चैन की नींद सोना सभी को अच्छा लगता है पर अगर पार्टनर रा़ित्र में खर्राटे भरे तो नींद का खराब होना स्वाभाविक है पर जो खर्राटे लेता है उसे पता नहीं चलता। साथी को ज्यादा पता चलता है क्योंकि उसकी नींद खराब होती है। खर्राटे वैसे कोई खास बड़ी समस्या नहीं पर जब यह बीमारी का रूप ले लेती है तो समस्या गंभीर हो सकती है।
खर्राटे क्या हैं-
रात्रि में, दिन में सोते समय सांस के साथ तेज आवाज आना खर्राटे कहलाते हैं। कई बार खरार्टों की आवाज आगे आने वाली बीमारियों की ओर इशारा करती है। अगर हम उसकी परवाह नहीं करेंगे और डॉक्टरी सलाह नहीं लेंगे तो यह स्लीप एप्निया की वजह भी बन सकता है।
क्या है स्लीप एप्निया- स्लीप एप्निया में सोते समय सांस कुछ सेकंड के लिए रुक जाती है। पुन: जब सांस आती है तो आवाज तीखी होती है जो पास सो रहे व्यक्ति को डरा देती है। सांस का इस तरह रुकना स्लीप एप्निया कहलाता है। अगर इसका इलाज समय पर नहीं करवाते तो सांस रुकने का समय बढ़ने लगता है और व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।
इनके लक्षण
तेज आवाज के साथ सांस लेना और छोड़ना।
थोड़ी थोड़ी देर में कुछ समय के लिए सांस रुकना।
धीरे-धीरे सांस रुकने के समय में अंतराल बढ़ना।
सोते समय सांस न आने की स्थिति में हड़बड़ा कर उठना।
पूरा दिन सुस्त बने रहना, थका-थका महसूस करना।
दिन भर आंखों में नींद रहना।
क्यों आते हैं खर्राटे?
नाक की हड्डी टेढ़ी होने, उसमें मांस बढ़ा होने से सांस लेने में प्रेशर अधिक लगाना पड़ता है और सांस के साथ आवाज आने लगती है।
गले का पिछला भाग टाइट होने पर आक्सीजन टाइटली वहां से जाती है जिससे आस-पास टिश्यूज वाइब्रेट होते हैं और खर्राटे आते हैं।
अगर व्यक्ति की गर्दन ज्यादा छोटी हो तो भी सोते समय सांस के साथ आवाज आती है।
नीचे वाला जबड़ा जब सामान्य से छोटा होता है और लेटने पर जीभ पीछे की ओर हो जाती है और सांस की नली को ब्लाक कर देती है। इस प्रकार सांस लेने और छोड़ने में जोर लगाना पड़ता है जिस कारण वाइब्रेशन होता है।
सांस लेने वाली नली टाइट या कमजोर होती है। ऐसे में सांस लेते समय टिश्यू वाइब्रेट करते हैं और सांस के साथ आवाज आती है।
पीठ के बल सोने वाले लोगों की जीभ पीछे की तरफ हो जाती है। तालू के पीछे छोटा सा मांस का टुकड़ा होता है और जीभ उसके साथ लग जाती है जिससे सांस लेने और छोड़ने में मुश्किल होती है। ऐसे में सांस के साथ आवाज निकलती है।
वजन अधिक होना भी खर्राटों का एक कारण होता है। जब वजन बढ़ता है तो गर्दन पर भी मांस बढ़ता है। लेटते समय बढ़ा हुआ मांस सांस की नली पर दबाव डालता है और सांस लेने में दिक्कत होती है।
ऐसे करें कंट्रोल (घरेलू तरीकों से)
अगर वजन अधिक है तो वजन कंट्रोल करें। डाइटिशियन से संपर्क कर अपना डाइटिंग प्लान बनवाएं और सख्ती से फालो करें।
पीठ के बल सोने के बजाय करवट लेकर सोएं।
सोते समय सिर को थोड़ा ऊंचा रखें। ऐसा करने से आपकी जीभ ओर सांस की नली में रुकावट नहीं आएगी।
नाक में अगर मांस बढ़ा हो या हड्डी बढ़ी हो तो डाक्टर से इसका इलाज करवाएं।
रात में हल्का सुपाच्य खाना खाएं। ल्ल गले के व्यायाम नियमित करें।
खर्राटों का सेहत पर असर
सांस लेने में बार बार रुकावट होने पर शरीर में आॅक्सीजन का लेवल कम हो जाता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।
शरीर में आक्सीजन कम होते ही दिल को आक्सीजन के लिए ज्यादा प्रेशर लगाना पड़ता है। जब समस्या बढ़ जाती है तो हार्ट अटैक हो सकता है। कभी-कभी रात्रि में समस्या अधिक होने से हार्ट अटैक द्वारा मौत भी हो सकती है।
शरीर में आॅक्सीजन कम होने से और कार्बन डाईआक्साइड बढ़ने से दिमाग पर दबाव बढ़ जाता है जिससे स्ट्रोक की आशंका काफी बढ़ जाती है।
नाक में रुकावट होने पर व्यक्ति मुंह से सांस लेता है जिससे मुंह से सांस बिना छनी फेफड़ों में जाती है जिससे फेफड़ों का नुकसान हो सकता है।
रात्रि में सात घंटे की नींद पूरी न होने से व्यक्ति के हार्मोंस पर प्रभाव बढ़ता है जिससे वजन बढ़ने लगता हे। जब वजन बढ़ता है तो खर्राटे आने लगते हैं क्योंकि मोटापा और खर्राटे एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
बच्चों को भी खर्राटे आते हैं
बच्चों को खर्राटे टॉन्सिल्स बढ़े होने के कारण आते हैं।
नाक में रुकावट के कारण भी खर्राटे आते हैं।
नाक की हड्डी टेढ़ी या नाक में मांस बढ़े होने के कारण भी आते हैं।
जीभ मोटी होने पर खर्राटे आते हैं।
इलाज
अगर बच्चों को खर्राटे अधिक आते हों तो डाक्टर से टान्सिल्स की जांच करवाएं और होने पर उनका इलाज करवाएं। अगर नाक की हड्डी बढ़ी हो या अन्य किसी कारण से रूकावट हो तो इलाज तुरंत करवाएं। डाक्टर को लगता है समस्या गंभीर है तो वह एंटी स्नोरिंग डिवाइस का प्रयोग कर समस्या का समाधान कर सकते हैं। इसके अलावा एक मास्क होता है जिसका प्रयोग डाक्टर की सलाह पर किया जा सकता है।
जिन लोगों का नीचे का जबड़ा छोटा होता है, उन्हें डाक्टर सोते समय मशीन मुंह में लगाने के लिए बताते है जिससे सांस आसानी से ली जा सके। इस मशीन के प्रयोग से रोगी को कई बार दर्द होता है। ऊपर लिखित इलाज स्वयं अपने पर न करें बिना डाक्टर के परामर्श के। गंभीर समस्या के लिए सर्जरी ही एकमात्र आप्शन है जिससे खर्राटों की समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है।
गलत फहमियां खर्राटों के बारे में
खर्राटे आनुवंशिक नहीं होते: हर बीमारी में फैमिली हिस्ट्री अहम होती है।
खर्राटों का प्रभाव बुरा नहीं होता: खर्राटों का प्रभाव शरीर पर बुरा पड़ता है। जैसे-स्लीप एप्निया, हाई बीपी, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, लंग्स संबंधी विकार हो सकते हैं।
साइनस की वजह से आते हैं खर्राटे: साइनस और खर्राटों का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं। साइनस नाक के आसपास की खाली जगह से होता है। खर्राटों के कई कारण हैं।
बढ़ती उम्र में ही होते हैं खर्राटे: नहीं, ऐसा जरूरी नहीं। खर्राटे किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं।
खर्राटे गहरी नींद और थकान की वजह से आते हैं: खर्राटे आना थकान नहीं बल्कि सांस की नली में रुकावट होने के कारण आते हैं।