गांवों में निजी कृषि कार्यों के लिए मजदूरों की तेजी से बढ़ती अनुपलब्धता एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। मजदूरों की सुलभता को पहला धक्का मनरेगा से मिला। गांव गांव ज्यादातर कच्चे और अनुत्पादक कामों के लिये जाब कार्ड बने। बेरोजगारी दूर करने – शहर की ओर पलायन रोकने के लिए एक स्वागत योग्य कदम था यह।
निश्चित रोजगार की गारंटी के इस कार्यक्रम में कालान्तर में खेल होना शुरू हो गया और एक महान व्यक्ति के नाम की इस योजना में भ्रष्टाचार का यह आलम रहा कि फर्जी मस्टर रोल के आधार पर बिना मानक पूरा किये गये काम पर बैंक से मिलती मजदूरी को ग्राम प्रधान, तकनीकी सहायक, रोजगार सेवक और कथित मजदूर सद्भाव सहित बांट कर खाते पीते रहे। कुछ मजदूरों से ज्यादा काम कराया जाता था और फर्जी जाब कार्डधारकों के हिस्से में भी डालकर अनियमितता की जाती रही। सरकार ने सीधे खाते में भुगतान शुरू किया मगर तूं डाल डाल तो मैं पात पात के खिलाड़ी अब भी खेल में लगे हुए हैं।
आसान सी मजदूरी के चलते मनरेगा के श्रमिकों ने निजी खेती बारी में श्रम खपाना छोड़ दिया या फिर मोल तोल करने लगे। कोढ़ में खाज डबल इंजन का ह्यफ्री फंड का राशनह्य बना। बिना कुछ किये धरे महीने में परिवार के लगभग सभी सदस्यों यूनिट पर मु्रफ्त का चंदन घिस रघुनंदन स्कीम और वह भी महीने में दो दो बार ने निजी कृषि क्षेत्र की मजदूर उपलब्धता को खात्मे पर ला दिया।
गांव में रहकर मजदूरों की यह किल्लत देख रहाहूं। गेहूं की कटाई के लिये 400 रुपये प्रति दिन के हिसाब से भी मजदूर मुश्किल से मिल रहे हैं। कारण वही है। जब खाने पीने के दोनों जून का जुगाड़ सरकार मुफ्त में कर ही दे रही हैं तो काहे शरीर को हिलायें डुलायें, श्रम करें।
श्रीलंका की मुफ्तखोरी से सरकार सबक ले या न ले मगर इस फ्री फंड के अनाज वितरण से कृषि क्षेत्र की दशा निश्चित रुप से बिगड़ रही है। अर्थव्यवस्था पर भले ही अप्रत्यक्ष किंतु चोट पहुंच रही है। और केंद्र को तो खस्ताहाल देशों को अनाज – दान का भी चस्का लगा है। अफगानिस्तान और अभी-अभी श्रीलंका को भारी मात्र में खाद्यान्न दिया गया है।
मुझे आश्चर्य होता है कि मुफ्त राशन का एक हिस्सा खुले बाजार में बिक रहा है मगर सरकारी मशीनरी उसकी अनदेखा कर रही है। कम से कम ऐसे मुफ्तखोरों की और सरकारी राशन खरीदने वालों की धरपकड़ तो हो। बुलडोजर तो ठीक है मगर निगाह इस बहुव्याप्त भ्रष्टाचार पर भी हो जिसने ग्राम्य श्रम उपलब्धता को गहरे प्रभावित किया है। एक बार यह कार्यवाही शुरू हो गयी और कालाबाजारी में लिप्त उपभोक्ताओं के राशन कार्ड रद्द होने लग जाएं तो एक सकारात्मक संदेश जायेगा।
यदि जनप्रतिनिधियों और कुछ योग्य ब्यूरोक्रैट््स की नजर से गुजरे तो गावों में विकरालता की ओर बढ़ती इस समस्या पर कृपया ध्यान दें। मुफ्त का राशन स्कीम तार्किकता के दायरे में फौरी तौर पर लाना जरुरी है। यह देश की अर्थव्यवस्था को तो बचाएगा ही, लोगों में बढ़ती अकर्मण्यता को भी रोकेगा।
सरकार को चाहिए कि कृषि और श्रम विभाग के संयुक्त सहयोग से कृषि क्षेत्र में कुशल मजदूरों के एक कैडर की व्यवस्था भी हर गांव हो जिन्हें प्राइवेट मजदूरी की अनुमति हो भले ही इसके लिए मनरेगा की तर्ज पर एक अधिनियम संसद, विधानसभा से पारित कराया जाय।
जिस देश में कृषि अर्थव्यवस्था एक मजबूत रीढ़ हो। उसके गुणात्मक सुधार के लिये एक जिम्मेदार सरकार को सक्रिय होना ही चाहिए। बहुत अनुदान बंट गया है। अब कुछ ठोस भी हो। किसान सम्मान राशि की ओर चातक – टकटकी लगाये किसान और मुफ्तखोरी की लत पाले श्रमिक शनै:-शनै: कृषि अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने की कगार पर ला रहे हैं। उत्पादकता घटना शुरू होना निश्चित है। सरकारें समय रहते नहीं चेतीं तो एक श्रीलंका अपने देश में भी घटित हो सकता है। इसकी आहट सुनायी दे रही है।
डा. अरविंद मिश्रा