Saturday, September 28, 2024
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यूपी भाजपा में हार पर जूतम पैजार

Samvad 1

 


KP MALIKउत्तर प्रदेश में भाजपा की बुरी तरह हार के चलते अब भाजपा में ही कथित तौर पर अंदरखाते झगड़े शुरू हो गए हैं और इस हार के लिए आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गई है। ज्यादातर विधायक और सांसद एक-दूसरे पर भीतरघात करने, गद्दारी करने और आस्तीन का सांप होने जैसे आरोपों के साथ बिना नाम लिए एक-दूसरे पर ताना कस रहे हैं। आपस में हंगामा हो रहा और ये सब भाजपा की समीक्षा बैठकों में हो रहा है। हालांकि बाहर आकर एक भी भाजपा का नेता, खास तौर पर सांसद, विधायक और मंत्री कुछ नहीं बोल रहे हैं, बल्कि विपक्ष यानि खास तौर पर इंडिया गठबंधन पर आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष इस पर राजनीति करते हुए भाजपा में फूट का आरोप लगाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहा है। दरअसल, भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार यानि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार होने और राम मंदिर बनने के बावजूद जिस प्रकार की इस सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्य में हार हुई है, वो कोई छोटी बात नहीं है। इसी को लेकर जिन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियां चल रही थीं, उसी समय योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंचे और वहां जो भी बंद कमरे में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत हुई, उसके बाद वापसी करते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सभी विधायकों और मंत्रियों की बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा के हाथ से खिसकी सीटों के जिम्मेदार विधायकों, मंत्रियों और नेताओं से हार होने की वजह को लेकर सवाल किए, लेकिन कहा जाता है कि उन्हें ज्यादातर ने या तो जवाब नहीं दिए या फिर ये कह दिया कि हार उनकी वजह से नहीं हुई है। इस बैठक में जो सबसे बड़ी बात रही, वो ये रही कि उत्तर प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्री यानि केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक इस बैठक में नहीं गए।

बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश के हर जिले में भाजपा की समीक्षा बैठक चल रही है, जिससे ये पता लगाया जा सके कि आखिर किस-किस हारी हुई सीट पर हार की वजह क्या रही? इसी समीक्षा बैठक में जमकर हंगामा होने की खबरें अंदर से आ रही हैं। हालांकि ये खबरें कितनी सही हैं और कितनी गलत, ये तो नहीं पता, लेकिन जाहिर है कि अगर आग नहीं लगी होगी, तो धुआं भी नहीं उठेगा। लेकिन ये जानकारी पुख्ता सामने आ रही है कि जिन जिम्मेदार लोगों को हार की समीक्षा का जिम्मा सौंपा जा रहा है, वो सही-सही रिपोर्ट यानि हार की सही वजह नहीं बता पा रहे हैं। हालांकि भाजपा की समीक्षा बैठकों में कैमरा, मोबाइल फोन ले जाने और किसी मीडिया हाउस को इस समीक्षा बैठक को कवर करने की इजाजत नहीं है, लेकिन फिर भी जो कुछ चीजें बाहर निकलकर सामने आ रही हैं, उनके हिसाब से ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा में अंदरखाते फूट का माहौल बनता जा रहा है।

दरअसल, अभी हाल ही में भाजपा ने सहारनपुर पर बड़ी हार की समीक्षा यानि इसकी वजहों का पता लगाने के लिए अपने एक नेता गोविंद नारायण शुक्ला को ऑव्जर्बर बनाकर भेजा गया। दरअसल, सहारनपुर की लोकसभा सीट पर भाजपा अपने उम्मीदवार राघव लखनपाल को जिताना चाहती थी और उसे इस बात का भरोसा था कि राघव लखनपाल हर हाल में जीत जाएंगे और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद से बड़े अंतर से चुनाव हार गए। कुछ जानकारों ने बताया है कि जब गोविंद नारायण शुक्ला अपनी समीक्षा रिपोर्ट लेकर बैठक में जा रहे थे, तो अंदर इतना हंगामा था कि गोविंद नारायण अंदर घुस ही नहीं पाए। इसी प्रकार से अयोध्या हार पर भी समीक्षा चल रही है। वहां भी भाजपा के बड़े नेता हार की वजहें जानना चाहते हैं। जिन लोगों पर हार करवाने के आरोप लग रहे हैं, वो लगातार ये कह रहे हैं कि हार के लिए वो जिम्मेदार नहीं हैं और उन्होंने पूरी मेहनत से ईमानदारी से पार्टी के लिए काम किया है और चुनाव में अपने उम्मीदवारों को जितवाने के लिए पूरी ईमानदारी से मेहनत की है। लेकिन हारे हुए उम्मीदवारों ने अपने-अपने आरोपों की कमान तान रखी है और उस कमान से लगातार आरोपों के तीर छोड़ रहे हैं। इसी को लेकर जमकर हंगामा और तनाव भाजपा के भीतर जारी है और ये तक कहा जा रहा है कि भाजपा के नेता इसे लेकर कई ग्रुपों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं। राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि अगर भाजपा की सरकार उत्तर प्रदेश, और खास तौर पर केंद्र में सरकार नहीं होतीं, तो हो सकता है कि कुछ नेता, विधायक और सांसद दूसरी पार्टियों के पाले में खिसक जाते हैं। लगातार कहा जाता है कि भाजपा सबसे ज्यादा एकजुटता वाली पार्टी है, जिसमें कुछ लोगों के निर्देश को सभी नेता सिर झुकाकर मान लेते हैं। ये बात काफी हद तक सही भी है, लेकिन दूसरी तरफ कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश में ही एक बैठक के दौरान कुछ नेताओं के बीच जूते चले थे। इस प्रकार से भले ही नेतृत्व की बात सभी मानते हों, लेकिन भाजपा के नेताओं में एकजुटता नहीं दिखती है। इतना ही नहीं, कई विधायक और सांसद अपनी ही सरकारों से संतुष्ट नहीं हैं। और कार्यकर्ता भी पिछले कुछ सालों से भाजपा के हाईकमान से लेकर अपने कई नेताओं से नाराज चल रहे हैं।

बहरहाल, अयोध्या में जहां लल्लू सिंह की हार का ठींकरा लल्लू सिहं के अलावा कई दूसरी वजहों पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है, वहीं इटावा में हार को लेकर आलम ये है कि वहां समीक्षा बैठक से रामशंकर कठेरिया खुद समीक्षा बैठक में नहीं पहुंचे, जिन पर यहां की हार की वजहों का पता लगाने का जिम्मा उनके ऊपर था। अब वो अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर हार का ठींकरा अधिकारियों पर फोड़ना चाहते हैं। इसी प्रकार से कन्नौज की हार को लेकर भी समीक्षा चल रही है, जहां से भाजपा के उम्मीदवार सुब्रत पाठक को अखिलेश यादव से बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। जहां भाजपा नेताओं ने ये कहा था कि यहां भारत-पाकिस्तान का मैच होगा। इस प्रकार से कई जगहों पर समीक्षा बैठक पूरे प्रदेश में हर उस लोकसभा सीट की हर विधानसभा सीट पर और हर जिले पर हो रही है, जहां-जहां से भाजपा के उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन कुछ जानकारों ने यहां तक कहा है कि भाजपा की सभी समीक्षा बैठकों में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चल रही है और कई जगह तो हाथापाई होते-होते बची है। हालांकि इन जानकारियों या कहें कि इन दावों में कितनी सच्चाई है, ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये माना जा रहा है कि जहां-जहां भाजपा के उम्मीदवार लोकसभा सीटों को हारे हैं, वहां-वहां न सिर्फ जिम्मेदार विधायकों, मंत्रियों और नेताओं के बारे में विचार किया जा रहा है, बल्कि ऐसी लोकसभा सीटें जिन अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी, उनके साथ भी कुछ हो सकता है, मसलन ट्रांसफर, डांट-फटकार आदि। हालांकि ऐसी भी खबरें हैं कि कई समीक्षा बैठकों में भाजपा के ही कई नेता नहीं पहुंच रहे हैं यानि दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। और कार्यकर्ताओं के रूठने की बात भी कही जा रही है। इसके अलावा जातियों को इस हार के लिए भाजपा नेता जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मसलन, सहारनपुर में राजपूतों ने अपनी चोटी बांध ली थी भाजपा को नहीं जीतने देना है, और आज सहारनपुर में हार के बाद भाजपा नेता यहां हुई हार के लिए राजपूतों पर आरोप लगा रहे हैं। हालांकि मेरा मानना ये है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवार को हराना या जिताना जनता के हाथ में है, इसलिए कोई भी जबरन चुनाव नहीं जीत सकता। लेकिन भाजपा की नीति कुछ ऐसी ही लगती है कि जनता का रुख चाहे जो हो, लेकिन उसके उम्मीदवार हर हाल में जीतने चाहिए।

बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर विधानसभा उप चुनाव होने हैं। और अगर भाजपा में इसी प्रकार से फूट पड़ी रही, तो फिर विधानसभा की इन सीटों पर भाजपा का हाल लोकसभा चुनाव से भी बुरा हो सकता है। क्योंकि चुनाव जीतने के लिए जनता के बीच जाकर उसके हित में काम कराने की जरूरत है, न कि एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करने की जरूरत है। विपक्षी इंडिया गठबंधन में इन 10 विधानसभा सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कुछ तय नहीं हो पाया है, लेकिन विधानसभा के इस उप चुनाव में भी इंडिया गठबंधन के तहत सपा और कांग्रेस चुनाव लड़ेंगी, ये तय लगता है। इस उप चुनाव में भाजपा का भविष्य भी तय होना है, क्योंकि अगर वो इन सीटों पर हार जाती है या कम सीटें लाती है, तो निश्चित तौर पर उसके लिए उत्तर प्रदेश में आगे का रास्ता मुश्किल होगा।


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