अरस्तू यूनान के महान दार्शनिक हुए हैं। एक समय ऐसा था जब अरस्तू के नाम की चर्चा चारों ओर फैल चुकी थी। सभी लोग उनके जीवन के विषय में अधिक से अधिक जानने के इच्छुक रहते थे। एक व्यक्ति ने सोचा कि जब अरस्तू इतने बड़े विद्वान हैं तो उनके गुरु कैसे होंगे, वो भी कोई महान और ज्ञानी होंगे।
अपनी जिज्ञासा लेकर वह एक दिन अरस्तू के पास पहुंचा और बोला, मैं आपके गुरु से मिलना चाहता हूं। अरस्तू का गुरु वैसे प्लेटो को माना जाता है। लेकिन अरस्तू ने शिक्षा के किसी एक स्रोत तक खुद को सीमित नहीं किया था।
अरस्तू जिज्ञासु व्यक्ति गुरु या सीखने के प्रति जिज्ञासु की सोच को ठीक करना चाहते थे। अरस्तू ने व्यक्ति से कहा, आप मेरे गुरु से नहीं मिल सकते। हैरान होकर व्यक्ति ने पूछा, क्या आप अपने गुरु से मुझे मिलवाना नहीं चाहते?
अरस्तू बोले, बात यह है कि मेरा गुरु एक नहीं, अनेक हैं और उनके विषय में सुनने के बाद तुम्हारी जिज्ञासा और बढ़ेगी। व्यक्ति ने फिर कहा, आपकी बात मैं समझ नहीं पा रहा हूं, कृपया मुझे अच्छी तरह समझाइए। इस पर अरस्तू ने मुस्कुराते हुए कहा, इस दुनिया के सारे मूर्ख मेरे गुरु हैं।
अरस्तू ने उन्हें समझाया, सचाई यह है कि किसी व्यक्ति को मूर्ख उसके किसी न किसी अवगुण के कारण समझा जाता है। तो जब भी मैं किसी मूर्ख से मिलता हूं, पहले उसके अवगुण की पहचान करता और फिर यह देखता हूं कि कहीं वह अवगुण मुझमें भी तो नहीं। अगर हुआ तो उसे दूर करने में लग जाता हूं।
मैंने महान बनने के लिए दूसरे के गुणों को आत्मसात नही किया है, बल्कि अपने अवगुणों को दूर करने पर अधिक ध्यान दिया है। उत्तर सुनकर व्यक्ति अरस्तू के सामने मत मस्तक हो गया।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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