Sunday, June 15, 2025
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 शिक्षा व्यवस्था में अबुल कलाम का योगदान

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शिक्षा न केवल किसी व्यक्ति के विकास में सहायक सिद्ध होती है बल्कि समाज के विकास एव सुरचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करती है। शिक्षा व्यक्ति को संस्कारित करती है, अवगुणों एवं विकारों को दूर कर उसमें अन्तर्निहित सद्गुणों को पल्लवित-पुष्पित कर जीवन सुवासित करती है। शिक्षा ही व्यक्ति को मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत कर उसे समाज जीवन हेतु कला कौशल सम्पन्न कर गढ़ती है, रचती है। यह शिक्षा उसे परिवार, समाज और विद्यालयों से प्राप्त होती है। श्रेष्ठ विद्यालय, तकनीकी संस्थान और साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाएं किसी देश की समृद्धि की आधारभूमि होती हैं।

आजादी के बाद शैक्षिक संस्थानों को स्थापित कर विकसित करने में जिस महनीय कृतित्व का विराट व्यक्त्त्वि हमारे मानस पटल पर उभरता है, वह देश के प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद हैं। जिनका जन्मदिवस राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा के समर्थक अबुल कलाम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा के प्रखर पैरोकार थे। मौलाना अबुल कलाम का जन्म एक अफगानी बंगाली मुस्लिम मौलाना सैयद मोहम्मद खैरूद्दीन के परिवार में 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। माता शेख आलिया मुस्लिम परंपराओं और मान्यताओं से समृद्ध महिला थीं। मौलाना अबुल कलाम का बचपन का नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन था। इनके पिता खैरूद्दीन इस्लामी धार्मिक शिक्षा के श्रेष्ठ विद्वान थे और मौलाना के रूप में उनकी ख्याति थी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय वह देश छोड़कर मक्का चले गए और वही एक अरबी युवती आलिया से निकाह किया। 1890 में भारत वापस आकर कोलकाता में बस गए। पिता खैरूद्दीन अबुल कलाम को भी इस्लामी संस्कृति एवं धर्म ग्रंथों का अध्ययन करा कर मौलाना बनाना चाहते थे। तदनुरूप इस्लामी शिक्षा घर पर ही वालिद द्वारा प्रारंभ हुई। तत्पश्चात घर पर ही शिक्षक रखकर ज्यामिति, बीजगणित दर्शनशास्त्र, उर्दू , बंगाली आदि का अध्ययन किया। अबुल कलाम ने स्वाध्याय से अंग्रेजी और विश्व इतिहास का भी अध्ययन किया।

अबुल कलाम के शुरुआती जीवन में एक रूढ़िवादी मुस्लिम युवक की छवि दिखाई देती है, लेकिन जब वह तुर्की, अफगानिस्तान, मिस्र, इरान, ईराक आदि देशों की यात्राओं पर गए और वहां तमाम मुस्लिम विद्वानों एवं क्रांतिकारियों से परिचय एवं संवाद हुआ तो विचार परिवर्तन हुआ और लौटकर अबुल कलाम बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी अरविंद घोष से मिलकर क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न हुए।  अबुल कलाम मुस्लिम समाज में व्याप्त जड़ता को समाप्त करना चाहते थे। और राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम युवकों की अधिकाधिक भागीदारी बढ़ाने के आकांक्षी थे और यह काम केवल जागरूकता से ही संभव था। इसलिए 1912 में एक साप्ताहिक अखबार अल हिलाल निकाला। अल हिलाल के माध्यम से अबुल कलाम ने न केवल तमाम शैक्षिक और सामाजिक पक्षों पर कलम चलाई बल्कि अंग्रेजी शासन के अत्याचार, शोषण एवं उत्पीड़न के विरुद्ध भी मुखर आवाज बनकर उभरे। अल हिलाल साप्ताहिक उस समय उर्दू में पढ़ा जाने वाला एक बड़ा अखबार बन चुका था जो एक बहुत बड़े समाज को न केवल देश और समाज के लिए कुछ नया रचनात्मक करने को प्रेरित कर रहा था बल्कि अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अनुप्राणित भी कर रहा था। स्वाभाविक रूप से अंग्रेज इस साप्ताहिक के विचारों से खासे नाराज थे। फलत: 1914 में इसका प्रकाशन प्रतिबंधित कर दिया गया। लेकिन जीवटता के धनी अबुल कलाम कहां रुकने वाले थे। उन्होंने दूसरा अखबार अल बलाग नाम से निकालना शुरू किया।  लेकिन अंग्रेजी सत्ता को यह नागवार गुजरा, क्योंकि इसके तेवर तो और भी तल्ख थे। परिणामतस्वरूप 1916 में इस अखबार को भी बंद करवा कर अबुल कलाम को बंगाल से बाहर जाने का हुक्म दिया और रांची, बिहार में नजरबंद कर दिया गया।  1920 में जब अबुल कलाम 4 वर्ष की नजरबंदी कैद से मुक्त होकर आम जनता के बीच पहुंचे तो एक नवीन राजनैतिक फलक उनके स्वागत में विद्यमान था और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में सर्व स्वीकृत कर लिए गए।  इसी दरमियान गांधी जी के असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय सहभागिता कर महात्मा गांधी के सिद्धांतों को आमजन तक पहुंचाने में संलग्न हुए।

मौलाना अबुल कलाम गांधी जी के सत्य, प्रेम एवं अहिंसा के सिद्धांतों से प्रेरित एवं सहमत थे। उनके जीवन में गांधी जी के विचारों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। खासतौर से देश के विकास के लिए हिंदू मुस्लिम एकता, प्रौढ़ शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा को आवश्यक समझते थे। जवाहरलाल नेहरू आपकी काबिलियत, दूरदृष्टि, शैक्षिक समझ और देश-समुदाय के लिए काम करने के जज्बे से परिचित थे। इसीलिए देश की आजादी के बाद बनी पहली सरकार में आपको महत्वपूर्ण मंत्रालय सौपकर शिक्षा मंत्री का दायित्व दिया गया। यह आपकी शैक्षिक दूरदृष्टि का ही है परिणाम है कि आज जो तकनीकी और प्रबंधन संस्थान एवं साहित्य-सांस्कृतिक संस्थाएं अपने कार्यों से देश के विकास में योगदान दे रही हैं, उन सब की स्थापना का श्रेय आपको जाता है। 1992 में देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देकर उनके योगदान को रेखांकित किया। व्यक्ति के विकास में शिक्षा को महत्वपूर्ण मानने वाले अबुल कलाम के जन्म दिवस को 2008 से राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाना प्रारंभ हुआ है।


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