Thursday, April 10, 2025
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दंगल गर्ल से ‘अर्जुन’ तक संघर्ष के अखाड़े में दिखाए दावपेंच

  • मुजफ्फरनगर के पुरबालियान गांव निवासी दिव्या काकरान का नाम अर्जुन पुरस्कार के लिए नामित
  • लड़कों के साथ दंगल करके शुरू किया था कुश्ती का सफर, अब विश्वविख्यात बन चुकी है दिव्या
  • पिछले साल भी अर्जुन पुरस्कार की सूची में नहीं मिली थी जगह

मुख्य संवाददाता |

बागपत: सफलता के पीछे बहुत सारी असफलताओं का भी हाथ होता है। कुछ ऐसा ही हुआ है संघर्ष के अखाड़े में मुजफ्फरनगर जनपद के पुरबालियान गांव की महिला रेसलर दिव्या काकरान के साथ।

छोटी उम्र में कुश्ती की शुरुआत करने की तो ठान ली, लेकिन न संसाधन और न ही सुविधाएं थी। कुछ था तो मन में एक बड़ा लक्ष्य, जिसे पाने ललक उसने थाम ली थी।

उस ललक को पूरा करने में लड़कों के साथ दंगल के अखाड़े में उतरी और आज दंगल गर्ल अर्जुन अवार्डी होने की ओर चल पड़ी है। रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़कर गांव से निकलकर वह आज कुश्ती में देश की उम्मीद बन गई है। दिव्या काकरान के अर्जुन अवार्ड के लिए नामित होने पर उसके परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं है।

मुजफ्फरनगर जनपद के पुरबालियान गांव निवासी पहलवान सूरजपाल का परिवार संघर्ष के बीच आज कामयाबी के फलक पर खुशियां मना रहा है।

इन खुशियों के लिए न जाने कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हर कदम पर असफलता भी दिखी और राहें मुश्किलें होती चली गई, लेकिन कभी हार नहीं मानी।

उनकी बेटी दिव्या काकरान आज परिवार ही नहीं देश की शान बन गई है। आठ साल की उम्र में दिव्या ने कुश्ती अखाड़े में उतरना शुरू किया था। उस समय लड़कियों को लेकर वही रूढ़िवादी परंपराओं का पिटारा खोल दिया जाता था, लेकिन परिवार ने एक न सुनी और बेटी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।उसका साथ हर कदम पर दिया।

दिव्या ने छोटी उम्र में ही लड़कों के साथ दंगल लड़ना शुरू किया तो वह सफलता की सीढ़ी चढ़ती चली गई। पहली कुश्ती में जब विजेता के रूप में दिव्या को इनामी राशि मिली तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उस समय 50 रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक इनामी राशि ही मिलती थी।

दंगल के अखाड़े से दिव्या दंगल गर्ल बन गई। परिजन भी उसका साथ देते चले गए, लेकिन मुफलिसी ने भी दौर को थामने का प्रयास किया, जिसके आगे परिवार ने हार नहीं मानी।

बेटी को जब नेशनल खेलने के लिए भेजने का नंबर आया तो धनराशि तक नहीं थी, जिसके बाद दिव्या की मां संयोगिता ने अपने गहने बेच दिए और बेटी को कुश्ती अखाड़े में उतारा। दिव्या ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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यही नहीं सूरज पहलवान व संयोगिता ने घर के गुजारे के लिए लंगोट बनाने शुरू किए थे। दिव्या की मां लंगोट की सिलाई करती थी और उसके पिता उन्हें बेचने जाते थे।

दंगल के बाहर व​ह लंगोट बेचते थे और अंदर अखाड़े में दिव्या देश की शान बनने के दावपेंच दिखाती रहती थी। सूरज पहवान का कहना है कि दूसरे पहलवान खुराक लेकर अखाड़े में उतरते थे, लेकिन दिव्या महज ग्लूकोज पीकर उतरती थी।

आर्थिक संकट के चलते उसकी खुराक भी सही नहीं कर पा रहे थे। बेटी ने भी हार नहीं मानी और कुश्ती का वह नूर बनती चली गई। गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स व एशियाड में कांस्य पदक जीतकर देश को खुशी मनाने का अवसर दिया। एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर प्रतिभा का परिचय दिया।

इसके अलावा दिव्या ने कुल 72 पदक अपने नाम किए हुए हैं। इनमें 53 गोल्ड, 7 रजत, 12 कांस्य पदक है। वर्ल्ड रैंकिंग में वह छठे नंबर पर आ गई है। दिव्या ने जो सपना देखा था उसकी ओर वह चल पड़ी है।

इस बार अर्जुन अवार्ड के लिए उसे भी नामित किया गया है। यानी अर्जुन अवार्ड मिलने का जो सपना संजोया था वह पूरा हो गया है। पुरस्कार के लिए नामित होने पर परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं है।

पिता सूरज पहलवान ने बताया कि उनकी बेटी ने संघर्ष के बीच आज यह मुकाम हासिल किया है। इस बार उम्मीद थी कि पुरस्कार जरूर मिलेगा। उन्होंने खेल मंत्रालय का भी आभार जताया और कहा कि उनकी बेटी ओलंपिक में देश का नाम जरूर रोशन करेगी।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में दिव्या दिल्ली में ही अपने भाई के साथ अभ्यास कर रही है। पिछले दिनों वह अपनी दोस्त के घर हिमाचल चली गई थी। अब वहां बरसात में पहाड़ों पर परेशानी को देखते हुए दिल्ली लौट आई है।

ओलंपिक में पदक जीतना लक्ष्य: दिव्या

अर्जुन पुरस्कार के लिए नामित होने पर दिव्या काकरान भी बेहद खुश है। उसका कहना है कि उसका लक्ष्य ओलंपिक में देश को पदक दिलाना है।

इसके लिए वह तैयारी कर रही है। हालांकि कोरोना के चलते जिस तरह से तैयारी होनी चाहिए थी वह नहीं हो पा रही है, लेकिन अपनी फिटनेस और दावपेंच को कायम रखने के लिए वह तैयारी में जुटी है।

कभी पुरस्कार तो कभी इनामी राशि के लिए लड़ी लड़ाई

खिलाड़ी जब पदक लेकर आता है तो सरकार भी बधाई देने से पीछे नहीं हटती है, लेकिन बाद में उसे पूछा तक नहीं जाता। ऐसा ही दिव्या के साथ भी हुआ है।

दिव्या ने गोल्ड कोस्ट में पदक तो जीता था, लेकिन इनामी राशि के लिए भी उसे संघर्ष करना पड़ा था। सरकार से मांग कई बार की, जिसके बाद इनामी राशि मिली थी। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने तो आज तक भी पुरस्कार की राशि नहीं दी।

यही नहीं पिछले साल अर्जुन पुरस्कार के लिए उसका नाम पक्का माना जा रहा था, लेकिन आखिरी वक्त हट गया था। जिसके बाद दिव्या ने भावुकता का वीडियो भी डाला था और सरकार से एक खिलाड़ी के तौर पर अपील भी की थी। अब पुरस्कार के लिए नामित होने पर वह खुश है।

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