Friday, January 24, 2025
- Advertisement -

सनातन धर्म और क्रांति की पहचान औघड़नाथ मंदिर

  • मंदिर प्रांगण में धार्मिक संस्कृति के साथ मिलती है देशभक्ति की प्रेरणा, दूरदराज से आते हैं श्रद्धालु

विशाल भटनागर |

मेरठ: देशभर में वैसे तो सभी धार्मिक स्थल इतिहास के किसी न किसी अध्याय से जुड़े हुए हैं, लेकिन औघड़नाथ मंदिर क्रांति की शुरूआत से ही इतिहास के पन्नों में अपनी अलग पहचान रखता है। धार्मिक संस्कृति के साथ-साथ मंदिर प्रांगण में शहीदों की स्मृति बने स्मारक से युवाओं को क्रांति की भी प्रेरणा मिलती है।

किस तरह से हमारे देश के वीर योद्धाओं ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का विरोध करते हुए क्रांति की ज्वाला प्रज्जवलित की थी। मंदिर के मुख्य पुजारी श्रीधर त्रिपाठी ने बताया औघड़नाथ मंदिर देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से सीधा जुड़ा हुआ है। इसी मंदिर में देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव की शुरूआत हुई थी। ये देश के सबसे पुराने शिव मंदिरों में शुमार होता है। जिसको पहले काली पलटन के नाम से जानते थे।

काली पल्टन के नाम से भी जाना जाता है

औघड़नाथ मंदिर को काली पल्टन के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। यह मंदिर काली पल्टन क्षेत्र में होने के कारण काली पल्टन मंदिर के नाम से भी विख्यात है। मंदिर की स्थापना का कोई निश्चित समय उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि ये मंदिर सन 1857 से पहले विद्यमान था।

1857 में वीरों ने बनाई थी रणनीति

औघड़नाथ शिव मंदिर के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है कि इसी मंदिर से 1857 की क्रांति का बिगुल बजा था। मंदिर के मुख्य पुजारी श्रीधर त्रिपाठी ने बताया कि बंदूक के कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने के बाद सिपाही उसे मुंह से खोलकर इस्तेमाल करने लगे थे।

तब मंदिर के पुजारी ने उन जवानों को मंदिर में पानी पिलाने से मनाकर दिया। ऐसे में पुजारी की बात सेना के जवानों को दिल पर लग गई। उन्होंने उत्तेजित होकर उन्होंने 10 मई, 1857 को यहां क्रांति का बिगुल बजा दिया। औघड़नाथ मंदिर में कुएं पर सेना के जवान आकर पानी पीते थे।

इस ऐतिहासिक कुएं पर आज भी बांग्लादेश के विजेता तत्कालीन मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा स्थापित शहीद स्मारक क्रांति के गौरवमय अतीत का प्रतीक उल्लेखित है। इस मंदिर के आसपास के शांत वातावरण और गोपनीयता को देखकर अंग्रेजों ने यहां अपना आर्मी ट्रेनिंग सेंटर बनाया था। भारतीय पल्टनों के समीप होने की वजह से अनेक स्वतंत्रता सेनानी यहां आकर ठहरते थे।

कोरोना की वजह से बंद थे कपाट, अब खुले

मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि कोविड-19 के वजह से मंदिर के कपाट लगभग छह माह से बंद पड़े थे। उन्होंने बताया कि मंदिर में आने जाने वाले युवाओं को सनातन धर्म संस्कृति के साथ-साथ किस तरीके से क्रांतिकारियों ने अपने जीवन की आहुति देकर अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से देश को आजाद कराया था।

इसके बारे में युवाओं को बताते हैं। बता दें कि औघड़नाथ शिव मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। फाल्गुन में शिवभक्त कांवड़ चढ़ाते हैं। मान्यता है कि औघड़नाथ शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू हैं। औघड़नाथ शिव मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है। अनंतकाल से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। इसी कारण इसका नाम औघड़नाथ शिव मंदिर पड़ गया।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Nia Sharma: निया ने थाईलैंड से आग वाला स्टंट करते हुए वीडियो किया शेयर, फैंस कर रहे तारीफ

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Bijnor News: सुंगरपुर बेहड़ा गांव में लाखों की चोरी, सीसीटीवी में कैद हुई वारदात

जनवाणी संवाददाता | नांगल सोती: बुधवार की रात नांगल थाना...

आलू का पिछेती झुलसा रोग

लेट ब्लाइट एक ऐसी बीमारी है जो आलू, टमाटर...
spot_imgspot_img