- सांप्रदायिक दंगे, सरकारों की अनदेखी, नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन सरीखी एक-दो नहीं कई वजह
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: देश ही नहीं दुनिया भर में जिस कैंची के नाम से मेरठ को पहचान हासिल थी वक्त के थपेड़ों ने उसकी कारोबारी धार को कुंद कर के रख दिया। कारोबारी हालात की यदि बात की जाए तो मेरठ का कैंची कारोबार अंतिम सांसें गिन रहा है। सरकार की ओर यदि तुरंत ही उसकी ओर ध्यान नहीं दिया गया तो कैंची कारोबार चंद कारीगरों के परिवारों की बिरासत भर रह जाएगा।
शहर के जो इलाके किसी दौर में कारीगरों तथा कारोबारी शोर से गुलजार रहते थे वो वहां अब सन्नाटा सरीखे हालात बने हुए हैं। कारखाने तो हैं मगर गिनती भर के। काम भी हो रहा है, लेकिन सिर्फ गुजरा भर के। जो रौनक इसक कारोबार और इसके कारोबारियों तथा कारीगरों की हुआ करती थी, वो अब नजर नहीं आती।
कैंची कारोबारी की के इस हश्र की जमीनी हकीकत को जानने की कोशिश इस संवाददाता ने ग्रांउड जीरों पर पहुंच कर करने की कोशिश की है। कैंची जैसी वस्तु की यदि सालाना टर्नओवर यदि सत्तर से 80 करोड़ है तो इसको किसी भी तरह से कम नहीं आंका जा सकता।
देशभर से कैंची के आर्डर कोतवाली क्षेत्र के कैंची कारोबारियों को आते हैं। इस इलाके के अलावा शहर के विकासपुरी, तारापुरी, रशीदनगर, लखीपुरा सरीखे इलाकों में भी कारखाने खुल गए हैं। इन सभी को मिलाकर मेरठ का सालाना कैंची कारोबार करीब 77 से 80 करोड़ बैठता है। कई बार आंकड़ा ज्यादा भी हो जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि यह पूरे साल चलने वाला काम है। केवल बारिश के मौसम में थोड़ा डाउन आता है।
मेरठ में फिलहाल 100 के करीब कैंची कारोबारी है। इनके पास लगभग तीन हजार कारागीर काम कर रहे हैं, लेकिन यदि अपरोक्ष रूप से काम की बात की जाए तो लगभग एक लाख परिवारों के गुजारे का सहारा कैंची कारोबार है। इतने बडेÞ स्तर पर लोगों की रोटी रोजी का सहारा होने के बाद भी सरकार की ओर से इसके कारोबारियों की कोई मदद नहीं की जा रही है।
छोटे से इलाके में रह गया सिमट कर
कोतवाली का गुजरी बाजार तीरगरान इलाका करीब दो से तीन दशक पहले दुनिया भर के कैची कारोबार के सबसे बडेÞ ठिकाने के तौर पर पहचाना जाता था। जिस दौर की यहां बत की जा रही है उस दौरान इस इलाके में शायद ही ऐसा कोई मकान या जगह होगी जहां कैंची को तैयार करने वाले काम की गर्द न उड़ती हो, लेकिन वो दौर अब पूरी तरह से बदल गया है।
जिस इलाके में चप्पे-चप्पे पर कैंची कारोबार हुआ करता था, उस इलाके में मेरठ को दुनिया में पहचान दिलाने वाला ये कारोबार कुछ ही जगह सिमट कर रह गया है। कोतवाली इलाके में रहने वाले गुलजार का कैंची पुश्तैनी कारोबार है। वो बताते हैं कि उनकी गिनती आज भी इस कारोबार के पुराने लोगों में शुमार होती है। वो बताते हैं कि झगड़ा कैसा भी हो अच्छा नहीं होता।
सांप्रदायिक दंगों ने कैंची कारोबार को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। इस कारोबार की कमर तोड़ने का काम ही हिन्दू मुसलमानों के झगडेÞ ने किया है। वर्ना देश भर से कैंचियों के आर्डर मेरठ के कारोबारियों को मिलते थे। बेहद खुशहाल जिंदगी हुआ करती थी तब। कैंची कारोबार को केवल सांप्रदायिक दंगों ने ही नहीं डंसा। बल्कि सरकार के नोटबंदी सरीखे फैसलों ने भी इस कारोबार को रसातल में पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
दरअसल इस कारोबार को करने वाले नकदी में खरीदते बेचते हैं। नोटबंदी के बाद कारोबारियों के पास नकदी का बड़ा टोटा हो गया। इसका सीधा असर उनके काम पर पड़ा। जैसे-तैसे काम को पटरी पर लाने की कोशिश करते तो कभी जीएसटी तो कभी कोरोना की वजह से लाकडॉउन सरीखे सरकारी फैसलों ने कारोबारी को धार को कुंद करने की कोशिश की। आज हाल बेहाल हो गए हैं।
कारोबारी हालात पर जनवाणी संवाददाता ने कैंची उद्योग के कुछ कारोबारियों से बातचीत की। उनका कहना था कि पहले तो सरकार का समुचित ध्यान इस कारोबार की ओर नहीं है। यदि सरकार की ओर से कभी कभार कोई योजना आती भी है तो उसको दलाल तथा सिस्टम के कुछ अफसरों का सिंडिकेट कब्जा लेता है। सरकार की योजनाओं का लाभ केवल दलालों को मिला है कारोबारी सरकारी योजनाओं से महरूम रहे हैं।
योजनाओं में धांधली
कैंची कारोबारी रईस अहमद बताते हैं कि कारोबारी हालात बहुत खराब है। ये बात सरकार से छिपी नहीं है, लेकिन सरकार की ओर से यदि कोई योजना आती है तो दलाल और माफिया उसमें धांधली कर देते हैं। योजना का लाभ कारोबारियों व कारीगरों तक नहीं पहुंचता।
अब फायदे का काम नहीं रहा
कोतवाली इलाके में रहने वाले गुलजार के लिए कैंची उनका पुश्तैनी कारोबार है, लेकिन उनका कहना है कि वक्त के थपेड़ों की वजह से अब यह फायदे का काम नहीं रह गया है। यदि सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो दुनिया में मेरठ को पहचान दिलाने वाला ये काम खत्म हो जाएगा।
बहुत कुछ बदला गया
कैंची कारोबारी मोहम्मद वाहिद बताते हैं कैंची कारोबार की धार पर पहले जैसी नहीं रह गयी है। इसमें काफी कुछ बदला आ गया है। यदि हालात नहीं संभले तो आने वाली पीढ़ियां कारोबार से खुद को अलग कर लेंगी। इसलिए इसको संरक्षण की जरूरत है।
सरकारी मदद सीधी पहुंचे
कैंची कारोबारी सना उल्ला बताते हैं कि जो हालात बने हुए हैं उनको देखते हुए सरकार की ओर से जो भी मदद आती है वो बजाए बिचौलियों के सीधे कारोबारियों तक पहुंचे तभी मेरठ की शान इस कारोबार की धार में पहले जैसी चमक आ सकेगी। बस इसी उम्मीद के साथ कारोबार कर रहे हैं।
कई परिवारों का जलता है चूल्हा
कैंची कारोबारी हाजी निजामुद्दीन बताते हैं कि कैंची कारोबार एक कुटीर उद्योग की तर्ज पर चलता है। इस कारोबार से एक साथ कई परिवारों को काम मिलता है। एक कैंची तैयार करने में 19 कारीगर लगता है। यानि एक कैंची तैयार होने से पहले 19 कारीगरों के हाथों से होकर गुजरती है, लेकिन फिलहाल तो इस कारोबार को खुद की पहचान को बचाये रखना मुश्किल होता जा रहा है।