Saturday, April 20, 2024
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कर्नाटक की हार का असर मध्य प्रदेश पर

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06 12तमाम मुद्दों और दांव-पेच के बावजूद कर्नाटक में सत्ता बचाने में असफल भाजपा के लिए इन परिणामों के प्रभाव से दूसरे राज्यों को बचा पाना नई चुनौती बन गया है, जबकि संकेत स्पष्ट हैं कि कर्नाटक में कमल न खिलने का असर आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में सत्ता से संगठन तक विभिन्न स्तरों पर बदलाव के रूप में दिखाई पड़ सकता है। उसके सामने आत्मविश्वास और उत्साह से भरपूर कांग्रेस है, जिसे कर्नाटक के परिणाम से संजीवनी मिल गई है। अब विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, मध्यप्रदेश में भाजपा की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। आने वाले दिनों में यह कम होने की बजाय बढ़ेंगी ही।

राजनीति के जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि चुनावी साल में जिस तरह की विद्रोही लहर मध्यप्रदेश बीजेपी में उठी है, उसे जल्द से जल्द शांत नहीं किया गया तो पार्टी को 20 से 22 सीटों पर भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। पिछले चुनाव की हार से भाजपा ये तो अच्छी तरह से समझ गई है कि 22 सीटों पर नुकसान का मतलब सत्ता से बहुत दूर हो जाना है।

तीन बार के विधायक दीपक जोशी का कांग्रेस में जाना भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका है। इससे पार्टी की छवि तो खराब होगी ही, खातेगांव, कन्नौद, बागली, हाटपीपल्या सहित आसपास की सीटों पर भाजपा को नुकसान हो सकता है। इस इलाके में स्व. कैलाश जोशी का प्रभाव रहा है। उनके बेटे दीपक जोशी ने जिस तरह कांग्रेस में शामिल होते हुए तेवर दिखाए हैं, उससे लगता है कि वे क्षेत्र में चिल्ला-चिल्लाकर भाजपाइयों के कारनामे उजागर करेंगे।

कुछ जानकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ का उदाहरण देते हुए कहते हैं- यहां हाल ही में अशोकनगर से भाजपा से 3 बार के विधायक स्व. राव देशराज सिंह यादव के बेटे यादवेंद्र सिंह यादव ने कांग्रेस जॉइन की है। खास बात यह है कि भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा का यह गृह जिला है।

राव परिवार का अशोकनगर जिले में पिछले कई सालों से दबदबा रहा है। यादवेंद्र के छोटे भाई अजय प्रताप अभी भी भाजपा सरकार में अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग निगम उपाध्यक्ष हैं। ऐसे में चुनाव से कुछ समय पहले हुई राजनीतिक उठापटक से अशोकनगर के राजनीतिक समीकरण बदलेंगे, लेकिन सबसे ज्यादा असर यादव बाहुल्य मुंगावली सीट पर दिखेगा। यहां यादव सहित अन्य समाज भी राव परिवार से जुड़े रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मध्य प्रदेश में भाजपा के बड़े नेता खुलकर बयान दे रहे हैं, इससे चुनाव में पार्टी को नुकसान होना निश्चित है।

ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी नेता (पूर्व राज्यसभा सांसद रघुनंदन शर्मा) ने केंद्रीय नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठा दिया। अमूमन देखा गया है कि ऐसे मामलों को केंद्रीय नेतृत्व गंभीरता से लेता है, लेकिन मध्य प्रदेश की तुलना द्रोपदी से करके पांच प्रभारियों को पति बताना कोई हल्की बात नहीं है। यह संकेत है कि इन बयानों से असंतुष्ट नेताओं को ताकत मिलेगी। ऐसे में पार्टी के भीतर जो लोग सत्ता-संगठन से नाराज हैं, वे या तो खुलकर बगावती तेवर दिखाएंगे या फिर घर बैठ जाएंगे।

मध्य प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वाले जानकार कहते हैं कि चुनावी साल में बगावती तेवरों से उन 20-22 सीटों पर भाजपा को नुकसान होने की पूरी संभावना है, जहां सिंधिया समर्थक विधायक हैं। यानी जहां कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायक हैं। दीपक जोशी का पार्टी छोड़ना हो या फिर भंवर सिंह शेखावत के बदले सुर, इसके साफ संकेत दे रहे हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो हाल ही में संगठन को मिली 14 नेताओं की रिपोर्ट में सिंधिया समर्थकों के क्षेत्रों में नाराजगी ज्यादा है।

दरअसल, भाजपा के मूल नेता खासकर पूर्व विधायक और वे नेता जो चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, फिलहाल चुप हैं। उन्हें समय रहते मनाया नहीं गया तो वे चुनाव के दौरान या तो घर बैठ जाएंगे या फिर सिंधिया समर्थकों को टिकट मिलने पर एकजुट होकर नुकसान पहुंचाएंगे। इस समय भाजपा में प्यारे लाल खंडेलवाल जैसा एक भी सर्वमान्य नेता दिखाई नहीं दे रहा है, जो पार्टी के भीतर की गुटबाजी को समझता हो और जिसके कहने से असंतुष्ट मान जाएं।

सिंधिया फैक्टर आने वाले दिनों में भाजपा के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। कांग्रेस की नजर भाजपा के उन नेताओं पर है, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के चलते अपनी परंपरागत सीट गंवा चुके हैं। वे नए विकल्पों की तलाश में हैं और कांग्रेस उन्हें अपने पाले में लाने के लिए तैयार बैठी है। 2020 में सिंधिया और उनके समर्थकों के आने के बाद जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां भाजपा के पुराने नेताओं के लिए दरवाजे करीब-करीब बंद हो गए हैं। चुनाव नजदीक आने पर वे अपने लिए नए विकल्प की तलाश कर सकते हैं। भाजपा से बदला लेने के लिए व्याकुल कांग्रेस को इसी मौके का इंतजार है।

पुराने नेताओं की बगावत की एक वजह सरकार में तवज्जो नहीं मिलना है। दीपक जोशी का उदाहरण सामने है। कई मौके ऐसे आए, जब उनके क्षेत्र के प्रशासन में उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। इसकी शिकायत वे समय-समय पर सरकार और संगठन में करते रहे, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। हाल ही में तैयार कराई गई रिपोर्ट में यह बताया गया कि मंत्री-विधायक उनके काम नहीं करते हैं। कई पुराने नेताओं को अपना काम कराने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं। स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आने वाले नेताओं के मुसीबत बनने की आशंका है।


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