Friday, April 19, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादअभिव्यक्ति की आजादी बच पाएगी नए नियमों से

अभिव्यक्ति की आजादी बच पाएगी नए नियमों से

- Advertisement -

SAMVAD 4


NRIPENDRA ABHISHEKभारत सरकार ने इस साल फरवरी में आईटी नियमों को कुछ बदलाव के साथ पेश किया था, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के कुछ नए नियम जोड़े गए हैं। सरकार ने इन प्लेटफॉर्म्स को 25 मई तक का वक्त दिया था। नए नियम 26 मई से लागू हो गए हैं, जिसके बाद सरकार नियम न मानने पर इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। भारत सरकार द्वारा लाए गए नए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के लागू होने के बाद पूरे देश मे हाय-तौबा मची हुई है, क्योंकि सभी सोशल साइट्स कंपनियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया हैं। यहां तक कि व्हाट्सएप ने तो कोर्ट का भी दरवाजा खटखटा दिया है। सभी कंपनियों द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला दिया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन नियमों के क्रियान्वयन के बाद डिजिटल मीडिया से जुड़े मसलों पर निर्णय लेने की न्यायालयीन शक्तियां कार्यपालिका के पास पहुंच जाएंगी और सरकार के चहेते नौकरशाह डिजिटल मीडिया कंटेंट के बारे में फैसला देने लगेंगे। प्रस्तुत अनुदेश में कुछ खामियां भी नजर आ रही हैं, जो चिंता का सबब बन सकती हैं।

स्रोत बताने को निजता के अधिकार के हनन से जोड़ा जा रहा है जो एक मौलिक अधिकार हैं। अवैध करार दिए गए पोस्ट को 36 घंटे में हटाने को कहा गया है, लेकिन बड़ा सवाल है कि इतनी कम समय में जांच कर लेना मुश्किल और खर्चीला साबित होगा। यहां एक बड़ी समस्या है कि फेक पोस्ट का अंतिम निर्णय सरकार को लेना है। फेक न्यूज को परिभाषित करने का कोई भी अधिकृत प्रावधान नहीं है। इसमें विपक्ष को दबाने का प्रयास किया जा सकता हैं। इसके अलावे सरकार के पूछने पर पोस्ट का प्रथम स्रोत की भी जानकारी देनी होगी और इसका भी अंतिम निर्णय सरकार को करना है। कंपनियों को नए नियम को लागू करने से होने वाली खर्चों से भी समस्या है क्योंकि इससे उनको आर्थिक हानि होगी।

सरकार अनुच्छेद (19)(2) का हवाला दे रही है, जिसके अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से किसी भी तरह देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता को नुकसान नहीं होना चाहिए। इन तीन चीजों के संरक्षण के लिए यदि कोई कानून है या बन रहा है, तो उसमें भी बाधा नहीं आनी चाहिए। किंतु यदि ऐसे गंभीर विषयों पर निर्णय सरकार के हित के लिए कार्य करने वाले कुछ नौकरशाह करने लगें और न्यायपालिका की भूमिका लगभग खत्म कर दी जाए तो डिजिटल मीडिया के लिए कार्य करना असंभव हो जाएगा।

यह जानना आवश्यक है कि यह सारी खुराफात कहां से प्रारंभ हुई है। भाजपा का आईटी सेल तो जाहिर है कि इन जहरीली पोस्ट्स से साफ किनारा कर लेगा। फिर हम सच तक कैसे पहुंचेंगे? क्या उन जन चर्चाओं का सत्य कभी भी सामने नहीं आएगा जिनके अनुसार भाजपा के आईटी सेल को जितना हम जानते हैं वह विशाल हिम खंड का केवल ऊपर से दिखाई देने वाला हिस्सा है? अब तो प्रत्येक राजनीतिक पार्टी का आईटी सेल है। दुर्भाग्य से अधिकांश राजनीतिक पार्टियां भाजपा को आदर्श मान रही हैं और इनके आईटी सेल नफरत का जवाब नफरत और झूठ का उत्तर झूठ से देने की गलती कर रहे हैं। सारी पार्टियां फेक एकाउंट्स की अधिकतम संख्या के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, नकली फॉलोवर्स की संख्या के लिए होड़ लगी है।

ऐसी दशा में क्या फेसबुक और ट्विटर से सच्चाई सामने आ पाएगी? जब सरकार यह कहती है कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के व्यापार का एक बड़ा भाग भारत से होता है और इन्हें भारत के कानून के मुताबिक चलना होगा तो क्या इसमें यह संकेत भी छिपा होता है कि इन प्लेटफॉर्म्स को सरकार के हितों का ध्यान रखना होगा और सत्ता विरोधी कंटेंट से दूरी बनानी होगी? नियमों के हिसाब से संस्थानों में तो निगरानी की तीन स्तर की व्यवस्था करनी है, लेकिन इसके बाद भी सरकार तमाम मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की एक समिति बनाएगी जो मीडिया की शिकायतें सुनेगी। इस समिति की सिफारिश पर सूचना मंत्रालय किसी चैनल या प्लेटफॉर्म को चेतावनी दे सकता है, माफी मांगने को कह सकता है या भूल सुधार करने या सामग्री हटाने को भी कह सकता है।

आखिरी फैसला सूचना प्रसारण सचिव के हाथ में होगा। जाहिर है, जब आखिरी फैसला सरकार के हाथ में है, तो उसके हित ही सर्वोपरि होंगे। सरकार अगर वाकई मीडिया की आजादी को बरकरार रखना चाहती है तो उसे इन दिशानिर्देशों को लागू करने से पहले पुनर्विचार करना चाहिए। हालांकि सरकार का दावा अब भी यही है कि वह मीडिया की आजादी पर कोई रोक नहीं लगा रही, लेकिन जिस तरह ये दिशा-निर्देश लाए गए हैं, उनसे सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि ऐसा करने वाला भारत पहला देश नहीं है। ब्राजील में नियम है सोशल साइट्स को सरकार के मांगने पर सारी सूचना देनी पड़ती है।

दुनिया में आज के दौर में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है, आज प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी डर के सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रख सकता है और उसे हजारों लोगों तक पहुंचा सकता है। अब, जबकि सरकार की नई गाइडलाइन आ चुकी है, देखना यह भी है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर आंच आए बिना, निजता के अधिकार का उल्लंघन किए बिना तथा मौलिक अधिकार के हनन किए बिना कैसे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा रहा है। आम जन के लिए भी जरूरी है कि लोग देशहित को प्राथमिकता दें और सोशल मीडिया का बेहतर तरीके से प्रयोग कर दुनिया के सामने भारत की बेहतर तस्वीर पेश करें।


SAMVAD 14

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments