- सस्ते टेस्ट के चक्कर में कोरोना के शिकंजे में रहे फंस
- डायग्नॉस्टिक लैबों के झांसे में फंस कर आरटीपीसीआर व एंटी बॉडी दो-दो कराने पर रहे टेस्ट
- लैब का रवैया भी ज्यादा कमाई के चक्कर में आरटीपीसीआर के बजाए एंटी बॉडी टेस्ट पर जोर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए कराए जाने वाले टेस्ट की जो कीमत सरकार की ओर से तय की गयी है, प्राइवेट डॉयग्नॉस्टिक लैब उसका दोगुना वसूल रही हैं। वहीं, दूसरी ओर कोरोना का पता लगाने के लिए सस्ते के चक्कर में बड़ी संख्या में लोग संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं।
प्राइवेट लैब की हकीकत से रूबरू होने के लिए जनवाणी संवाददाता ने मरीज बनकर ग्राउंड जीरों पर पहुंचकर सीधे लैब टैक्निशियन व काउंटर पर बैठ कर मरीजों को झांसा देने वाले स्टाफ से जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया।
कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए आमतौर पर चिकित्सक आरटीपीसीआर की सलाह देते हैं। आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट को संक्रमण का पता लगाने के लिए सटीक व अंतिम माना जाता है।
आईएमए के सचिव डा. अनिल नौसरान ने बताया कि आरटीपीसीआर टेस्ट कराने के शासन की ओर से टेस्ट का जो रेट तय किया गया है वह 1600 रुपये हैं। जबकि एंटी बॉडी टेस्ट के लिए 700 रुपये तय किए गए हैं, लेकिन बाइपास स्थित एक मल्टीनेशनल लैब जब खुद का टेस्ट कराने के नाम पर जब जनवाणी संवाददाता वहां पहुंचे तो काउंटर पर बैठे अमित नाम के युवक ने आरटीपीसीआर टेस्ट के 2400 रुपये फीस बतायी।
एंटी बॉडी के लिए 850 रुपये मांगे। जब उससे पूछा कि यदि कोई मरीज घर बुलाकर टेस्ट कराना चाहे तो उसने इस फीस में 200 रुपये अतिरिक्त जोड़ने की बात कही। प्राइवेट पैथलैब की झांसे में फंसकर बड़ी संख्या में लोग संक्रमण को न्योता दे रहे हैं। बकौल मेडिकल प्राचार्य डा. ज्ञानेन्द्र कुमार कोरोना संक्रमण का सही पता लगाने के लिए बेहतर होगा कि आरटीपीसीआर टेस्ट कराया जाए, लेकिन हो यह रहा है कि ज्यादा टेस्ट व कमाई के तथा कम समय लगने की वजह प्राइवेट लैब संक्रमण का पता लगाने के लिए मरीजों को एंटी बॉडी कराने की सलाह अधिक दे रही हैं।
जबकि चिकित्सकों का कहना है कि एंटी बॉडी से संक्रमण की शत-प्रतिशत स्थिति का पता नहीं चल सकता। शत-प्रतिशत स्टेट्स जानने के लिए बेहतर होगा कि आरटीपीसीआर कराया जाए। एंटी बॉडी में तकनीकि खामियां गिनायी जाती हैं।
क्या है एंटी बॉडी
जिला सर्विलांस अधिकारी डा. विश्वास चौधरी ने बताया कि एंटी बॉडी में जीन की जांच होती है। इसमें दो स्थिति होती हैं। पहली आईपीजी व दूसरी आईआईएम। एक स्थिति में रिपोर्ट यह बताती है कि संक्रमण है या नहीं। दूसरी स्थिति में रिपोर्ट यह बताती है कि संक्रमण आया था, लेकिन अब वह चला गया है। इसको आईआईएम की संज्ञा में रखा जाता है, लेकिन कई बार आईपीजी में सिम्टम नजर आते हैं तो उसके बाद कन्फर्म होने के लिए आरपीटीसीआर टेस्ट अनिवार्य हो जाता है। इससे मरीज पर दोहरी मार पड़ती है। अन्तोगत्वा उसे आटीपीसीआर कराना ही होता है।
100 टेस्ट की है अनुमति
कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए प्राइवेट पैथलैबों को सरकार की ओर से प्रतिदिन 100 टेस्ट करने की अनुमति दी गयी है। हालांकि रेलवे रोड स्थित एक पैथलैब के काउंटर पर बैठे बुकिंग एजेंट ने बताया कि शुरू में जब टेस्ट बहुत महंगे थे, तब ज्यादा लोग प्राइवेट टेस्ट कराते थे। अब सस्ते होने के बाद भी पहले जैसी कमाई नहीं रह गयी है। फिर बजाए आरटीपीसीआर के एंटी बॉडी पर जोर देते हैं। आरटीपीसीआर के लिए ज्यादातर लोग मेडिकल या दूसरे प्राइवेट अस्पतालों की ओर से भागते हैं, जहां फ्री टेस्ट की सुविधा है।
शहर में ये लैब कर रही टेस्ट
संक्रमण का पता लगाने के लिए जो लैब टेस्ट कर रही हैं उनमें बाइपास स्थित मैट्रोपोलिस, रोड स्थित मॉडर्न लैब, लाल पैथलैब, रैन बैक्सी शामिल हैं। इनके अलावा ये भी पता चला है कि कुछ लैब जिनको अनुमति नहीं हैं वो भी गुपचुप तरीके से कमीशन बेस पर सैंपल लेकर अधिकृत लैब को भेज रही हैं।
विवाद रहा है टेस्ट रिपोर्ट पर
मॉडर्न लैब सरीखे प्राइवेट लैब की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट विवादों का हिस्सा भी रही है। पूर्व में कई रिपोर्ट जो मेडिकल सरीखी सरकारी माइक्रो बॉयलोजी लैब में पॉजिटिव आयी थीं उन्हें जब बाहर कराया गया तो वो निगेटिव आयीं। उसको लेकर जमकर हंगामा भी मचा था। मामला शासन तक जा पहुंचा था। लैब को सील कर दिए जाने के दावे स्वास्थ्य विभाग ने किए थे, लेकिन बाद में हुआ कुछ नहीं। बल्कि प्राइवेट लैब की रिपोर्ट जिस पर तूफान खड़ा कर दिया था, को सही ठहरा दिया गया।
दहशत से पनप रहा धंधा
इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना के नाम भर से किसी भी शख्स की जान पर बन आती है। इसी डर का फायदा पैथलैब उठा रही हैं। खांसी व छींक को लेकर मरीज के मन में कई प्रकार की शंकाए पैदा कर जांच कराए जाने को कहा जाता है।
छोडे हुए हैं एजेंट
निजी पैथलैबों ने शहर भर में अपने ऐजेंट छोडेÞ हुए हैं। ये तमाम प्राइवेट अस्पतालों व नर्सिंग होम पर मिल जाएंगे। इसके अलावा निजी चिकित्सक भी इनकी सेवाएं लेते रहते हैं। इन एजेंटों का काम सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों व नर्सिंग होम से ज्यादा से ज्यादा सैंपल जमा करना है।