में कारगर कानून का अभाव है।

फीचर डेस्क Dainik Janwani

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