Wednesday, June 26, 2024
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अधिकार के साथ कर्तव्य भी याद रखें

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NAZARIYA


GULSHON GUPTAक्या आपने कभी सुना है एक सुनहरे-काले रंग की एक ऐसी मुकद्दस किताब के बारे में, जिसकी उम्र आज 72 वर्ष की हो गयी है। पर आज भी उसके इशारे पर सारे हुक्मरान व रियाया सिर झुकाकर खड़े हो जाते हैं। क्या है इस किताब में, और कहां है ऐसी किताब? इन सभी प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर है ‘भारत का संविधान’। जी हां वही संविधान जिसके आलोक में हुक्मरान अपने निर्णय करते हैं, जज अपराधी को उसके किए का दंड देते हैं और समाज उसके हिसाब से चलता है। आज ही के दिन यानि 26 नवंबर 1949 को इसे 299 संत समान विद्वतजनों ने पूर्ण कर सभा के समक्ष रखा था। सभा ने इसे हिंदुस्तान का मुस्तकबिल मानकर स्वीकार किया था। जीवित ही किवदंती बन चुके डॉ. भीमराव अंबेडकर, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आयंगर, केएम मुंशी, वल्लभभाई पटेल, अबुल कलाम आजाद, जेबी कृपलानी जैसे तटस्थ विद्वानों ने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के अथक परिश्रम से इसमें भारत का भाग्य लिखा था। इसे हम भूल न जाएं इसीलिए प्रतिवर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे हैं।

तब इस मुकद्दस पुस्तक में 395 अनुच्छेद, 22 भाग व 8 अनुसूचियां थीं। आज 72 वर्ष बीतने के बावजूद इसमें केवल 100 के लगभग संशोधन कर इसे युवा ही रखा गया है। पूरी दुनिया का सबसे विशाल लिखित संविधान बनकर इसने दुनिया के लिए एक आश्चर्य प्रस्तुत किया है। जहां कई देशों में केंद्र और राज्यों के लिए अलग- अलग संविधान हैं, वहीं हिंदुस्तान में सभी राज्य व केंद्र केवल और केवल इसी जीवंत किताब से अपनी ताकत प्राप्त करते हैं। संविधान में समाज के अंतिम छोर पर खड़े आदमी के अधिकारों की चिंता कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला छोड़ उसका ध्यान रखा गया है। फिर सुप्रीम कोर्ट भी इसी के आलोक में सही-गलत का निर्णय करती है। वही इस किताब में लिखे नियम-कायदों की व्याख्या करने के लिए अधिकृत है।

समाज के दबे कुचले लोगों के सम्मान से जीवनयापन करने के लिए आरक्षण का प्रावधान कर मानों पारस पत्थर उन लोगों के हाथ में दिया गया है, जिन्होने कई पीढ़ियों से सामाजिक अपमान व आर्थिक विपन्नता का दंश झेला है। जहां कई मुल्क अपने को किसी धर्म विशेष का बता फख्र महसूस करते हैं, वही हमारे संविधान ने हिंदुस्तान को धर्मनिरपेक्ष बना सभी को अपना-अपना मजहब मानने उसके अनुसार आचरण करने और प्रचार करने की छूट देकर एक बार तो दुनिया को सकते मे डाल दिया था। प्रस्तावना में ही सभी को अपने विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है। उसे शासन-प्रशासन में अवसरों की समानता देने की बात भी प्रस्तावना में ही लिख दी गयी है। परंतु देश पहले की बात करते हुए प्रस्तावना यह उम्मीद भी करती है कि इन सबके बाद हम भी इस हिंदुस्तान की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करेंगे।

संविधान की सबसे बड़ी खूबी कि यह भारत के लोगों की बात करता है न कि सत्ताधीशों की। इसकी प्रस्तावना की महत्ता इस कहावत से समझी जा सकती है कि, ‘खत का मजमून भांप लेते हैं लिफाफा पढ़कर’। बिल्कुल सही है कि प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ से शुरुआत होकर अंत में ‘आत्मार्पित करते हैं’ तक पूरा प्रयास भारत की जनता के हाथों में ताकत है, का संकेत देना ही है। यह ताकत एक मतदाता के रूप में व्यक्ति सरकार बनाने में प्रयोग करता है और अपनी मर्जी का शासक चुनता है अपने ऊपर शासन करने के लिए। यानि सत्ता की चाबी जनता के हाथों मे देकर इसे लोकतंत्र बनाया गया है। वहीं प्रस्तावना के मध्य में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, गणराज्य जैसे महान शब्दों के प्रयोग ने इसे दुनिया का सबसे खूबसूरत संविधान बना दिया है।

संविधान में राज्यों व केंद्र से लोक कल्याणकारी शासन की बात स्पष्ट रूप से कही गई है। इसके लिए संविधान में नीति-निर्देशक तत्वों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जो लोक कल्याणकारी शासन का पथ प्रशस्त करते हैं। नागरिकों के लिए एक ओर तो उनके 6 मूल अधिकारों की बात की गई है, जो असाधारण है और आसानी से उनमें न तो संशोधन हो सकता है न ही निरस्तीकरण। मूल अधिकार नागरिकों के लिए जीने का आधार हैं, इनमें प्रमुख हैं, समानता, स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता, संस्कृति व शिक्षा संबंधी, और शोषण के विरुद्ध अधिकार। वहीं देश के प्रति व समाज के प्रति उनमें उत्तरदायित्व की भावना भरने के लिए 10 मौलिक कर्तव्य भी रखे गए हैं। वक्त की जरूरत के हिसाब से कुछ वर्ष पहले 11वां मौलिक कर्तव्य ‘शिक्षा देना’ जोड़ा गया।

हालांकि संविधान को संत तुल्य विद्वतजनों द्वारा देश व देशवासियों की प्रगति के लिए अथक परिश्रम से अनेक देशों अमेरिका, फ्रांस, रूस, आयरलैण्ड, आस्ट्रेलिया जर्मनी, ब्रिटेन, दक्षिणी अफ्रीका, रूस, जापान आदि के संविधान का अध्ययन कर बनाया गया था। इन सब की बेहतरीन बातों का समावेश कर इसे सर्वश्रेष्ठ बनाने का बेहतरीन प्रयास किया गया। आज आवश्यकता है संविधान को जन-जन तक पहुंचाने की, ताकि हर तबके का हर वर्ग का व्यक्ति इसे समझकर इसको आत्मसात कर सके। अपने अधिकारों की बात करने से पहले अपने कर्तव्य भी जान लें और तदनुसार आचरण कर हिंदुस्तान को विश्व-गुरु बनाने को अपना योगदान दें। आज महती आवश्यकता है संविधान के पिता कहे जाने वाले भीमराव अंबेडकर के उन शब्दों को याद रखने की कि ‘मैं पहले भी भारतीय हूं, मध्य में भी भारतीय हूं और अंत में भी भारतीय ही रहूंगा।’


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