Sunday, September 8, 2024
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समस्या बने कुत्तों पर अदालत भी सख्त

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Nazariya 22


Yogesh Soniकुत्तों के काटने की लगातार होने वाली घटनाओं के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने खतरनाक कुत्तों को रखने के मुद्दे पर अहम आदेश दिया है। पिटबुल-टेरियर-अमेरिकन बुलडॉग और रॉटविलर जैसे खतरनाक कुत्तों की नस्लों को रखने के लाइसेंस पर प्रतिबंध लगाने और रद्द करने के मुद्दे पर अदालत ने केंद्र सरकार को तीन माह के अंदर निर्णय लेने के लिए कहा है। अदालत ने अक्टूबर माह में याचिकाकर्ता लॉ-फर्म द्वारा दिए गए प्रतिवेदन पर जल्द से जल्द विचार करने को कहा है। दरअसल बीते दिनों देश में लगातार कुत्ते के काटने व हमला करने से कई लोगों की जानें गर्इं हैं। कुछ लोग तो बिना लाइसेंस के ही खतना नस्ल के कुत्तों को पाल रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि ऐसी नस्ल के कुत्तों द्वारा अपने मालिकों सहित लोगों पर हमला करने की कई घटनाएं हुर्इं हैं। इसके अलावा यह भी कहा गया कि ब्रिटेन के खतरनाक कुत्ते अधिनियम (1991) में पिटबुल और टेरियर को लड़ाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। सार्वजनिक सुरक्षा के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया। टाइम मैगजीन के अनुसार अमेरिका में पिटबुल और टेरियर्स की संख्या कुत्तों की आबादी का केवल छह प्रतिशत है, लेकिन वर्ष 1982 से कुत्तों द्वारा किए गए जाने वाले 68 प्रतिशत हमलों और कुत्तों से संबंधित 52 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार है। याचिका के अनुसार आम तौर पर पिट बुल एंड टेरियर्स अन्य कुत्तों के प्रति आक्रामक होते हैं। पिटबुलए रॉटवीलर टेरियर्सए, बैंडोग अमेरिकन बुलडॉग, जापानी टोसा, बैंडोग नियपोलिटन मास्टिफ वुल्फ डॉग-बोअरबो-ल प्रेसा कैनारियो फिला ब्रासील-रो-टोसा इन-केन कोरसो -गो अर्जेंटीनो जैसे कुत्तों को प्रतिबंधित करना और उनके पालन-पोषण के लाइसेंस को रद्द करना समय की मांग है। याचिका में दावा किया गया था कि यह केंद्र और राज्य सरकार का कर्तव्य है कि लोगों के हित में काम करे और ऐसे खतरनाक नस्लों के कुत्तों के काटने की किसी भी बड़ी घटना के जोखिम से नागरिकों के जीवन को बचाने के लिए पूर्वव्यापी कार्रवाई करें।

दरअसल दोनों तरह के कुत्तों से मानव जीवन पर प्रहार हो रहा है क्योंकि जो लोग खतरनाक नस्ल पालते हैं, उनसे दूसरो को खतरा होता, लेकिन अपनी जान का भी खतरा बना होता है वहीं स्ट्रीट डॉग से बाहरी लोगों का लगातार खतरा रहता है। कुत्तों की लगातार वृद्धि होने से मानव जीवन पर संकट आ गया है। बिना वजह लोगों का मरना एक चिंता विषय बन चुका है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेते हुए इस पर सरकार को एक्शन लेने को कहा है। कुत्ता काटने के कारण हुई मौतों में करीब 36 फीसदी लोगों की मौत रेबीज की वजह से होती है, जिनमें से अधिकांश मामले तो रिपोर्ट ही नहीं होते। भारत में सबसे ज्यादा आवारा कुत्ते हैं व हमारे यहां ऐसा कानून है कि आवारा कुत्तों को मारा नहीं जा सकता, जिसके वजह से इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होना जारी है और इससे मानव जीवन पर संकट बना हुआ है। इसके अलावा आवारा पशुओं की वजह से हर रोज कई लोगों की जान जा रही है और इसके बचाव लिए सरकारों के पास कोई भी प्लान नहीं हैं। ज्ञात हो कि बीते दिनों वाघ बकरी के मालिक पराग देसाई रोजाना आवारा कुत्तों की वजह से मौत की खबर अभी शांत नहीं हुई थी कि ऐसी कुछ खबरें और भी आ गर्इं। पराग देसाई की मौत पर देश भर में चर्चा हो रही है चूंकि यह एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति से जुड़ा हुआ मामला है, लेकिन बता दिया जाए कि हमारे देश में हर रोज ऐसी सैकड़ों मौतें होती हैं। इस मामले को लेकर कई बार केंद्र व राज्य सरकारों को अवगत भी कराया जा चुका लेकिन जब भी कोई घटना होती है उसके हफ्ते भर ही शासन-प्रशासन एक्शन में आता है और फिर वैसी ही स्थिति हो जाती है। कुछ समय पहले भी दिल्ली में एक प्रोफेसर को कुत्तों ने नोच-नोच कर मार डाला था। दरअसल, ऐसी मौतें किसी के द्वारा की गई हत्या नहीं मानी जातीं, लेकिन यदि इसकी गंभीरता को समझा जाए तो यह संबंधित विभाग द्वारा यह हत्या ही माननी चाहिए, क्योंकि आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए एक अच्छा खासा बजट होता है लेकिन फिर भी इस पर काम नहीं होता। कई बार तो ऐसी खबरें सामने आती हैं कि छोटे बच्चों को भी कुत्तों ने नोच कर खा लिया। कई जगह तो ऐसी हैं जहां स्ट्रीट डॉग्स की वजह से लोगों ने उस रास्ते से जाना ही बंद कर दिया। बीते दिनों एक खाना देने वाले डिलीवरी ब्वॉय को पीछे कुत्ते पड़ गए जिसकी वजह से उससे अपनी मोटरसाईकिल तेज भगाई और उसका बैलेंस नही बन पाया जिससे उसने एक खंभे में जाकर टकराई और वह वहीं मर गया। क्या यह प्राकृतिक मौत मानी जाए या सकारी विभाग द्वारा हत्या।

एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स के एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा आवारा कुत्तों के हमले भारत में होते हैं। इस मामले लगी याचिका में याचिकाकर्ता बैरिस्टर लॉ फर्म ने आरोप लगाया था कि खतरनाक नस्लों के कुत्ते भारत सहित 12 से अधिक देशों में प्रतिबंधित हैं, लेकिन दिल्ली नगर निगम अभी भी इनका पंजीकरण पालतू जानवर के रूप में कर रहा है। लेकिन वहीं दूसरी खतरनाक कुत्तों को बेचने व पालने वालों को भी यह समझना होगा कि वह इन नस्लों को आगे न बढ़ाएं और पालें। सरकार को इसके लिए एक विशेष अतिरिक्त विभाग बनाकर इस मामले पर बडा काम करना होगा, क्योंकि जितना आसान लग रहा है उतना है नहीं। सबसे पहले तो इसके प्रजनन पर प्रतिबंध लगाना होगा, क्योंकि जब से नस्ल आगे बढ़ेगी नहीं तो यह खत्म हो जाएगी। दूसरा इसकी खरीद-फिरोख्त पर पूर्णत प्रतिबंध लगा देने चाहिए और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान कर देना चाहिए, जिससे कोई कानून के विपरीत न जाए।


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