2018 में विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तंज कसते हुए कहा था, मैं आपको शुभकामनाएं देना चाहता हूं। आप इतनी मेहनत करो कि 2023 में आपको फिर से अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका मिले। यानि पीएम मोदी ने जो कहा था, वो अब सच हो गया है। विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है। आगामी सप्ताह इस पर बहस होगी जो संभवत: दो दिन चलेगी।बीती 19 जुलाई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने वाले वीडियो के सामने आने के बाद जरूर प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नाराजगी व्यक्त की किंतु उसके अलावा वे पूरे घटनाक्रम पर खामोश ही बने हुए हैं। इसका कारण क्या है यह तो वे ही बता सकेंगे किंतु गृहमंत्री ने संसद और उसके बाहर भी इस बारे में काफी कुछ कहा जिससे विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ।
जब उसे लगा कि प्रधानमंत्री उस मुद्दे पर बोलने राजी नहीं हैं और सरकार भी मणिपुर के मुद्दे पर विपक्ष की इच्छानुसार लंबी चर्चा नहीं करवाना चाहती तब उसने अविश्वास प्रस्ताव रूपी अस्त्र चला। इस प्रस्ताव को लाने के पीछे मणिपुर के संगीन हालात को कारण बताया जा रहा है। विपक्ष लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये दबाव बनाता रहा है कि वे वहां की स्थिति पर बयान दें।
विपक्ष ने मणिपुर में हिंसा के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, तो कई सवाल भी उठे हैं। एक तरफ प्रचंड संख्याबल है, दूसरी तरफ विपक्ष के पास गिनती की संख्या है। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया गया? प्रस्ताव से किसे फायदा-नुकसान होगा?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ये टिप्पणी इस बारे में बेहद सटीक है कि प्रधानमंत्री को मणिपुर के बारे में बोलने के लिए बाध्य करना ही इस प्रस्ताव का उद्देश्य है। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव उनकी सरकार के ही विरुद्ध है, लिहाजा उस पर हुई बहस का जवाब उनको देना ही पड़ेगा।
यद्यपि सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्षी बैंचों से भी अनेक सांसद प्रस्ताव के विरोध और समर्थन में बोलेंगे किंतु असली आकर्षण प्रधानमंत्री का भाषण होगा क्योंकि वे उनके ऊपर हुए हर हमले का बिंदुवार जवाब तो देंगे ही जिसके लिए वे जाने जाते हैं किंतु लगे हाथ विपक्ष को भी घेरने में संकोच नहीं करेंगे।
जबसे संसद की कार्यवाही का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण होने लगा है तबसे इस तरह के अवसरों पर समाज का एक बड़ा वर्ग भी अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस को देखता है। अतीत में ऐसे प्रस्तावों पर सरकार गिरी भी है इसलिए लोगों में उत्सुकता बढ़ जाती है। जहां तक मोदी सरकार के विरुद्ध लाए इस अविश्वास प्रस्ताव का सवाल है तो लोकसभा में उसके पास चूंकि अपने बल पर ही बहुमत है इसलिए प्रस्ताव के पारित होने की संभावना न के बराबर है।
इसके जरिए विपक्ष ने प्रधानमंत्री को अपना बचाव करने के लिए मजबूर करने का जो दांव चला है वह भी ज्यादा कारगर नहीं हो सकेगा क्योंकि एक तो उसके पास लोकसभा में ज्यादा अच्छे वक्ता हैं नहीं और दूसरी बात ये भी कि मणिपुर की हिंसा का जो असली पक्ष है, मसलन मैतेई के पास ज्यादा जनसंख्या के बाद भी कम भूमि, कुकी के एकाधिकार वाले पर्वतीय क्षेत्र में अफीम की अवैध खेती, म्यांमार के रास्ते कुकी और रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के अलावा ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण की आड़ में अलगाववाद को बढ़ावा आदि बातें भी बहस के दौरान जब सामने आएंगी तब विपक्ष के पास भी उनका कोई जवाब नहीं होगा।
मैतेई और कुकी के बीच के विवाद में देश विरोधी ताकतों की भूमिका भी अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सत्ता पक्ष उजागर करने की कोशिश करेगा जिससे विपक्ष को निहत्था किया जा सके। इस अविश्वास प्रस्ताव के गिरने के बाद विपक्ष क्या करेगा ये बड़ा सवाल है। राहुल गांधी ने वहां का दौरा तो किया किंतु वे दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश से दूर रहे।
ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के नामंजूर हो जाने के बाद विपक्ष खाली हाथ नजर आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उसमें एक भी नेता ऐसा नहीं है जिसमें मणिपुर जाकर शांति स्थापित करने की क्षमता हो। जो विपक्षी नेता उस राज्य में हैं, वे भी कहां छिपे हैं, कोई नहीं जानता। मणिपुर में बीते कुछ सालों से जरूर भाजपा के नियंत्रण वाली सरकार है किंतु लंबे समय तक वहां कांग्रेस भी सत्ता में रही। मौजूदा मुख्यमंत्री भी भाजपा में कांग्रेस से आयात किए हुए हैं।
ऐसा लगता है प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर बोलने से पहले विपक्ष को थका देने की रणनीति पर चलते रहे। उनकी बात सही साबित हुई क्योंकि मणिपुर के वर्तमान हालात को वह जिस तरह से भुनाना चाह रहा था उसमें कामयाबी नहीं मिली। यदि महिलाओं को निर्वस्त्र किए जाने वाली घटना सामने न आती तब उस राज्य की वास्तविकता से देश अनभिज्ञ ही रहता।
कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष ने अविश्वास की राजनीति को शिद्दत से खेलने की पूरी तैयारी है। हाल ही में विपक्ष के 26 दलों ने एक साथ चुनाव लड़ने की बात कही है। वर्तमान में इन दलों के पास सदन में विधायकों की संख्या जरूर कम है, लेकिन जनाधार काफी ज्यादा है। जानकारों का कहना है कि विपक्ष के पास भले 142 सीट हों, लेकिन वह एकजुटता का संदेश देना चाहता है।
हाल ही में एनसीपी में टूट के बाद से विपक्ष में एकजुटता नहीं होने की बात कही जा रही थी। अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष सदन में अपनी एकजुटता पूरे देश को दिखाना चाहता है। वहीं विपक्ष को यह भी लगता है कि इस एकता का लाभ उसे इस साल चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव में मिलेगा।
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