पूनम दिनकर
क्या हुआ जो आप अपने बेटे को इंजीनियर, बेटी को डॉक्टर बनाने की ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाए? आपके बच्चे की मार्कशीट मैरिट लिस्ट से मेल नहीं खाती…फिर भी आपका बच्चा लाखों में एक है।…जरा उसकी खूबियों को तो पहचान कर देखिए! शिक्षाविद् एवं मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हरेक माता-पिता को इन बातों को अपना सहज स्वभाव बना लेना चाहिए।
बच्चों की पढ़ाई आज के समय में माता-पिता के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। एडमिशन से लेकर कैरियर की मंजिल तक हर कदम संघर्षपूर्ण होता जा रहा है। प्रतियोगिता की बढ़ती दौड़, स्कूली खर्चों का बढ़ता दबाव, ऊपर से यदि बच्चा ‘एवरेज’ है, तो उसके भविष्य की फिक्र।
बच्चे पढ़ने में कमजोर हैं, साधारण हैं या तेज हैं, इन सबके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य ही होता है क्योंकि न तो हर बच्चे का आईक्यू स्तर एक जैसा होता है, न ही उनके इर्द-गिर्द घर या स्कूल का वातावरण एक जैसा होता है और न सुविधाएं एक जैसी होती हैं और न ही मन तथा शरीर ही। भावना-संवेदना समान होती हैं। ये सभी बातें पढ़ाई तथा उसके व्यक्तित्व को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाती हैं।
परिवार का माहौल, स्कूल के अध्यापक, मित्र, निंदा, प्रोत्साहन आदि अनेक ऐसी बातें हैं जिनका प्रभाव बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। इन बातों पर गौर किया जाना चाहिए और बच्चे के हित को ध्यान में रखते हुए, उन पर अमल करते हुए बेहतर सुधार का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
क्या हुआ जो आप अपने बेटे को इंजीनियर, बेटी को डॉक्टर बनाने की ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाए? आपके बच्चे की मार्कशीट मैरिट लिस्ट से मेल नहीं खाती…फिर भी आपका बच्चा लाखों में एक है।…जरा उसकी खूबियों को तो पहचान कर देखिए! शिक्षाविद् एवं मनोवैज्ञानिकों के अनुसार हरेक माता-पिता को इन बातों को अपना सहज स्वभाव बना लेना चाहिए।
-बच्चे आमतौर पर संकोची होते हैं और उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। ऐेसे बच्चों को कदम-कदम पर प्रोत्साहन की जरूरत होती है। अत: छोटी उपलब्धियों पर भी उनकी प्रशंसा करें, शाबाशी दें, उपहार दें ताकि वे निरन्तर सफलता की ओर बढ़ते रहें।
-अपने बच्चों को समझने के लिए आपको उनके स्तर पर आना होगा। उनके दृष्टिकोण को समझना होगा, उनकी भावनाओं तथा जरूरतों को समझें। उनके हित में जो भी कदम उठाना चाहते हैं, उनमें बच्चों की भी स्वीकृति शामिल होनी चाहिए।
-बच्चों की हरेक गतिविधि में भरपूर रुचि लें। इसके लिए जरूरी है कि माता-पिता बच्चों की छोटी-बड़ी हर बात को जानें, उसकी अवहेलना न करें।
-अपने बच्चों की खूबियों को पहचानें। हर बच्चा दूसरे से अलग होता है और हर बच्चे में कोई न कोई खूबी होती ही है, एक विशेष गुण होता है।
-बच्चों की कमजोरी को उनकी ताकत बनाने की कोशिश भूल कर भी न करें। उदाहरण स्वरूप यदि आपका बच्चा सिर्फ हिन्दी ही बोलता है, अंग्रेजी न बोल पाने के कारण शर्म महसूस करता है तो हिन्दी के प्रति जागरूक बनाकर उसे इतना आगे बढ़ाएं कि उसे हिन्दी भाषी होने का गर्व हो।
-सही समय पर उचित मार्गदर्शन करें। यह तभी सम्भव होगा, जब आप उसकी दिनचर्या को पूरी तरह जानेंगे और उसके साथ समय व्यतीत करेंगे। घटना को जानने के बाद समझाना या लेक्चर देना लाभ से अधिक हानि पहुँचा सकता है। समस्या होने पर चिन्ता के बजाए, चिन्तन कीजिए और उचित मार्गदर्शन प्रदान कीजिए।
-बच्चों से बातचीत करते समय तुलनात्मक रवैय्या या व्यंग्यपूर्ण भाषा का प्रयोग करना सर्वथा अनुचित है। इस तरह वे पलटकर जवाब दे सकते हैं। इस तरह के व्यवहार, आचरण व बोली से उनका मनोबल टूटता है। सकारात्मक माहौल के बजाय नकारात्मक स्थितियाँ बनने लगती हैं।
-बच्चों को परीक्षा के महत्व को सही तरीके से समझायें कि परीक्षा क्यों जरूरी है। परीक्षा द्वारा ही जाना जा सकता है कि बच्चे को विषय का कितना ज्ञान है? और उसे कितनी मेहनत और करनी चाहिए?
-सबसे प्रमुख बात याद रखें कि परीक्षाफल के अंक केवल बच्चे की बुद्धि, स्मरणशक्ति तथा लिखित योग्यता का संकेत है, जिन्दगी की दौड़ में सफलता की कसौटी नहीं। सफलता मिलती है समग्रता से अर्थात उसके लिए जरूरी है, शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक, व्यावहारिक व भावनात्मक पहलुओं का संतुलित संगम। कई बार ये बातें बच्चों में कम, अभिभावकों के व्यवहार में अधिक होती हैं, जिसका असर बच्चों के व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है।
-मुख्य रूप से इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि बच्चों को किसी भी हालत में तनावग्रस्त नहीं रखना है क्योंकि तनाव कुंठा को जन्म देती है और बच्चे का सर्वांगीण विकास रुक जाता है।