कुमार कृष्णन
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2024 के अनुसार भारत में लगभग हर बीस में से एक व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हो सकता है। यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। विश्व स्तर पर, लगभग 26.4 करोड़ लोग अवसाद से प्रभावित हैं। तुलनात्मक रूप से देखें तो महिलाओं में अवसाद अनुभव करने की संभावना अधिक होती है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अवसाद किसी भी समय और किसी भी उम्र में हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में अवसाद अधिक है। एक अन्य रपट के अनुसार अविवाहित लोगों की तुलना में विवाहित लोगों में अवसादग्रस्त होने की संभावना 60 फीसदी अधिक होती है। जबकि विवाहित व्यक्ति परिवार में रहता है, तो फिर क्यों अवसाद का शिकार होता है क्योंकि कई बार परिवार या समूह में रह कर भी मनुष्य यह अनुभव करता है कि कोई उसे नहीं समझता, किसी के पास उसके लिए समय नहीं है। वह किसी से अपनी बात साझा नहीं कर पाता। ऐसे में खुद को अकेला पाता है।
अवसाद के प्रकार
रोगजन्य और शरीरजन्य अवसाद : यह किसी दूसरी बीमारी (गंभीर व जीवन पर्यंत चलने वाली) या किसी इलाज के कारण होती है।
उम्मीद या विफलता आधारित अवसाद : यह उस स्थिति में होता है, जब कोई अपनी उम्मीद पूरी नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी या एक खिलाड़ी जो किसी परीक्षा या खेल में आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाता। यह क्षणिक होता है, परंतु उन्हें इससे बाहर निकलने की आवश्यकता है, ताकि उनका अगला प्रदर्शन प्रभावित न हो।
भावनात्मक अवसाद : यह भावनात्मक जुड़ाव के टूटने पर होता है। उदाहरण के लिए दो व्यक्ति जो एक दूसरे के अत्यधिक नजदीक हैं, तो किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु या शोक से भी अवसाद हो सकता है।
अहम केंद्रित अवसाद: अवसाद का यह प्रकार उन लोगों में होता है, जो उच्च अधिकार प्राप्त तथा उच्च पद/स्थिति में जीवन बिताते हैं और जब वे पाते हैं कि अब इसके अधिकारी नहीं है। आमतौर पर यह बीमारी तब होती है, जब लोग अवकाश प्राप्त करने के करीब होते हैं।
योग से करें अवसाद का सामना
योग वास्तव में मस्तिष्क तथा भावनाओं का विज्ञान है और इसलिए अवसाद के लक्षणों को दूर करने के लिए यह एक महान वरदान है। अवसाद के मामलों में जिस चीज की तुरंत आवश्यकता होती है, वह है व्यक्ति को लक्षण के अनुरूप आराम पहुंचाना। किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति और भावनाएं उसकी शारीरिक मुद्रा में प्रतिबिंबित होती हैं। यदि शारीरिक मुद्रा में कोई संशोधन होता है, तो यह व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति में बदलाव ला सकता है। यहीं पर योग की शारीरिक मुद्रा (आसन) अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की मदद कर सकती है। यह प्रभाव क्षणिक हो सकता है परंतु जब एक निश्चित समय तक इसका निरंतर अभ्यास किया जाता है, तो यह व्यक्ति में परिवर्तन ला सकता है और अवसाद से मुक्ति दिला सकता है। पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने मनोरोगों के उपचार में योग के महत्व पर प्रकाश डाला है। उन्होंने योग निद्रा, भ्रामरी, भस्त्रिका और अनुलोम विलोम जैसे प्राणायामों को अवसाद और चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रभावी बताया है।
विभिन्न आसनों में विपरीत दंडासन हैं। इसमें कंधे को पीछे ले जाया जाता है, जिससे छाती खुलती है और इस प्रकार यह अवसाद की मुद्रा का प्रतिकार करता है। हालांकि कोई व्यक्ति इन आसनों को तुरंत ही नहीं कर सकता क्योंकि इसमें रीढ़ की हड्डी को पीछे की ओर वलय रूप में मुड़ने लायक होना चाहिए। यही कारण है कि खड़ी मुद्रा वाले आसन जैसे त्रिकोणासन, पार्श्वकोणासन और अर्धचंद्रासन इस प्रकार सहायता प्रदान करते है कि इससे रीढ़ मजबूत होती है और एक व्यक्ति पीछे की ओर झुक जाता है। जैसा कि पहले कहा गया है कि आसन प्रभावी होते हैं, परंतु जब हम अवसाद ग्रस्त होते हैं, तो हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प हमसे दूर हो जाते हैं। किसी कार्य को पूरा करने की हमारी इच्छा अपने निम्न स्तर पर होती है। ऐसी स्थिति में विख्यात योगाचार्य वी.के.एस. आयंगर ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने घरेलू मुड़ने वाली कुर्सी का उपयोग किया ताकि एक व्यक्ति आसानी से विपरीत दंडासन कर सके, जिससे उसके मन और मस्तिष्क में परिवर्तन संभव हो सकेअवसाद के लक्षणों को समाप्त करने में उल्टे आसन सहायता करते हैं। इन उल्टे आसनों के अंतर्गत अधोमुख वृक्षासन, पिंच मयूरासना, शीर्षासन, सर्वांगासन और सेतु बंध सर्वांगासन आते हैं। इन सभी आसनों को करते समय हमारा मस्तिष्क हृदय से नीचे होता है। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति आंतरिक भय से पीडित होता है, ये आसन आंतरिक भय जैसे किसी वस्तु, व्यक्ति के खोने का डर, असफलता का भय और शक्तिहीन होने के डर से हमें मुक्ति दिलाते हैं।
प्रत्येक आसन में सांस लेने की विशेष प्रक्रिया होती है। एक व्यक्ति को इसे गंभीरतापूर्वक देखना चाहिए और सांस के प्रति अपने मन में जागरूकता का विकास करना चाहिए। सांस की जागरूकता के साथ जब आसन किये जाते हैं, तो अभ्यास करने वाला व्यक्ति आसन के साथ एकीकृत हो जाता है। इसमें सांस छोड़ने की प्रक्रिया लंबी हो जाते हैं और इससे तनाव भी बाहर निकल आता है। इसी प्रकार जब हम गहरी सांस लेते हैं, तो हममें साहस की भावना मजबूत होती है। यौगिक उपचार के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं में है। आश्रम जीवन, जो व्यक्ति वास्तव में सकारात्मक शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को आकांक्षी है एवं उन मूल कारणों की खोज करना चाहता है, जो जीवनचर्या एवं विचारधारा की गड़बड़ी से रोग उत्पन्न करते हैं उसे आश्रम में रहकर, थोड़े समय में ही यह जानकारी मिल जाएगी। साथ ही साथ सही जीवनशैली एवं योग के साथ उनका अनुकूलन तीव्रता से होगा।