Saturday, January 11, 2025
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बॉलीवुड पर दक्षिणपंथ का साया !

Samvad 1


JAVED ANISHसाल 2013 में ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने अपने सौ साल पूरे कर लिए थे। यह एक लंबा और उतार चढ़ाव भरा सफर रहा है।लेकिन आज इस मुकाम पर पहुंच कर ऐसा लगता है कि बॉलीवुड अपने अस्तित्व और पहचान के संकट के दौर से गुजर रहा है। यह खतरा दो तरफ से है एक दक्षिण सिनेमा का बढ़ता दबदबा और दूसरा है दक्षिणपंथी विचारधारा का दबाव। अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद बॉलीवुड की पहचान उन चंद पेशेवर स्थानों में है, जो समावेशी और धर्मनिरपेक्ष हैं और यह बहुसंख्यक दक्षिणपंथियों को हमेशा से ही खटकता रहा है। आज यह विचारधारा देश के तकरीबन हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर चुकी है तो जाहिर तौर पर उसका निशाना बॉलीवुड पर भी है। वे बॉलीवुड को भी अपना भोंपू बना लेना चाहते हैं और इसके लिए वे हर हथकंडा अपना रहे हैं। नतीजे के तौर पर आज हमारे समाज की तरह बॉलीवुड भी खेमों में बंट गया है, यहां भी हिन्दू-मुस्लिम आम हो चुका है और पूरी इंडस्ट्री जबरदस्त वैचारिक दबाव के दौर से गुजर रही है।

पिछले दिनों कन्नड़ स्टार किच्चा सुदीप का एक बयान बहुत चर्चित हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘बॉलीवुड पैन इंडिया फिल्में बनाने में संघर्ष कर रहा है, जबकि दक्षिण भाषाओं की फिल्म इंडस्ट्री के लोग ऐसी फिल्में बना रहे हैं, जो हर जगह देखी और सराही जा रही हैं।’ जाहिर तौर पर किच्चा सुदीप सच लेकिन कड़वी बात कर रहे थे। इसलिए इसके जवाब में बॉलीवुड स्टार अजय देवगन हिंदी फिल्मों की जगह हिंदी भाषा का भावनात्मक बचाव करते तो नजर आए और लेकिन वे किच्चा सुदीप के कड़वे तंज का जवाब देने में नाकाम रहे। दरअसल, किच्चा सुदीप एक ऐसी हकीकत को बयां कर रहे थे, जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और सितारों को असुरक्षित महसूस कराने के लिए काफी है। आंकड़े भी इसी हकीकत को बयां करते हैं, इस साल टॉलीवुड (तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री) देश की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म इंडस्ट्री बन गई है, जिसने करीब 1300 करोड़ रुपये की कमाई की है, जबकि कॉलीवुड (तमिल फिल्म इंडस्ट्री) इस मामले में दूसरे पायदान पर रही है, इन सबके बीच देश की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री माने जाने वाली बॉलीवुड (हिंदी फिल्म इंडस्ट्री) इस सूची में तीसरे स्थान पर है।

इसकी शुरूआत ‘बाहुबली’ से हुई, थी जिसने भारतीय सिनेमा के क्षेत्रीय और भाषाई अंतर को पाट दिया था। बाहुबली एक ऐसी अखिल भारतीय फिल्म थी, जिसको लेकर पूरे भारत में एक समान दीवानगी देखी गई। एक रीजनल भाषा की फिल्म के लिए पूरे देश भर में एक समान दीवानगी का देखा जाना सचमुच अद्भुत था। इसके बाद ‘पुष्पा: द राइज’ और ‘केजीएफ 2’ और राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ जैसी फिल्मों ने अपने वर्चस्व को स्थापित कर दिया है। निश्चित रूप से यह बॉलीवुड के लिए खतरे की घंटी और पासा पलट जाने का इशारा है।

इस स्थिति के कई कारण हैं। इस संबंध में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का बयान काबिलेगौर है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में ओरिजिनल फिल्में नहीं बनायीं जा रही है और हालिया दिनों की अधिकतर फिल्में दक्षिण के फिल्मों की रीमेक रही हैं। दूसरी तरफ बॉलीवुड में अब मसाला या ‘लार्जर दैन लाइफ’ फिल्में बहुत कम बनायीं जा रही हैं, इसलिए सलमान खान की शिकायत जायज है जब वे कहते हैं कि ‘हमारी फिल्मों का साउथ वालों की तरह नहीं चलने का एक कारण ये भी है कि वो लोग हीरोगिरी को खूब बढ़ावा देते हैं।’ यकीनन पिछले कुछ सालों से सलमान खान अकेले ऐसे बॉलीवुड सितारे हैं जो मसाला और ‘लार्जर दैन लाइफ’ फिल्में बना रहे हैं। हालांकि उनकी दबंग जैसी कुछ फिल्मों को छोड़ कर अधिकतर साउथ की फिल्मों का रीमेक या उनसे प्रभावित हैं।

एक दूसरा कारण हिंदी सिनेमा में नए और उभरते सितारों का अभाव भी है। पिछले तीन दशकों से बॉलीवुड अपने तीन खान सितारों और अक्षय कुमार व अजय देवगन से परे नहीं जा सका है। रनबीर कपूर और रणवीर सिंह जैसी नए सितारे अभी भी अपना मुकाम नहीं बना पाए हैं। पिछले कुछ सालों से खान सितारे भी सुस्त पड़े हुए हैं। शाहरुख सालों से अपने रोमांटिक हीरो की छवि से बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे हैं, आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ तो जैसे बीरबल की खिचड़ी हो गई है। सलमान खान भी लंबे समय से कोई बड़ी फिल्म नहीं दे सके हैं।

यह भारतीय राजनीति और समाज के लिए भारी उठापटक भरा दौर है। एक राष्ट्र और समाज के तौर पर भारत को पुनर्परिभाषित करने की कोशिशें हो रहीं हैं। जाहिर है इससे फिल्में भी अछूती नहीं हैं। इसका जुड़ाव 2014 के भगवा उभार, बॉलीवुड में खान सितारों के वर्चस्व व फिल्मी दुनिया की धर्मनिरपेक्षता से है जो हिंदू कट्टरपंथियों को कभी भी रास नहीं आती है। बॉलीवुड के शीर्ष तीन सुपरस्टार शाहरुख, सलमान और आमिर मुस्लिम हैं, वे करीब तीन दशकों से बॉलीवुड और दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं और आज अधेड़ हो जाने के बावजूद उनका असीमित आकर्षण बना हुआ है। आज भी वे ना केवल बॉलीवुड के शीर्ष बनाए हुए हैं बल्कि दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। और अगली पीढ़ी को अपनी जगह बनाने में भी कड़ी चुनौती दे रहे है। इन तीन सितारों की अभूतपूर्व लोकप्रियता हैरान कर देने वाली है और वे हमें पुरानी सुपरस्टार तिकड़ी राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार की याद दिलाते हैं।

गौरतलब है कि नब्बे का दशक जो भारतीय समाज के सांप्रदायिक विभाजन का दौर है, जिसकी परिणिति बाबरी मस्जिद ढांचे के टूटने से 2002 में हुए गुजरात दंगे और 2014 के बाद से सामाजिक राजनीतिक रूप से दक्षिणपंथियों के हावी होते जाने का दौर है। लेकिन इसी के साथ ही विरोधाभास भी देखिए, नब्बे के दशक में अपने आगमन के बाद से ‘खान त्रयी’ (सलमान, शाहरुख, आमिर) भी लगातार बॉक्स आफिस पर राज कर रही है। वे अपने मूल नाम से फिल्मों में हैं और दर्शक भी उन्हें अपने मुस्लिम नामों के साथ भरपूर प्यार दे रहे हैं। इतने व्यापक ध्रुवीकरण वाले समय में भी हिंदी सिनेमा के इस अनोखी स्थिति को लेकर हिंदुत्ववादी की चिढ़ समझी जा सकती है। इसलिए उनके खान सितारे लगातार निशाने पर बने रहते हैं। आज सोशल मीडिया पर खान सितारों को ट्रोल किया जाना या उनकी फिल्मों के बहिष्कार की मांग बहुत आम हो गई है

बॉलीवुड और उसके कलाकारों के खिलाफ किसी योजना के तहत एक नकारात्मक अभियान चलाया गया, बॉलीवुड के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने वाले अधिकतर लोग बहुसंख्यक दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं और उनका जुड़ाव सत्ताधारी पार्टी से भी है।


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