राइट टू हेल्थ (आरटीएच) बिल को लेकर राजस्थान सरकार और डॉक्टर्स के बीच चल रहा गतिरोध खत्म हो गया है। निजी अस्पतालों में पहले जैसा कम भी शुरू हो गया। अब राइट टू हेल्थ बिल लाने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य होगा लेकिन सरकारी सुविधा नहीं लेने वाले 95% प्राइवेट अस्पताल इस बिल के दायरे से बाहर हो गए हैं। सिर्फ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज और चुनिंदा निजी अस्पताल ही इसके तहत आएंगे। सरकार का कहना है कि निजी अस्पतालों के लिए विकल्प खुला रहेगा कि वे खुद को राइट टू हेल्थ के दायरे में शामिल रखें। वह बिल के प्रावधान और नियम ही ऐसे बनाएगी कि निजी अस्पताल खुद बिल में शामिल होना चाहेंगे, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि चिकित्सकों की हड़ताल के बाद अब राजस्थान में राइट टू हेल्थ का दायरा सिमट गया है।
प्रदेश में 2400 से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम हैं। पहले ही 50 से कम बेड वाले अस्पतालों को इसके दायरे से बाहर रखा गया था। डॉक्टरों की हड़ताल से पहले राइट टू हेल्थ बिल के दायरे में तमाम बड़े अस्पताल और मेडिकल कॉलेज आ रहे थे। अब मोटे तौर पर तमाम निजी अस्पताल इस दायरे से बाहर आ गए हैं। राजस्थान के सिर्फ 5 प्रतिशत निजी अस्पताल इस हेल्थ बिल के दायरे में रह जाएंगे।
ऐसे अस्पताल जिन्होंने सरकार से जमीन मुफ्त या सब्सिडी के आधार पर ली हो, उनमें भी सिर्फ वही अस्पताल इस दायरे में आएंगे, जिन्होंने सरकार से जमीन लेने के दौरान हुए समझौते के मसौदे में यह शर्त स्वीकार की हो कि वे भविष्य में सरकार का काम करेंगे। जिनकी टर्म्स एंड कंडीशन में यह बात नहीं होंगी वे इसमें नहीं आएंगे।
निजी मेडिकल कॉलेजों के पास मेडिकल स्टूडेंस होते हैं और उनको प्रैक्टिस के लिए मरीजों की दरकार होती है।
इसलिए निजी मेडिकल कॉलेज इस बिल के विरोध में खड़े नहीं हुए थे। इसलिए राज्य के 9 निजी मेडिकल कॉलेजों इस दायरे में रहेंगे। इसमें 5 मेडिकल कॉलेज उदयपुर, 3 जयपुर और एक श्रीगंगानगर में है। ऐसे में इन शहरों में तो फिर भी लोगों के पास निजी अस्पताल का उपचार आरटीएच के दायरे में लेने का विकल्प होगा लेकिन अन्य जिलों में परेशानी होगी।
राजस्थान में राइट टू हेल्थ के जरिए सरकार प्रदेश के हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराना चाहती है। यानी कोई भी व्यक्ति इलाज के अभाव में परेशान न हो। इमरजेंसी के दौरान हर व्यक्ति को फीस के पूर्व भुगतान और पुलिस की रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज मिल सके।
इसके तहत किसी भी हादसे की सूरत में आम बिल के दायरे में आने वाले किसी भी अस्पताल में इलाज ले सकेगा। अस्पताल उस पर किसी भी तरह की फीस के लिए दबाव नहीं डालेंगे। अगर व्यक्ति इलाज के बाद पैसा देने में असमर्थ होगा तो उसका पैसा सरकार देगी। ऐसे में उसका जो गोल्डन आवर होगा उसी में उसे ट्रीटमेंट दिया जा सकेगा।
पेशेंट को तमाम तरह के अस्पतालों और डॉक्टर्स से अपनी बीमारी के बारे में जानने, समझने का अधिकार भी मिलेगा। वह जो चाहे, जैसी चाहे जानकारी अपने डॉक्टर से मांग सकता है। इससे हर ट्रीटमेंट और सुविधा का बिल लेने का अधिकार जब पेशेंट को होगा और निजी अस्पतालों में वसूले जाने वाले बेवजह पैसे पर लगाम लगेगी।
अगर इलाज से व्यक्ति संतुष्ट नहीं है तो उसे अपील करने का अधिकार भी होगा। इसकी जांच करने पर दोषी पाए गए सेंटर पर पैनल्टी लगाई जाएगी। जब अशोक गहलोत की राजस्थान सरकार ने पिछले साल स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक 2022 पेश किया, तो उसने राज्य के लोगों में उम्मीद जगाई थी और देशभर के लोगों और स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं का ध्यान खींचा था।
आखिर, यह भारत के किसी भी राज्य द्वारा स्वास्थ्य का अधिकार कानून लागू करने का पहला प्रयास था। कानूनी अधिकार के रूप में स्वास्थ्य का अधिकार निश्चित रूप से लोगों को राहत दे सकता था। स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए दबाव पैदा कर सकता था।
बार-बार लापरवाह साबित हुए निजी अस्पतालों को ईमानदारी के साथ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने पर मजबूर कर सकता था, लेकिन बिल के कानून बनने से पहले ही ऐसी उम्मीदों पर पानी फिर गया लगता है।
बहरहाल, यह बिल विधानसभा से पारित होने के बाद विधानसभा से पारित होने के बाद यह बिल अब राज्यपाल के पास है। बिल राज्यपाल से मंजूरी के बाद एक्ट बन जाएगा और उसके बाद इसके सभी नियम बनाए जाएंगे तभी तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट होगी।
स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है लेकिन इसे संविधान में इन शब्दों में नहीं रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के अधिकार के रूप में की है। इस प्रकार उसने जीवन के अधिकार पर अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार किया है और स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में व्याख्यायित किया है।
दूसरे शब्दों में, हालांकि मौलिक अधिकार निर्धारित अधिकार नहीं हैं, वे व्युत्पन्न अधिकार हैं। लेकिन मौलिक अधिकारों को विशिष्ट कानूनों के माध्यम से ही क्रियान्वित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, स्वास्थ्य के अधिकार को केवल विशिष्ट कानून के माध्यम से वैधानिक अधिकार बनाकर व्यवहार में लाया जा सकता है। राजस्थान सरकार ठीक यही करने की कोशिश कर रही थी।
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