Tuesday, June 24, 2025
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समार्ट हुए स्ट्रीट फूड वेंडर

 

Samvad 9


Amithab Sबीते दिनों, दक्षिण दिल्ली के कालकाजी इलाके में ‘गोपासस 56’ नाम का आइसक्रीम- शेक्स का आउटलेट चला रहे गौरव गोयल ने ‘शार्क टैंक्स इंडिया’ नामक सोनी चैनल के चर्चित बिजनेस ब्लास्टर शो में अपनी कंपनी की 25 फीसदी शेयर के बदले 300 करोड़ रुपये की धनराशि मांग कर, हर किसी को हैरत में डाल दिया। शो के सभी निवेशकों को उसकी आइसक्रीम तो खूब पसंद आई, लेकिन मांग हजम नहीं हुई। सभी शार्कों को डिमांड बेतुकी लगी, लेकिन गौरव गोयल का का तर्क है, ‘हमारे देश का आइसक्रीम बाजार 6,000 करोड़ रुपये सालाना है। अगर देश की आइसक्रीम इंडस्ट्री के आकार को देखें, तो डिमांड जायज है।’ उन्होंने और बताया, ‘जब करीब चालीस साल पहले मेरे पिता ने एक लकड़ी के बक्से से आइसक्रीम जमाना- बनाना- बेचना शुरू किया, तब भी लोगों ने मजाक उड़ाया। लेकिन मेरे पिता का विजन था, जिससे हमें आज इस मुकाम पर पहुंचाया है।और मैं दृढ़ हूं कि मेरे आइसक्रीम-शेक्स का चाह देश-दुनिया में अपना परचम लहराएगी।’

करीब 38 वर्षीय आइसक्रीम वाला गौरव गोयल दिल्ली और देश का अकेला स्ट्रीट फूड सौदागर नहीं है, जो अपने हौसले और आत्मविश्वास के बूते पर कई के दिलों में छा गया है। छोटे-छोटे स्ट्रीट फूड वेंडर्स की दुनिया में एक और बड़ा सुखद बदलाव इसी महीने सामने आया। लोहड़ी के आसपास दिल्ली के कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते बाजारों में पहले नाइट कर्फ्यू, फिर आॅड-ईवन लागू किया गया, उसके बाद वीकेंड लॉकडाउन भी लगाया गया। इस दौरान गजक- रेवड़ी वालों ने बंदी से मंदी की मार झेलने से उबरने के लिए आॅनलाइन सेल्स का बखूबी सहारा लिया। नॉर्थ दिल्ली के मशहूर गजक वाले ‘विजय कुमार अजय कुमार’ ने तो आॅनलाइन आॅर्डर बुक किए और घर बैठे डिलीवरी की। दिल्ली एनसीआर के नोएडा के ‘काबलीवालाज’ ने भी आॅनलाइन बुकिंग व्यवस्था से लोहड़ी का मौसमी कारोबार हाथ से जाने नहीं दिया। बाकी ज्यादातर गजक- रेवड़ी वालों ने स्विगी, जुमैटो, वीफास्ट जैसे डिलीवरी एप का बखूब सहारा लिया। नतीजतन दिल्ली में आॅड- ईवन और वीकेंड लॉकडाउन के बावजूद गजक- रेवड़ी का सीजन जाया नहीं गया और बिक्री आंकड़ा डगमगाया नहीं।

नेशनल एसोसिएशन आॅफ स्ट्रीट वेंडर्स आॅफ इंडिया के आंकडों के अनुसार कोविड 19 से पहले अकेले दिल्ली में करीब 60,000 स्ट्रीट फूड वेंडर थे, जो अब घट कर आधे यानी 30,000 रह गए हैं। यही नहीं, नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन आॅफ इंडिया के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान देश भर के 25 फीसदी रेस्टोरेंटों ने भी शटर गिरा दिए हैं। इससे कम से कम 23 लाख लोगों का रोजगार छिन गया है। इसके पीछे वजह रही कि खाने-खिलाने वाले लोगों को साल में बमुश्किल 100 दिन ही काम करने का मौका मिला। इस दौरान इंडियन फूड इंडस्ट्री अपने 4.95 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य में से केवल 40 फीसदी ही प्राप्त कर पाई थी। वास्तव में, अक्टूबर 2020 से ही रेस्टोरेंट की गिनती सिकुड़ने लगी। लॉकडाउन की अवधि के स्थाई खर्चे न सह पाने और खाने-पीने से कोरोना संक्रमण के भय के भ्रम से बंद होने की नौबत आ गई। शुरुआती अप्रैल 2020 में ही 90 फीसदी तक बिक्री लुढ़क गई। लेकिन फिर जुलाई से खाने-पीने से कोविड संक्रमण न फैलने की वैज्ञानिक पुष्टि बेशक हुई, लेकिन इसके बावजूद बार-बार रेस्टोरेंट बंद होने और काम के घंटे घटने के चलते बिक्री के आंकडों में खास सुधार नहीं हुआ। फिर खुलने के दौर में बिक्री के आंकडे कोविड पूर्व का 49 फीसदी कारोबार हासिल कर लिया और 2021 आते-आते असंगठित फूड सर्विस में 74 फीसदी और संगठित में 90 फीसदी टर्नओवर के आंकड़े को छू लिया। कोविड की दूसरी लहर ने भी भारी चोट दी और अब तीसरी लहर तो कहर बन कर टूटा है।

चूंकि लॉकडाउन से ज्यादातर कारोबारों का सत्यानाश हुआ, जबकि इस दौरान कई मामूली स्ट्रीट फूड वेंडर भी स्मार्ट बन कर उभरे हैं। डिजिटल पेमेंट, फूड टूर आॅपरेटर, डिलीवरी एप वगैरह वेंडर्स के स्मार्ट औजार बन कर उभरे हैं। मिसाल के तौर पर, अपने कमाल के स्वाद के चलते ईस्ट दिल्ली के मशहूर फ्रूट कचौड़ी वाले ने बाकायदा पहले अपना लोगो बनाया, बिजनेस वेबसाइट बनाई और आईटी के हुनरमंद दिमाग वालों के सहयोग से आॅनलाइन आॅर्डर सिस्टम के साथ फूड डिलीवरी करने लगे। इसी प्रकार रेहड़ी-खोमचे वालों ने स्विगी, जुमैटो, वीफास्ट जैसे डिलीवरी पोर्टल और एप का सहारा ले कर अपने आॅर्डरों को घोर मंदी से बाहर निकाला है।कुछ ने तो खुद के आॅनलाइन आॅर्डर एप तक चालू किए हैं।

कुछ और ने स्मार्ट तौर-तरीके अपनाने के साथ फ्रेंचाइशी बनाए, और आज कोविड पूर्व से कहीं बेहतर काम कर रहे हैं। पुरानी दिल्ली के ‘सिकंदर आॅमलेट’ नामक एक अंडे वाले ने अंडे बनाने-परोसने के वीडियो इंस्ट्राग्राम, फेसबुक वगैरह पर नियमित पोस्ट करने क्या शुरू किए, हंगामा ही मच गया। देखते ही देखते उसके स्टॉल पर अंडे खाने वालों का मजमा जुटने लगा। आज 35- 49 से ज्यादा अंडे के व्यंजन खिला रहे हैं। बड़ी खास बात है कि उसने ज्यादातर अंडे बनाने की विधियां लॉकडाउन के बीच घर पर निठल्ले बैठ कर विकसित की हैं, जिससे अब रंग जमा रहे हैं।

गौरतलब है कि सरकार के पास जरूरतमंदों को देने के नौकरियां नहीं है। ऐसे में, स्ट्रीट फूड वेंडरों के हौसले से प्रेरित हो कर, सरकार ने भी स्ट्रीट फूड वेंडर बना-बना कर अपना सामाजिक सरोकार निभाने का मौका तलाशा है। हाल ही में, दिल्ली की दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने कोविड ने मरे इकलौते कमाने वाले के परिवार को बैटरी चालित फूड ठेले का लाइसेंस देने की घोषणा की है। बताते हैं कि इससे कोविड से बेसहारा हुए परिवारों को रोजी-रोटी का जुगाड़ मिलने में आसानी होगी।
बताते हैं कि शुरुआती दौर में स्विगी से केवल 300 फूड वेंडर जुड़े थे, जो बढ़ते- बढ़ते आज 70 शहरों में 7,000 से ऊपर हैं। स्विगी का मानना है कि हमारे प्लेटफार्म के जरिए फूड वेंडरों को काम करने के लिए आसमान मिला है। स्विगी से जुड़ने से पहले वेंडरों को कुछ तय मानदंडों से गुजरना पड़ता है, जिससे व्यापक सुधार हो जाता है। इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था में छोटी-छोटी भागीदारियां, पैकिंग विकास समेत दोहरे-तिहरे फायदे होते हैं। उधर जुमैटो ने तो वेंडरों को अपने संग जोड़ने की शर्त पर फूड सेफ़्टी स्टैंडर्ड लाइसेंस लेने का आग्रह किया। हालांकि नेशनल एसोसिएशन आॅफ स्ट्रीट फूड वेंडर्स आॅफ इंडिया भी महामारी के बाद के दौर में देश भर के वेंडरों की मदद में पहले से ज्यादा तवज्जो देने लगा है। कह सकते हैं कि इन और ऐसी तमाम कोशिशों- कदमों के चलते स्ट्रीट फूड वेंडर लॉकडाउन से उत्पन्न मंदी के दौर से उभर आए हैं स्मार्ट बन कर।


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