- हैट्रिक लगेगी या फिर मदन रोक पायेंगे विक्रम का विजय रथ
- मतदान प्रतिशत घटने से किसे होगा लाभ, गुणा-भाग में जुटे राजनीतिक विश्लेषक
जनवाणी संवाददाता |
मुजफ्फरनगर: पिछले दो चुनाव में खतौली सीट पर भाजपा का ही दबदबा रहा। यहां सबसे पहले भाजपा का खाता सरकार में मंत्री रहे सुधीर बालियान ने खोला था। तीसरी बार विधायक बनने जा रहे सुधीर बालियान का विजयी रथ रालोद के राजपाल बालियान ने रोक दिया था। इस बार क्या यह इतिहास दोहराया जा सकता है। इसकी चर्चाएं क्षेत्र में चल रही है। कुछ लोग विक्रम सिंह सैनी के जनाधार को काफी अधिक बता रहे हैं, तो कुछ उनकी पत्नी की हार तय कर रहे हैं।
इस बार वोटिंग का प्रतिशत घटा है। वर्ष 2022 के चुनाव में यहां वोटिंग प्रतिशत 69.65 रहा था, जो इस बार घट गया है। इसका भाजपा प्रत्याशी को फायदा होगा या नुकसान, इसको लेकर भी राजनीतिक विश्लेषक गुणा-भाग कर रहे है।
राजनीतिक हलको में खतौली विधानसभा सीट काफी अहम है। खतौली विधानसभा सीट पर पहली बार 1967 में विधानसभा चुनाव हुआ था, तब से यहां पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके बाद चौधरी अजीत सिंह की पार्टी का ही दबदबा रहा है।
खतौली विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 3.12 लाख है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के विक्रम सिंह चुनाव जीतकर विधायक बने थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी के चंदन सिंह चौहान को हराया था। इस चुनाव में विक्रम सिंह को 94771 वोट, जबकि दूसरे नंबर पर रहे सपा के उम्मीदवार चंदन सिंह को 63397 वोट मिले थे।
वहीं बसपा के शिव सिंह सैनी को 37380 वोट मिला था और वह तीसरे नंबर पर थे। चौथे नंबर पर रालोद के शहनवाज राणा थे, उन्हें 12846 वोट मिला था। वर्ष 2022 में हुए चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा के विक्रम सैनी व रालोद के राजपाल सैनी के बीच हुआ, जिसमें विक्रम सैनी ने राजपाल सैनी को हराकर विजय प्राप्त की थी।
यहां बदलता रहा वोटरों का मिजाज
खतौली विधानसभा सीट का इतिहास है कि इस सीट पर वोटरों का मिजाज बदलता रहा है। यहां के मतदाताओं ने किसी एक दल को सीने से लगाकर नहीं रखा है और समय-समय पर वह अलग-अलग पार्टियों के प्रत्याशियों को जिताते आए हैं। इस विधानसभा सीट पर 1967 में सीपीआई के सरदार सिंह, 1986 में भारतीय क्रांति दल के वीरेंद्र वर्मा, 1974 में बीकेडी के लक्ष्मण सिंह, 1977 में जनता पार्टी के लक्ष्मण सिंह, 1980 में कांग्रेस के धर्मवीर सिंह, 1985 में लोक दल के हरेंद्र सिंह मलिक, 1989 में जनता दल के धर्मवीर सिंह, 1991 और 1993 में बीजेपी के सुधीर कुमार बालियान, 1996 में भारतीय किसान कामगार पार्टी से राजपाल सिंह, 2002 में आरएलडी से राजपाल सिंह, 2007 में बीएसपी के योगराज सिंह, 2012 में आरएलडी के करतार सिंह भड़ाना, 2017 में बीजेपी के विक्रम सैनी और 2022 में दोबारा बीजेपी से विक्रम सैनी ने विजय प्राप्त की। विक्रम सैनी को कवाल दंगे के मामले में सजा होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी, जिसके बाद भाजपा ने विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को टिकट दिया था।