एक बादशाह को एक नौकर की जरूरत थी। उसने परीक्षण के लिए अनेक लोगों को बुलाया। उपस्थित लोगों में से बादशाह ने तीन व्यक्तियों को चुना। बादशाह ने तीनों व्यक्तियों को सामने खड़ा कर कहा, ‘बताओ, इत्तफाक से मेरी दाढ़ी में और तुम्हारी दाढ़ी में एक साथ आग लग जाए, तो तुम क्या करोगे?’ पहला तत्काल बोल उठा- ‘हुजूर! आपकी दाढ़ी की आग तत्काल बुझा दूंगा। अपनी चिंता नहीं करूंगा।’ दूसरा बोला, ‘जहांपनाह! पहले मैं अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा और फिर आपकी दाढ़ी की चिंता करूंगा।’ तीसरा बोला, ‘हुजूर! एक हाथ से आपकी दाढ़ी की आग बुझाऊंगा और दूसरे हाथ से अपनी।’
बादशाह ने कहा, ‘पहला आदमी अव्यावहारिक है। दुनिया में ऐसा कोई आदमी नहीं होता, जो अपनी हित-चिंता न कर दूसरे की हित-चिंता करता हो। जो अव्यावहारिक बात करता है, वह हमेशा धोखा देता है।’ दूसरे व्यक्ति के बारे में बादशाह ने कहा, ‘दूसरा आदमी स्वार्थी है। स्वार्थी आदमी खुदगर्ज होता है। उसे अपनी ही चिंता होती है। ऐसा व्यक्ति बेहतर नौकर नहीं हो सकता।’
बादशाह ने कहा, ‘तीसरा आदमी न अव्यावहारिक है और न ही स्वार्थी। वह व्यवहार के धरातल पर जीता है।’ बादशाह ने उस तीसरे व्यक्ति को नौकरी दे दी। जो आदमी अपनी भलाई और साथ-साथ दूसरे की भलाई करना भी जानता है, वह व्यावहारिक होता है। सिर्फ अपनी भलाई में लगे रहना या फिर चाटुकारिता के लिए सिर्फ दूसरे का ही भला सोचना ठीक नहीं है। संतुलन के साथ दोनों कामों को साध लेना ही व्यावहारिकता है।