- प्रौद्योगिकी ने आर्थिक सुख बख्शा, छीनी सांस्कृतिक विरासत
- निर्मूल हो गईं सामाजिक धार्मिक मान्यताएं, उच्च स्तर पर नैतिक पतन
जनवाणी संवाददाता |
किठौर: एक दौर में सामाजिक और धार्मिक मूल्य, मान्यताएं कानून पर भी हावी थीं। पंच परमेश्वर कहलाते और उनका निर्णय परमेश्वर का निर्णय माना जाता था। संयुक्त परिवार प्रणाली और शर्म-लाज का दौर था। बच्चे, बहू, बेटियां बड़ों, बुजुर्गों और गणमान्यों का बहुत सम्मान करते थे। गलतियों पर आगाह करने, डांटने, फटकारने का सभी को भेदभाव रहित अधिकार था। प्रौद्योगिकी के युग ने सब कुछ बदल दिया। भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो प्रौद्योगिकी ने हमें भौतिक व तकनीकी सुदृढ़ता तो बख्शी मगर विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाली अमूल्य विरासत भारतीय सभ्यता और संस्कृति को गौण कर दिया। इससे भारतीयों का नैतिक पतन तो हुआ ही धार्मिक व समाजिक ताना-बाना भी टूट गया।
ग्रामीण परिवेश के लोगों ने रोजगार के लिए नगर-शहरों का रुख किया ये वही दौर था जब पाश्चात्य संस्कृति शहरीकरण के बहाने भारतीयों पर अपनी रंगत चढ़ा रही थी। लिहाजा ग्रामीण अंचल से निकले भारतीयों ने शहरीकरण के नाम पर खान-पान, वेश-भूषा, रहन-सहन भाषा तक में बदलाव कर खुद को वेस्टर्न कल्चर में रंग लिया। भारत की शिक्षा व्यवस्था में भी बड़े बदलाव हुए। गुरुकुल, आश्रमों का स्थान कान्वेंट स्कूलों, प्रोफेशनल कोर्सेज ने ले लिया। नैतिक शिक्षा और आश्रम व्यवस्था धड़ाम होती चली गई। अब नैतिकता का स्थान भौतिकवादी सोच और व्यवस्था ने ले लिया।
घटे सामाजिक मूल्य
प्रौद्योगिकी के युग में सर्वाधिक क्षति सामाजिक, धार्मिक मूल्यों की हुई। संयुक्त परिवारों के एकाकी परिवारों में तब्दील होने के साथ व्यक्तिगत जीवनशैली वजूद में आई और लोगों ने समाजिक मूल्यों मान्यताओं को फिजूल और बड़े बुजुर्गों, गणमान्यों द्वारा नसीहत के नाम पर की जाने वाली काउंसलिंग को गलत और बुरा समझना शुरू कर दिया। नसीहत पर भी एक-दूसरे पर छींटाकशी होने लगी। जिससे बुजुर्गों गणमान्यों के मुंह पर लगाम लग गई। रही कसर एंड्रॉयड मोबाइल, पाश्चात्य फिल्मों, अर्धनग्न, नग्न वीडियो, फोटोज ने पूरी कर दी। नतीजे सामने हैं।
वायरल हो रहीं अश्लील वीडियोज
ये नैतिक, सामाजिक, धार्मिक मूल्यों की अनदेखी का परिणाम है कि युवा पीढ़ी में लोक-लाज खत्म हो गई है। रोजाना कहीं प्रेम प्रसंग, कहीं शादी का झांसा देकर तो कहीं जबरन अवैध संबंध बनाकर युवक-युवतियां सोशल मीडिया पर वीडियोज वायरल कर रहे हैं। अब न हुक्का पानी समाजिक बहिष्कार का भय है। न घर, परिवार, खानदान की परवाह। किठौर, मुंडाली की बात करें तो एक महीने में लगभग आधा दर्जन मामले सामने आ चुके हैं। यक्ष प्रश्न बदलते जमाने के नाम पर सरेआम हो चली अश्लीलता देश और समाज के लिए भयानक नही।
ये बोले-साइक्लोजिस्ट
आजकल ओटीटी प्लेटफार्म, सोशल साइट्स पर अश्लील वीडियोज आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। पैसा कमाने के लिए बहुत से युवक-युवती अपने नग्न, अर्धनग्न फोटो वीडियोज प्रसारित करते हैं। जिन्हें देख मानसिक विकृति उत्पन्न होती है। मानसिक विकृति के लोग ऐसी सामग्री को लाइक करते हैं। वही लोग समाज में भी विकृति फैलाते हैं। बच्चों को इनसे बचाने के लिए परिवारिक, शैक्षिक, समाजिक स्तर पर काउंसलिंग करनी चाहिए। सरकार भी ऐसी साइट्स पर पाबंदी लगाए। -डा. तरुणपाल आचार्य, मनोवैज्ञानिक विभाग लाला लाजपतराय मेडिकल कालेज मेरठ।