Monday, July 8, 2024
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दमखम के साथ लौटा विपक्ष

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Capturesvscc लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गाँधी ने अपने पहले भाषण में ही पूरे देश और मीडिया का ध्यान खींच लिया। लंबे समय बाद राहुल गांधी ने यह दिखाया कि लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष मजबूत संख्याबल और मजबूत इरादों के साथ लौटा है। राहुल ने विपक्ष के नेता के रूप में अपने तेवरों से साफ कर दिया कि आने वाले दिनों में भारत की जनता को सही अर्थों में विपक्ष की ताकत को देखने का अवसर मिलेगा। हम सभी यह अच्छे से जानते हैं कि किसी भी लोकतंत्र के लिए विपक्ष की मजबूती बहुत आवश्यक है। न केवल लोकतंत्र के लिए बल्कि देश की जनता के हितों के लिए भी यह बहुत आवश्यक है। हालांकि राहुल गांधी के यह बदले हुए तेवर उनकी भारत जोड़ो यात्रा के समय से ही दिखने शुरू हो गए थे। बाकि सभी मुद्दों के साथ ही राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष के प्रधानमन्त्री और विपक्ष के नेता के साथ व्यवहार पर ऊँगली उठाकर यह दिखा दिया कि लोकसभा अध्यक्ष को सत्ता और विपक्ष दोनों को बराबर महत्व देना होगा। लोकसभा अध्यक्ष के यह जवाब देने पर कि उन्होंने केवल मोदीजी की उम्र की वजह से उनसे झुक कर हाथ मिलाया, इसके जवाब में राहुल गाँधी का जवाब बहुत ही सधा हुआ और राजनीतिक संस्थाओं के एक अच्छे जानकार जैसा था कि लोकसभा में सभी लोकसभा अध्यक्ष से छोटे हैं और सभी को उनकी बात माननी होगी। राहुल गांधी लोकसभा अध्यक्ष और सत्ता सहित पूरे सदन को यह दिखाने में कामयाब रहे कि स्पीकर सदन में केवल स्पीकर हैं और व्यक्तिगत नैतिकता में चाहे वे अपने से बड़ों का कितना भी आदर करते हों लेकिन सदन के अध्यक्ष के रूप में जो उच्च स्थिथि उन्हें प्राप्त है वह दरअसल स्पीकर नामक संस्था के लिए है जिसकी निष्पक्षता और निडरता सदन की कार्यवाही और लोकतंत्र के लिए बहुत आवश्यक है।

पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी देश में एकमात्र लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित रहे हैं इसमें कोई संशय नहीं हो सकता है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के जनादेश ने क्योंकि किसी को भी बहुमत नहीं देकर मोदीजी की इस धारणा को तोड़ दिया है कि वह इस देश के एकमात्र जनप्रिय नेता हैं। वाराणसी के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की जीत का अंतर उनके कद के हिसाब से वहुत कम कर दिया और परिणाम के बाद तो मोदीजी के चेहरे का आत्मविश्वास बुरी तरह डिगा हुआ दिखाई देता है। वहीं राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के सभी नेता आत्मविश्वास से पूरी तरह लबरेज हुआ दिखाई देते है। ना केवल राहुल गांधी बल्कि लोकसभा में अपने दल को तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित करके लौटे अखिलेश यादव भी पूरे आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए। अखिलेश यादव ने अयोध्या से जीतकर आये सांसद अवधेश प्रसाद को आगे की सीट पर जगह देकर एक स्पष्ट संकेत देने का काम किया कि जिन भगवान राम के सहारे मोदीजी अपनी नैया पार लगाना चाहते थे, उसी अयोध्या की जनता ने मोदीजी को अपने घर में हराने का काम किया है
जहां राहुल गांधी ने देश की जनता के मुद्दों को एक एक कर सरकार के सामने बखूबी रखने का काम किया वहीं अखिलेश यादव ने भी मोदीजी पर हल्की चुटकियों के साथ अपने इरादे जाहिर कर दिए। अखिलेश मोदीजी द्वारा बनारस को क्योटो बना देने वाली घोषणा पर जहां चुनाव प्रचार के चुटकी लेते रहे वहीं उन्होंने लोकसभा में भी क्योटो का जिक्र करके मोदीजी के विकास माँडल पर सवालिया निशान खड़े किये। साथ ही साथ आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की सांसद मोउवा मित्रा ने अपने सधे हुए शब्दों और जबरदस्त भाषण में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को एम शब्द पर घेरते हुए कहा कि पूरे चुनावी प्रचार में मोदीजी मुसलमान, मुल्ला, मदरसा, मटन, मछली, मंगलसूत्र पर लगातार बोलते रहे लेकिन भारत के एक राज्य मणिपुर पर वह एक शब्द नहीं बोल पाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषण में यह प्रयास करते जरुर दिखे कि वह पहले वाले नरेंद्र मोदी ही हैं। इस बात का जिक्र भी अपने भाषण में उन्होंने किया। लेकिन 2014 और 2019 की सरकार के प्रधानमंत्री मोदी जैसा आत्मविश्वास उनके चेहरे पर एक भी बार देखने को नहीं मिला। जहां प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान विपक्ष लगातार मणिपुर पर बोलने के लिए मांग करता रहा लेकिन मोदीजी ने मणिपुर पर कुछ नहीं बोला। कल के भाषण में भी जहां नरेंद्र मोदी राहुल गांधी को एक नौसिखिये नेता के रूप में सिद्ध करने का प्रयास करते रहे लेकिन वह उनके द्वारा उठाये गये सवालों पर पहले की ही तरह घुमाकर जवाब देकर निकलते नजर आए लेकिन विपक्ष ने उन्हें उनके भाषण के दौरान खासा परेशान किया। प्रधानमन्त्री मोदी परीक्षाओं की सुचिता पर कोई जवाब नहीं दे पाए वहीं जिस मुद्दे पर नौजवान का सबसे ज्यादा ध्यान था उस रोजगार के लिए भी वह अपनी सरकार का कोई रोडमैप लोकसभा में नहीं रख पाए।

2024 की लोकसभा के प्रथम सत्र को देखकर यह आभास लगाया जा सकता है कि विपक्ष पूरे दम खम के साथ लौट कर आया है जिससे निपटने के लिए एनडीए की इस सरकार को मेहनत भी करनी होगी और विपक्ष को सम्मान भी देना होगा। एक राजनीतिशास्त्री की नजर से देखा जाए तो यह किसी लोकतान्त्रिक देश के लिए अच्छे संकेत हैं जिसमें प्रतिपक्ष पूरी तैयारी और मजबूती के साथ सरकार को उसके गलत कामों के लिए घेरने का काम करे। सत्ता पक्ष को यह भी अच्छे से ध्यान रखना चाहिए कि विपक्ष उनका दुश्मन नहीं है बल्कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था का एक अति आवश्यक हिस्सा है।


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