दही वड़ा के बारे में जानें दिलचस्प बातें
जनवाणी फीचर डेस्क |
होली के अवसर पर गुझिया या गुजिया के बाद जिस डिश का नाम आता है वह है दही वड़े या दही भल्ले। गाढ़ी दही में उड़द के वड़े डुबोए हुए होते हैं और मुंह में डालते ही घुल जाते हैं। बड़े का चटपटापन और दही की तासीर दोनों मिलकर स्वाद का संगम कर देती हैं। होली पर गर्मी का इससे शानदार स्वागत भी क्या हो सकता है। दही-वड़ा चाट का ही एक हिस्सा है।
दही वड़ा का ओरिजिन
दही वड़ा की ओरिजिन भारत की ही है लेकिन अभी यह पूरे साउथ एशिया में फैल चुकी है। 12वीं सदी में आई एक संस्कृत किताब में भी इसकी रेसेपी बताई गई है। इसके साथ ही 500 BC पुराने समय में भी इसके होने के कई साक्ष्य मिले हैं, तो यह एक बहुत ही पुरातन और पारंपरिक भारतीय डिश है। यही कारण है कि इसका इस्तेमाल कई पारंपरिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।
नाम भी देश में अलग-अलग
अब जैसा की बताया गया है कि दही वड़ा लगभग पूरे देश में किसी न किसी तरह से खाया जाता है। तो जाहिर है इसके अलग-अलग नाम भी होंगे। मराठी में इसे दही वडे, हिंदी में दही वड़ा, पंजाबी में दही भल्ला, तमिल में थयरी वडै और उड़ीसा-बंगाल में दोई बोरा कहते हैं। भोजपुर इलाके में इसे ‘फुलौरा’ भी कहा जाता है। चाट के ठेलों पर मिलने वाले दही-पापड़ी में भल्ला यानि वड़ा का ही बेस होता है।
ऐसे बनाया जाता है
इसकी रेसेपी इंटरनेट पर बहुत सी हैं इलाके के हिसाब से इसे बनाने की विधि बदल जाती है। पहले उड़द की दाल को रातभर भिगो लिया जाता है। फिर इसे पीस कर इसके वड़े बनाए जाते हैं। इसके बाद दही का गाढ़ा पेस्ट बना कर इसे पेश किया जाता है। इसमें अलग-अलग चटपटे मसाले डाले जाते हैं। साथ ही मीठी इमली की चटनी और चाट मसाला छिड़क कर इसे खाने का आनंद ही कुछ और है। पुदीना, हरी मिर्च, काली मिर्च, लाल मिर्च आदि इसके खास साथी हैं।
बचपन की कहानी
मैं भोजपुर के इलाके से आता हूं इसलिए वहां पर इसे ज्यादातर फुलौरा ही कहते हैं। उसकी दही थोड़ी ज्यादा खट्टी बनाई जाती है। मुझे आज भी याद है कि शादी-विवाह के दौरान दही वड़े या फुलौरा खाने की खास परंपरा/रस्म है। इसके साथ ही कई अवसरों पर फुलौरा और कढ़ी पकौड़ा भी खाया जाता है। बचपन में हम उन घरों पर होली के दिन सबसे पहले पहुंचते थे जहां सबसे शानदार दही वड़े बनते थे। क्योंकि हमारी अच्छी रिसर्च होती थी।