पश्चिम उत्तर प्रदेश को शुगर बाउल यानि चीनी का कटोरा कहा जाता है। क्योंकि देश यूपी और यूपी में सर्वाधिक गन्ने की पैदावार यहीं होती है। लेकिन इसी गन्ने की पैदावार ने कई किसान परिवारों को ऐसे उलझा कर रखा हुआ है कि वह गन्ने की खेती छोड़ भी नहीं सकते और उसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकते। क्योंकि गन्ने की खेती ऐसी है, क्योंकि इसको बाकी फसलों के मुकाबले रफ क्रॉप माना जाता है। दूसरे उस पर आवारा पशुओं, चोरों, मौसम और फसल में होने वाले अन्य नुकसान से भी उसका काफी हद तक बचाव हो जाता है। दूसरा किसान को गन्ने की खेती को बार-बार बोने की जरूरत नहीं पड़ती, यानि अगर किसान चाहे, तो एक बार गन्ने की फसल बोकर उसे दो साल या तीन साल तक भी काट सकता है। हालांकि लागत के मामले में अब गन्ने की फसल भी दूसरी फसलों से उतनी सस्ती नहीं है, जितनी कि सरकार को लगती है। पिछले कुछ सालों से जिस तरह बीज, खाद, दवाओं, डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़े हैं और उनका असर खेती पर पड़ा है। वहीं जितना भाव गन्ने का बढ़ना चाहिए था, उतना नहीं बढ़ा है। उस पर समस्या यह कि किसानों से गन्ना उधारी पर लिया जाता है, जिसका भुगतान कई बार सालोंसाल तक नहीं होता।
यही वजह है कि आजकल का किसान अब ज्यादा मेहनत न करके कम मेहनत और कम लागत में उगाई जाने वाली फसलें बोने में लगा हुआ है। जाहिर है कि गन्ने की फसल एक बार बुबाई करने के बाद तीन साल तक के लिए फारिग हुआ जा सकता है और तीन साल यानि तीन बार की फसल उससे ली जा सकती है। अगर वह दूसरी किन्हीं जिन्स या फसलों को उगाने की कोशिश करता है, तो उसके लिए उसको उस हिसाब से उसको सिंचाई आदि की सुविधाएं, मौसम और बाजारीकरण में परेशानी उठानी पड़ती है। लिहाजा स्थानीय किसानों का मानना है कि गन्ना उनके लिए मुफीद है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक पेराई सत्र 2021-22 में प्रदेश की कुल 120 संचालित चीनी मिलों ने गन्ना किसानों से कुल रुपये 35 हजार 198 करोड़ का गन्ना खरीदने के बाद 17 जून 2022 तक कुल भुगतान 27 हजार 530 करोड़ रुपए का किया। जो कि कुल भुगतान का लगभग 78 फीसदी है।
आज की तारीख में किसानों का 7 हजार 668 करोड़ गन्ना मूल्य बकाया है। जिसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश के बागपत जिÞले की तीन चीनी मिले बागपत, रमाला और मलकपुर पर भी 602 करोड़ रुपए का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है। हैरानी की बात तो यह है कि इनमें अकेले मलकपुर की मिल पर ही किसानो का लगभग 450 करोड़ रुपए का बकाया चल रहा है। आज तक के आकड़ों के अनुसार मलकपुर ने मात्र रुपये 14.66 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया है, जो कि कुल गन्ना मूल्य भुगतान का मात्र लगभग तीन फीसदी है। हालांकि मुजफ्फरनगर जिÞले की भी कुल 8 चीनी मिलों पर कुल गन्ना मूल्य भुगतान 412 करोड़ रुपए ही बकाया रह गया है। जिसमें सबसे अधिक अकेले बुढ़ाना की बजाज चीनी मिल पर ही करीबन 300 करोड़ रुपए का बकाया है ।दूसरे नम्बर पर सहकारी क्षेत्र की मोरना मिल पर लगभग रुपये 68 करोड़, खाई खेड़ी मिल पर रुपये 24.40 फीसदी, तितावी चीनी मिल पर 16.72 करोड़ तथा रोहाना मिल पर मात्र 2.53 करोड़ का ही भुगतान शेष है। जबकि टिकौला, खतौली और मंसूरपुर मिलों ने अपने गन्ना किसानो को शत-प्रतिशत भुगतान कर दिया है।
लेकिन जिले शामली की बात करें, तो इस जिले की तीन चीनी मिलों पर में किसानों का बकाया गन्ना भुगतान तकरीबन 758 करोड़ रुपए है, जिसमें सर्वाधिक बकाया शामली कि सर शादीलाल चीनी मिल पर तकरीबन 279 करोड़ रुपए, ऊन चीनी मिल पर 201 करोड़ रुपए और सबसे महत्वपूर्ण और दुख की बात यह है कि पूर्व गन्ना मंत्री के घर से चंद दूरी पर स्थित थानाभवन की चीनी मिल पर भी गन्ना किसानों का तकरीबन 278 करोड़ रुपए बकाया हैं। प्रदेश की ये चीनी मिलें न जाने क्यों बेखौफ होकर तब बैठी हैं, जब कई-कई बार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और गन्ना मंत्री सब गन्ना भुगतान जल्द से जल्द करने का वादा कर चुके हैं। इसके क्या मायने निकाले जाएं? क्या यह कि चीनी मिलों से मंत्रियों की मिलीभगत का खेल चल रहा है?
पिछले दिनों शामली जिले के कुछ किसान नेताओं ने जिÞला प्रशासन से मुलाकात करने के बाद कहा है कि पीड़ित किसानों का तत्काल गन्ना भुगतान कराने का आश्वासन डीएम की मौजूदगी में मिल प्रशासन ने दिया है। जिला प्रशासन ने मिल प्रबंधन को तत्काल किसानों का बकाया भुगतान करने का आदेश दिया है। अगर चीनी मिलें जल्द किसानों का बकाया भुगतान नहीं करती है, तो जिला प्रशासन उनके रकबे को घटाने पर विचार कर सकता है। अबकी बार कोई किसान आंदोलन गन्ना भुगतान को लेकर नहीं हो रहा है, बल्कि किसान यूनियन और राजनीतिक यूनियन अपने जोड़-तोड़ में लगी हुई हैं। पक्ष हो या विपक्ष कोई इस मुद्दे पर कोई नहीं बोल रहा है कि किसानों के साथ हर तरह से अन्याय क्यों हो रहा है? इस देश में रोज नए नए मुद्दे निकल कर आ रहे हैं, लेकिन किसानों को गन्ने भुगतान पर कोई आंदोलन नहीं हो रहा, कोई धरना नहीं हो रहा है। जिसका चीनी मिल मालिकान बेतहाशा फायदा उठाते जा रहे हैं। किसान का दुर्भाग्य देखिए कि दुनिया का यह एक मात्र कारोबार है कि जिसमें मिल मालिक को कच्चा माल सालों की उधारी पर और वो भी बिना ब्याज के मिलता है। इस पर सरकार को सोचना चाहिए और किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वायदे को याद करते हुए किसानों को हर तरह से राहत देने का प्रयास करना चाहिए।