Friday, March 29, 2024
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एक साथ अनेक स्त्रियों का कृष्ण से प्रेम

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सर्वेश तिवारी श्रीमुख |

वैसे कितना अजीब है न यह भी… पर क्या करेंगे, अब कृष्ण नहीं मिलते। वे द्वापर में थे, अब कलियुग है। अब कृष्ण केवल ईश्वर के रूप में मिल सकते हैं, प्रेमी के रूप में नहीं। फिर भी यदि कर सकते हों तो कर के देखिये कृष्ण से प्रेम, मेरा दावा है कि बांसुरी की ध्वनि सुनाई देगी। पक्का…।

क्या आप किसी ऐसे पुरुष की कल्पना कर सकते हैं जिसे एक ही साथ अनेक स्त्रियां प्रेम करती हों और उनमें किसी को भी दूसरी के प्रेम से आपत्ति न हो? शायद नहीं।

शायद हां! कृष्ण के साथ ऐसा था। उन्हें एक ही साथ समूचे गोकुल ने प्रेम किया, गोकुल की प्रत्येक स्त्री ने प्रेम किया। कुछ ने वात्सल्य भाव से, कुछ ने बड़ी बहन की तरह, कुछ ने प्रेयसी की तरह। कृष्ण में अपना प्रेमी देखने वाली स्त्रियां गोकुल में भी असंख्य थीं, गोकुल के बाहर भी असंख्य थीं, और उस युग के बाहर भी आंख्य हुर्इं। राधा से मीरा के बीच में कृष्ण की प्रेमिकाओं की संख्या अनगिनत हैं, पर किसी को भी दूसरी से कोई ईर्ष्या नहीं, कोई द्वेष नहीं, कोई घृणा नहीं, कोई पीड़ा नहीं। ऐसा कैसे?

शायद ऐसे ही प्रश्न के उत्तर में कहा गया होगा कि प्रेम यदि ईश्वर के साथ जुड़ जाए तो वह आध्यात्म हो जाता है। वह अपने दुष्प्रभावों से मुक्त हो जाता है, निश्चल, निर्दोष, निष्काम हो जाता है। कृष्ण की प्रेमिकाओं का प्रेम भी निर्मोह था। सब ने उन्हें प्रेम किया पर किसी ने उन्हें पाने की जिद्द नहीं पाली। कृष्ण की किसी भी प्रेमिका ने उनके साथ विवाह का स्वप्न नहीं देखा। सबने केवल और केवल प्रेम किया। न कुछ देने की जिद्द, न कुछ पाने की चाह। शायद तभी उनकी आंसुरी की ध्वनि पर दौड़ती गोपियों में किसी ने तेज दौड़ कर पहले पहुंचने का प्रयास नहीं किया।

आप जानते हैं, स्वयं कामदेव ने कृष्ण के आंगन में पुत्र के रूप में जन्म लिया था? इसे आज की चालू भाषा में कहें तो कृष्ण कामदेव के पिता थे। कामदेव प्रेम के देवता हैं, सबके हृदय में प्रेम का संचार करने वाले देवता। किसी पर न्योछावर हो जाने की चाह भरने वाले देवता, किसी को पा लेने की इच्छा जगाने वाले देवता। सौंदर्य, सुगन्ध, संगीत, मादकता के अधिकारी देवता। और कृष्ण उनके पिता हैं। असल में दोनों प्रेम के प्रतीक हैं। दोनों में अंतर बस यह है कि कामदेव के प्रेम में इच्छा है, कृष्ण के प्रेम में इच्छा नहीं है। इसीलिए कृष्ण पिता हैं और कामदेव पुत्र।

क्या आप आज के समय में इच्छाओं से मुक्त प्रेम की कल्पना कर सकते हैं? नहीं… शायद इसी लिए आज का प्रेम पवित्र नहीं रह गया। जब कोई पुरुष किसी लड़की को इसलिए प्रेम करे क्योंकि लड़की बहुत हाट है तो वह प्रेम है क्या? जब कोई लड़की किसी लड़के को इसलिये प्रेम करे क्योंकि लड़का बहुत धनवान है तो वह प्रेम है क्या? नहीं न?

प्रेम बंधनों से मुक्त करता है। एक अकेले कृष्ण के प्रेम ने सोलह हजार राजकुमारियों को नरकासुर के कारागार से मुक्त किया था। तो क्या कृष्ण के देश में आज की पीढ़ी प्रेम न करें? बड़ा कठिन है उत्तर देना। सच पूछिए तो इस प्रश्न का सही उत्तर मेरे पास है भी नहीं। यह मेरा दोष नहीं, परिस्थितियों का दोष है। आज की परिस्थितियां ऐसी हैं कि प्रेम के लिए पहले सुपात्र ढूंढना आवश्यक है, वैसे व्यक्ति की खोज जो प्रेम का पात्र हो। हालांकि यह खोज प्रेम की पारंपरिक अवधारणा के विरुद्ध है, फिर भी यदि सुपात्र को न ढूंढा गया तो कुछ तय नहीं कि कौन सा प्रेमी कब अपनी प्रेमिका को किसी नरकासुर के यहां गिरवी रख दे।

वैसे कितना अजीब है न यह भी… पर क्या करेंगे, अब कृष्ण नहीं मिलते। वे द्वापर में थे, अब कलियुग है। अब कृष्ण केवल ईश्वर के रूप में मिल सकते हैं, प्रेमी के रूप में नहीं। फिर भी यदि कर सकते हों तो कर के देखिये कृष्ण से प्रेम, मेरा दावा है कि बांसुरी की ध्वनि सुनाई देगी। पक्का…।


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