- बिजनौर लोकसभा में मुस्लिम समुदाय की 35 प्रतिशत से ज्यादा आबादी
- बिजनौर के इतिहास में एकमात्र कांग्रेसी अब्दुल लतीफ 1957 में बने थे सांसद
बृजवीर चौधरी |
बिजनौर: जनपद में इस बार किसी भी राजनैतिक दल ने मुस्लिम चेहरे पर दॉव नहीं खेला। जबकि इस लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी 35 प्रतिशत से अधिक है। यदि इलेक्शन कमीशन के आंकड़ों पर नजर डाले तो अब तक मात्र एक कांग्रेसी अब्दुल लतीफ ही 1957 से सांसद बने थे। इसके बाद किसी मुस्लिम ने विजय पताका नहीं फहराई।
देश भर में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका। यूपी के बिजनौर लोकसभा में पहले चरण 19 अप्रैल को मतदान होगा और प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी। राालोद व भाजपा के प्रत्याशी मीरापुर विधायक चंदन चौहान को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने बिजेंद्र चौधरी पर दॉव खेला।
सपा व कांग्रेस के गठबंधन ने नगीना के पूर्व सांसद यशवीर सिंह के नाम की घोषणा की थी इसके बाद सपा ने यशवीर सिंह का टिकट काटकर दीपक सैनी को थाम दिया। राजनीतिकारों की माने तो यह शायद पहला उदाहरण होगा कि बिजनौर निर्वाचन क्षेत्र से प्रमुख दलों में से किसी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा। बिजनौर लोकसभा में अल्पसंख्यक समुदाय की लगभग 35 प्रतिशत आबादी है। इलेक्शन कमीशन के आंकड़ों पर नजर डाले तो एकमात्र बार कांग्रेस से मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुल लतीफ 1957 में बिजनौर से जीते थे। इसके बाद वर्ष 1967 से लेकर 2004 तक बिजनौर सीट एससी आरक्षित श्रेणी रही। परिणाम स्वरूप बिजनौर दलित राजनीति का केंद्र रहा। बिजनौर से मायावती, मीरा कुमार और रामविलास पासवान ने ताल ठोकी। पूर्व सीएम मायावती 1989 में जबकि पूर्व स्पीकर मीरा कुमार 1985 में बिजनौर से सांसद बनी। हालांकि रामविलास पासवान बिजनौर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद वर्ष 2009 में बिजनौर लोकसभा सीट को सामान्य श्रेणी में बदल गई।
2009 में बिजनौर में हुआ था नया परिसीमन
वर्ष 2009 में बिजनौर लोकसभा में नया परिसीमन हुआ था। बिजनौर लोकसभा का अधिकांश भाग नगीना लोकसभा में चला गया। अब इसमें तीन जिलों के पांच विस क्षेत्र शामिल हैं। बिजनौर जिले की बिजनौर और चांदपुर विधानसभा क्षेत्र, मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा और मुजफ्फरनगर के मीरापुर और पुरकाजी विधानसभा। लोकसभा बिजनौर में 17 लाख से अधिक मतदाता हैं, इनमें से अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, पांच लाख 60 हजार लाख मुस्लिम, करीब साढ़े तीन लाख दलित, सवा दो लाख जाट, एक लाख 20 हजार गुर्जर, 70 हजार सैनी, 50 हजार कश्यप, 60 हजार राजपूत, 45 हजार गडरिया, 35 बनिया और 10 हजार बंगाली सहित अन्य जाति के लोग वोट हैं। चुनाव विश्लेषकों की माने तो पिछले कुछ वर्षों में बिजनौर में मुस्लिम उम्मीदवारों ने अच्छी पकड़ नहीं रही। वर्ष 2009 में बसपा ने शाहिद सिद्दीकी को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने सईदुज्जमां को प्रत्याशी बनाया था। शाहिद को 2,16,157 लाख वोट और सईदुज्जमां को मात्र 85,158 वोट मिले थे। सपा प्रत्याशी यशवीर सिंह को 51,078 वोट ही मिले। आरएलडी-बीजेपी के संयुक्त उम्मीदवार संजय चौहान दो 44 हजार वोट लेकर जीते और सांसद बने।
2014 में सपा ने शाहनवाज राणा को मैदान में उतारा था, जिन्हें दो लाख 81 हजार वोट मिले थे, बीएसपी के मलूक नागर को दो लाख 30 हजार वोट मिले थे और बीजेपी के भारतेंद्र सिंह चार लाख 86 हजार वोट मिले और विजयी रहे। वर्ष2019 में बसपा-सपा गठबंधन से मलूक नागर ने पांच लाख 61 हजार वोट पाकर सांसद बने थे। भाजपा के भारतेंद्र सिंह चार लाख 91 हजार वोट पाकर साथ दूसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दीकी मात्र 25,833 वोट हासिल कर सके थे और जमानत तक जब्त हो गई थी। शायद यहीं वजह है कि इस बार किसी प्रमुख पार्टी ने बिजनौर से मुस्लिम चेहरे पर दॉव नहीं खेला।