Saturday, June 29, 2024
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दास के भक्त प्रभु

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Amritvani


‘भात’ जो कि मामा या नाना द्वारा कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है। नरसी के पास कुछ भी धन नहीं होने के कारण उनकी भक्ति की शक्ति से वह भात स्वयं भगवान श्री कृष्ण लाते हैं। लोचना बाई नानी बाई की पुत्री थी, नानी बाई नरसी जी की पुत्री थीं और सुलोचना बाई का विवाह जब तय हुआ था तब नानी बाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी एक गरीब व्यक्ति है, तो वह शादी के लिए भात नहीं भर पाएगा।

उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली को लेकर पहुंचे तो उनकी बहुत बदनामी हो जाएगी इसलिए उन्होंने एक बहुत लंबी सूची भात के सामान की बनाई, जिससे कि नरसी उस सूची को देखकर खुद ही न आए।

नरसी जी को भात लाने का निमंत्रण भेजा गया साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई परंतु नरसी के पास केवल श्री कृष्ण की भक्ति थी। इसलिए वे उनपर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को आशीर्वाद देने पहुंच गए। उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले भड़क गए और उनका अपमान करने लगे।

नरसी जी व्यथित हो गए और रोते हुए श्री कृष्ण को याद करने लगे। दूसरे दिन नानी बाई देखती है कि नरसी जी संतों की टोली और कृष्ण जी के साथ चले आ रहे हैं और उनके पीछे ऊंटों और घोड़ों की लंबी कतार आ रही है जिनमें सामान लदा हुआ है। यह सब देखकर ससुराल वाले अपने किये पर पछताने लगे।

नानी बाई के ससुराल वाले उस सेठ को देखते ही रहे और सोचने लगे कि कौन है ये सेठ? उन्होंने पूछा कि कृपा करके अपना परिचय दीजिए। उनके इस प्रश्न के उत्तर सेठ ने कहा, मैं नरसी जी का सेवक हूं इनका अधिकार चलता है मुझ। जब कभी भी ये मुझे पुकारते हैं मैं दौड़ा चला आता हूं। इनके कहे कार्य को पूर्ण करना ही मेरा कर्तव्य है। इससे यही साबित होता है कि भगवान केवल अपने भक्तों के वश में होते हैं।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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