Thursday, January 23, 2025
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सील बनी तमाशा, बिल्डिंग तैयार

  • जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं? मेरठ विकास प्राधिकरण पर उठ रही अंगुलियां

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: जवाबदेही किसकी होगी? क्या इंजीनियर पर मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारी कार्रवाई करेंगे? जी हां! हम बात कर रहे हैं छिंपी टैंक स्थित मृत्युंजय हॉस्पिटल की, जहां पर छह माह पहले मेरठ विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों ने बिल्डिंग पर सील लगा दी थी। प्राधिकरण के दस्तावेज में वर्तमान में भी सील लगी है, लेकिन मौके पर सील जिस बिल्डिंग पर लगी थी, वह बिल्डिंग दो मंजिल तक तैयार हो गई है। तीसरी मंजिल पर निर्माण के लिए पिलर निकाल दिये गए हैं।

महत्वपूर्ण बात यह कि मृत्यंजय हॉस्पिटल शहर के लिए पहला उदाहरण नहीं है, बल्कि इंजीनियर यही खेल पूरे शहर में कर रहे हैं। पहले सील लगाते हैं फिर मामला ठंडा होने पर आॅफ रिकॉर्ड बिल्डिंग मालिक को निर्माण के लिए कह दिया जाता है। एक-दो मामला नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर यदि जांच पड़ताल की जाए तो ज्यादातर मामले ऐसे ही मिलेंगे। मेरठ विकास प्राधिकरण के दस्तावेजों में करीब 1350 बिल्डिंग पर सील की कार्रवाई की गई है।

यह कार्रवाई पिछले एक साल के दौरान हुई है, लेकिन मौके पर सभी की सील खुल गई और बिल्डिंग भी तैयार हो गई। आखिर यह जो खेल इंजीनियर और बिल्डिंग मालिकों के बीच चल रहा है, उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या जिम्मेदार इंजीनियरों पर प्राधिकरण के आला अफसर कार्रवाई करेंगे या फिर इसी तरह का सेटिंग-गेटिंग का खेल चलता रहेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि मृत्युंजय हॉस्पिटल तो सिर्फ एक उदाहरण है।

पीएल शर्मा रोड पर छह बिल्डिंग में सील लगी थी, सभी बिल्डिंग बनकर तैयार हो गई है। सील कब खुली कुछ नहीं पता नहीं। इस तरह से पूरे शहर में ही यही हाल है। इंजीनियर पहले सील की कार्रवाई करते हैं, फिर सेटिंग से सील हट जाती है और बिल्डिंग का निर्माण भी पूरा हो जाता हैं, लेकिन इसमें यदि किसी का नुकसान होता है तो वह है एमडीए के राजस्व का। यदि मानचित्र स्वीकृत कराया जाता तो प्राधिकरण को राजस्व की प्राप्ति होती है, लेकिन यहां तो एकदम विपरीत हैं।

राजस्व मेरठ विकास प्राधिकरण की बजाय इंजीनियरों की निजी जेब का बढ़ रहा है। यह उनका निजी राजस्व है। इसी वजह से पहले सील लगाकर डराया जाता है, फिर उसको खोल दिया जाता है। इसमें इंजीनियर के वारे न्यारे हो रहे हैं। अब देखना है कि इस तरह के मामलों पर कमिश्नर सेल्वा कुमारी और डीएम दीपक मीणा क्या अंकुश लगा पाते हैं या फिर इसी तरह से खेल आगे भी चलता रहेगा।

बेगमपुल: पार्किंग है नहीं, बिल्डिंग तैयार

बेगमपुल व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन यहां पर कुछ बिल्डर पुरानी बिल्डिंग खरीद कर नए सिरे से व्यवसायिक प्रतिष्ठान का निर्माण कर बेच रहे हैं। कई निर्माण बेगमपुल स्थित शोरूम के चल रहे हैं, जिनके लिए पार्किंग छोड़ना अनिवार्य होता है, लेकिन यहां मेरठ विकास प्राधिकरण इंजीनियरों की तरफ से फाइल की खानापूर्ति कर मामले को दबा दिया जाता है।

इंजीनियर स्तर से यदि सख्ती की जाए तो व्यापारिक प्रतिष्ठान के आगे पार्किंग भी छोड़ी जाएगी और मेरठ विकास प्राधिकरण बाइलॉज के नियम भी पूरे किए जाएंगे। इसमें प्राधिकरण इंजीनियरों की ही संरक्षण प्राप्त होता है, जिसके चलते अवैध बिल्डिंग बनकर तैयार हो जाती है। बेगमपुल मार्केट मैं कोई भी पार्किंग व्यवस्था नहीं है। पहले से ही लोग पार्किंग को लेकर परेशान हैं, लेकिन कोई कार्रवाई पार्किंग की दिशा में प्राधिकरण की तरफ से नहीं की जा रही है।

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अब जो नवनिर्मित बिल्डिंग है, उनकी भी कोई पार्किंग नहीं छोड़ी जा रही है। इसी वजह से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बड़ी बात यह कि जब बिल्डिंग सील कर दी गई थी तो फिर उसका निर्माण क्यों होने दिया जाता हैं? थाने में एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई जाती? इस तरह से कई सवाल खड़े हो रहे हैं, लेकिन प्राधिकरण के इंजीनियरों को कार्रवाई का समय ही नहीं मिल रहा है।

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