मौजूदा वक्त में मानव जीवन कई दुश्वारियों से होकर गुजर रहा है। आज मानव के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखने की है। आज के इस प्रगतिशील दौर में मानव की अनन्त चाह ने जीवन को खासा प्रभावित किया है। पिछले कुछ समय से आत्महत्या, अवसाद, तनावग्रस्तता जैसे लफ्ज सुनने में बहुत ज्यादा आ रहे हैं। इसकी एक ही वजह है, मानसिक संतुलन बरकरार नहीं रख पाना। आज मानव कुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ गंवा बैठ रहा है। मानव की दुश्चिंताओं में दिनों-दिन बड़ी तेजी के साथ इजाफा हो रहा है। इसके चलते मानसिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है, जिसका परिणाम है कि वह अपने आत्मविश्वास, सहनशक्ति और स्पष्ट जीवन लक्ष्य एवं संवेगों पर से नियंत्रण खो रहा है। मौजूदा तथाकथित प्रगतिशील दौर में मानव दुर्गति की ओर बढ़ रहा है। अवसाद और तनाव बढ़ाती जीवन शैली नकारात्मकता, निकम्मेपन और आत्महत्या जैसे विचारों को तरजीह दे रही है।
बड़ा सवाल कि आखिर मानसिक स्वास्थ्य किस स्थिति का नाम है?
मनोविज्ञानी कुप्पुस्वामी मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, दैनिक जीवन में इच्छाओं, भावनाओं, आदर्शों तथा महत्वाकांक्षाओं में संतुलन स्थापित करने की योग्यता का नाम ही मानसिक स्वास्थ्य है। यह हकीकत है कि आज मानव अपनी इच्छाओं पर से नियंत्रण खोता जा रहा है। अपनी जीवन शैली को इतना दूषित कर रखा है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। यदि मानव जीवन को सुखमयी बनाना है तो आवश्यक शर्त यह है कि अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और विचारों में शुद्धता के साथ-साथ यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की सख्त दरकार है। इसके अलावा मानव अपने भीतर संतुष्टि की भावना, सहयोग की भावना, पर्यावरण के प्रति सहानुभूति जैसे गुणों को इजाद कर लेता है, तो मानव न केवल मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी अपने को हृष्ट और पुष्ट पाएगा।
यदि हम मौजूदा वक्त की बात करें तो मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोरोना वायरस प्रस्तुत कर रहा है। कोरोना वायरस ने दुनिया के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था को धाराशाई कर दिया है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई प्रयत्न किए जा रहे हैं। इन दिनों भारत में महंगाई शिखर छू रही है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि बदस्तूर जारी है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कारण लोगों की आमदनी पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। और इधर सर उठाती महंगाई ने मुफलिस वर्ग का जीना दुभर कर रखा है। कोरोना महामारी ने कई लोगों को हाशिए पर धकेल दिया है।
कोरोना काल ने लोगों को भय और आर्थिक विषमताओं से दो-चार होने को विवश कर दिया है। इसके चलते अवसाद की समस्या में बढ़ोतरी हुई है। इसी चलते 2019 के मुकाबले 2020 में आत्म हत्याओं के मामलों में इजाफा हुआ है। आंकड़े बताते है कि 2019 की तुलना में 2020 में आत्महत्या के 499 मामले बढ़े हैं। जानकारों की मानें तो आत्महत्या की वजह सामाजिक, आर्थिक व चिकित्सकीय है। सामाजिक कारणों में अफेयर, शादीशुदा जिंदगी से जुड़ी चीजें, परिवार और मित्रों के साथ आने वाली दिक्कतों ने अवसाद और तनाव की स्थिति पैदा की जिसके चलते कई लोगों ने मौत को गले लगाया।
आर्थिक कारणों में बिजनेस का डूबना, नौकरी का छूटना, आय का साधन न होना और कर्ज जैसी समस्याओं ने मानसिक स्वास्थ्य को खासा प्रभावित किया है। वहीं चिकित्सकीय कारणों में लाइलाज शारीरिक और मानसिक बीमारी, गहरा डिप्रेशन, बुढ़ापे की परेशानी और अकेलापन शामिल हैं। ऐसी कई दुश्वारियों के चलते अवसाद की परिस्थितियां पनपी और आत्महत्या का रास्ता अपनाया। भारत के लिए समस्या यहीं खत्म नहीं हो जाती, सबसे बड़ी समस्या देश की युवा आबादी के जीवन से होते मोह भंग की है।
आंकड़े बताते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाली आबादी की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच की है। ऐसे में यह वाकई बेहद चिंताजनक है। चूंकि युवाओं को किसी भी समाज में आशा, कल्पना, उत्साह, ऊर्जा, आदर्श व धमनियों में उफनते रक्त का पर्याय माना जाता है। एक नजर हम आत्महत्या के आंकड़ों पर डालें तो पाएंगे कि वर्ष 2020 में सबसे ज्यादा आत्महत्या 18 से 30 वर्ष की उम्र के पुरुषों ने की है, वहीं महिलाओं में भी सबसे अधिक 18 से 30 वर्ष वालों ने ही खुदकुशी की है। जाहिर सी बात है कि देश की युवा आबादी अवसाद से सर्वाधिक ग्रस्त है।
युवा आबादी कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि स्कूल बंद होने से युवाओं की शिक्षा, जीवन और मानसिक कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया भर में महामारी के दौरान 65 फीसद किशोरों की शिक्षा में कमी आई है। इसके साथ ही बहुत बड़ी आबादी के हाथों से रोजगार चला गया है। अब जरूरत इस बात की है कि सरकार को बढ़़ती बेरोजगारी पर अंकुश लगाकर रोजगार के अवसर सुलभ करवाने चाहिए।
इसके अलावा एक हेल्पलाइन सेवा भी शुरू की जानी चाहिए, जहां युवा अपनी मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के हल प्राप्त कर सकें। साथ ही सामाजिक बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है। यदि भारत युवा आबादी की क्षमताओं का लाभ उठाना चाहता है, तो उसे सामाजिक बुनियादी ढांचे में अच्छा स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में सुधार करने के लिए निवेश करना चाहिए और इसके साथ-साथ पूरी आबादी को अच्छा और योग्यता के अनुरूप रोजगार प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए।